सांसद बनने के बाद ट्रेन में फर्श पर बैठकर दिल्ली गए थे किराय मुसहर, जानिए बिहार के पहले दलित MP की कहानी

वर्ष 1951 में जब पहली बार आम चुनाव हुए तो बिहार से पहले दलित सांसद के रूप में किराय मुसहर चुन कर गए. वो एक जमींदार के यहां पहरेदार का काम किया करते थे. किराय मुसहर का परिवार आज भी मिट्टी के घर में रहता है. पढ़िए उनके जीवन की कहानी...

By Anand Shekhar | April 7, 2024 2:44 PM

मुरहो (मधेपुरा) से लौटकर कुमार आशीष. ‘जब मेरे दादा जी चुनाव जीते और दिल्ली जाने लगे तो उनके पास ट्रेन का टिकट कटाने तक के पैसे नहीं थे. तब सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चंदा करके उनके दिल्ली जाने और खाने की व्यवस्था की थी. वे ट्रेन के जनरल डिब्बे में फर्श पर बैठकर दिल्ली गये थे.’ यह बताते हुए उमेश कोइराला का चेहरा गर्व से भर उठता है. कौन हैं उमेश कोइराला? बिहार के पहले दलित सांसद किराय मुसहर के पौत्र हैं-उमेश कोइराला.

वर्तमान दौर से राजनेताओं के वंशजों की तरह ऐशो आराम, रसूख व रुतबा से दूर उमेश बाबू को गर्व है कि उनकी रगों में ईमानदार राजनेता का खून दौड़ रहा है. अपने परिवार के साथ मिट्टी के साधारण घर में रहने वाले उमेश कहते हैं, ‘दादा जी के पास में उस समय संसद के चुनाव में जीत का प्रमाण पत्र होने के बाद भी उन्होंने रिजर्वेशन का प्रयास नहीं किया और न ही जनरल डिब्बे में सीट पर बैठने की हिम्मत दिखायी. हां, ट्रेन में सहयात्रियों के साथ हंसते-बतियाते और खाते-पीते दिल्ली पहुंच गये थे.’  

जमींदार के यहां पहरेदार का काम करते थे किराय मुसहर

वर्तमान मधेपुरा जिले के मुरहो गांव के एक दलित मजदूर खुशहर मुसहर के घर 18 अगस्त 1920 को किराय मुसहर का जन्म हुआ था. किराय मुसहर के माता-पिता दोनों गांव के जमींदार के यहां मेहनत-मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते थे. बड़े होने के बाद किराय मुसहर भी गांव के जमींदार महावीर प्रसाद यादव के घर काम करने लगे. किराय मुसहर को रखवार (पहरेदार) का काम मिला.

ईमानदार व मेहनती होने के कारण किराय मुसहर जमींदार महावीर बाबू के चहेते बन गये. महावीर बाबू के घर उस दौर के राजनीतिज्ञों का आना लगा रहता था, इसलिए उन सभी की बात सुनते-सुनते किराय को भी थोड़ा-बहुत राजनीति का ज्ञान होता गया. दस लोगों के बीच बोलने की क्षमता विकसित होने के कारण ही महावीर बाबू और गांव के लोगों ने प्रथम आम चुनाव में आरक्षित सीट से किराय को उम्मीदवार बनाया था और लोगों के सहयोग से जीतकर दिल्ली पहुंचे.

बेबाकी के कारण नेहरू और शास्त्री के बने प्रिय

उमेश कोइराला बताते हैं-उनके दादा सांसद किराय मुसहर अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे. संसद में बहस के दौरान ठेठ देसी अंदाज में किराय अपनी बात रखते थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी कई बार उनके विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन वे हमेशा दादाजी को गंभीरता से सुनते थे. उमेश बताते हैं- दादाजी की सादगी व सेवा भाव से प्रभावित होकर 1960 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता लाल बहादुर शास्त्री अपने बिहार दौरे के दौरान किराय मुसहर के साथ सहरसा तक ट्रेन से और वहां से टायर गाड़ी (बैलगाड़ी) से मधेपुरा तक आये थे.

…जब शास्त्री जी के काफिले को देखकर भागने लगे ग्रामीण

मुरहो आने के क्रम में रास्ते में खेत से अल्हुआ (शकरकंद) उखाड़ रहे ग्रामीण लाल बहादुर शास्त्री व सांसद किराय मुसहर के साथ लाल सिपाही (लाल टोपी पहनी पुलिस) को देख भागने लगे. तब सांसद किराय मुसहर ने ग्रामीणों को आवाज देकर रोका. अल्हुआ के साथ उन्हें पास बुलाया और शास्त्री जी को दिखाते कहा, ‘साहब हम सब यही खाकर जीते हैं.’ 

इसी तरह आगे बढ़ने पर पेड़ से जिलेबी तोड़ रहे कुछ बच्चों को बुला यह फल भी दिखाया और तालाब से डोका-घोंघा चुनते बच्चों को बुलाकर उनके समाज का यह निवाला भी दिखाया. शास्त्री जी ने जब उनसे पूछा कि उन्हें और उनके क्षेत्र के लोगों की प्राथमिक जरूरत क्या है? तब, सांसद किराय मुसहर ने कहा था कि चलने के लिए रास्ता और पीने के लिए कल और कुआं उपलब्ध हो जाये, तो कृपा होगी.  

बैलगाड़ी पर लाइसेंस की करायी थी शुरुआत

उमेश बताते हैं-उनके दादा किराय मुसहर ने सांसद रहते हुए कई कार्य किये. आज जिस तरह बाइक, मोटर या अन्य वाहनों के रजिस्ट्रेशन की जरूरत होती है, उस समय उन्होंने बैलगाड़ी के लिए भी लाइसेंस अनिवार्य कराया था. प्रत्येक बैलगाड़ी पर टिन का प्लेट ठोंका जाता था. उमेश बताते हैं कि इसके अलावा सांसद किराय मुसहर ने पहली बार बुधमा के अत्यंत गरीब व भूमिहीन घंटिन दास को सरकारी भू-खंड का आवंटन कराकर उनके लिए फूस व टाली का घर बनवाया था. यही योजना बाद की इंदिरा सरकार में इंदिरा आवास योजना बनी.

किराय मुसहर का घर

जब प्रत्याशी के रूप में नाम फाइनल हुआ, तब खेत में काम कर रहे थे

सन् 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद 1951 में प्रथम आम चुनाव की घोषणा हुई थी. उस समय देशभर में दो-दो सांसदों वाले 68 व तीन सांसदों वाले एक लोकसभा क्षेत्र थे. तब मधेपुरा, सहरसा, सुपौल सहित आसपास के कई जिले भागलपुर-पूर्णिया संयुक्त लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते थे. कांग्रेस तब देश को आजादी दिलवाने का श्रेय लेकर मैदान में उतरी थी. सोशलिस्ट पार्टी एक सशक्त विपक्ष के रूप में कांग्रेस के सामने थी. भागलपुर-पूर्णिया संयुक्त संसदीय क्षेत्र में तब दो सीटें थीं. एक सामान्य और दूसरी आरक्षित. सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बीच गठबंधन था. सामान्य सीट से भूपेंद्र नारायण मंडल (बीएन मंडल) समाजवादियों की पहली पसंद थे. 

आरक्षित सीट से भी जब कांग्रेस सरकार के खिलाफ सोशलिस्ट पार्टी ने अपना उम्मीदवार तय करने की सोची, तब बीएन मंडल ने राम मनोहर लोहिया को किराय मुसहर का नाम सुझाया. फिर लोहिया जी और बीएन मंडल जी ने ही मिलकर किराय मुसहर को चुनाव लड़ाया. मधेपुरा के लोगों ने अपार समर्थन से किराय मुसहर चुनाव जीतकर दिल्ली तो पहुंचे ही, साथ ही बिहार के पहले दलित सांसद होने का खिताब भी अपने नाम कर लिया. 

बताते हैं कि जिस समय भागलपुर-पूर्णिया की आरक्षित सीट से किराय मुसहर का नाम फाइनल हुआ, उस समय वे खेत में काम कर रहे थे. किराय मुसहर समाजवादी विचारधारा से खासे प्रभावित और लोहिया जी व बीएन मंडल के बेहद करीबी थे. 1962 में किराय मुसहर का निधन हो गया था. उनके निधन से राम मनोहर लोहिया काफी व्यथित हुए थे.

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