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पंचायत प्रतिनिधियों के साथ हो रहा भेदभाव

सुपौल: सत्ता के विकेंद्रीकरण की अवधारणा को लेकर पंचायती राज व्यवस्था लागू हुआ था.उद्देश्य यह था कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक विकास की रौशनी पहुंचेगी और राम राज की कल्पना मूर्त रूप ग्रहण करेगी.लेकिन बड़े राजनेताओं और अधिकारियों की नापाक गठजोड़ ने आज पंचायत जन प्रतिनिधियों को हाशिये पर पहुंचा दिया है.उक्त बातें लोहिया विचार […]

सुपौल: सत्ता के विकेंद्रीकरण की अवधारणा को लेकर पंचायती राज व्यवस्था लागू हुआ था.उद्देश्य यह था कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक विकास की रौशनी पहुंचेगी और राम राज की कल्पना मूर्त रूप ग्रहण करेगी.लेकिन बड़े राजनेताओं और अधिकारियों की नापाक गठजोड़ ने आज पंचायत जन प्रतिनिधियों को हाशिये पर पहुंचा दिया है.उक्त बातें लोहिया विचार मंच के प्रमंडलीय अध्यक्ष दुखी लाल यादव ने मंगलवार को आयोजित प्रेस वार्ता में कही.उन्होंने सांसद और विधायक की तरह नगर और पंचायत प्रतिनिधियों को सुविधाएं देने की मांग की है.

श्री यादव ने कहा है कि 73 वें संविधान संशोधन के तहत जन प्रतिनिधियों को हक देने का जिम्मा राज्य सरकार को सौंपा गया.लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है.स्थिति यह है कि आम लोगों को छोटे-छोटे कार्यों के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाना पड़ता है.जिससे पंचायत जन प्रतिनिधियों की साख भी आम लोगों की नजर में सवालों के घेरे में है.

जबकि सेवा की भावना सचमुच में पंचायत प्रतिनिधियों में ही होती है.उन्होंने कहा कि पंचायत प्रतिनिधियों को हक दिलाने के लिए शीघ्र ही लोहिया विचार मंच प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक संघर्ष का आगाज करेगी.इस मौके पर अशोक पासवान, मुकेश पासवान आदि उपस्थित थे.

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