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गंदे पानी से अर्घ देने की मजबूरी

दाहा नदी के किनारे स्थित है सैकड़ों छठ घाट गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है दाहा नदी दरौंदा/सिसवन : जिले के हजारों छठ व्रतियों को दाहा नदी के गंदे पानी में अर्घ देने की मजबूरी है़ इस नदी का पानी अत्यंत की प्रदूषित हो चुका है़ इस नदी के तट पर जिले में सैकड़ों […]

दाहा नदी के किनारे स्थित है सैकड़ों छठ घाट

गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है दाहा नदी
दरौंदा/सिसवन : जिले के हजारों छठ व्रतियों को दाहा नदी के गंदे पानी में अर्घ देने की मजबूरी है़ इस नदी का पानी अत्यंत की प्रदूषित हो चुका है़ इस नदी के तट पर जिले में सैकड़ों छठ घाट स्थित हैं, जहां छठ के मौके पर श्रद्धालु छठ मना कर अर्घ देते हैं. कभी सीवान व गोपालगंज जिले के सैकड़ों गांवों की लाइफ लाइन रही दाहा या वाण गंगा नदी को आज प्रदूषण से मुक्ति की दरकार है़
आैद्योगिक कचरे व नालों के प्रदूषण से दाहा नदी त्राहिमाम कह रही है़ पर उसकी सुधि लेनेवाला कोई नहीं है़ इस नदी को वाण गंगा भी कहते हैं. धार्मिक मान्यता के मुताबिक जनकपुर से पति राम व देवर लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटने के क्रम में सीता को प्यास लगी थी, तब लक्ष्मण ने वाण मार कर इस नदी की उत्पत्ति की़
इसी कारण इस नदी का नाम वाण गंगा पड़ा़ गोपालगंज के सासामुसा स्थित एक आर्टिजन कुएं से निकल दाहा नदी गोपालगंज, सीवान व छपरा जिलों की लगभग 85 किमी दूरी तय कर छपरा के फुलवरिया ताजपुर के निकट सरयू नदी में मिल जाती है़ इधर कुछ वर्षो से तटवर्ती गांवों के लोगों द्वारा किये जा रहे अतिक्रमण से भी नदी का आकार सिकुड़ता जा रहा है़

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