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भगवान बुद्ध के अंतिम पड़ाव देख भाव-वह्विल हुए विदेशी बौद्ध भक्षिु

भगवान बुद्ध के अंतिम पड़ाव देख भाव-विह्वल हुए विदेशी बौद्ध भिक्षु विदेशी बौद्ध भिक्षुओं ने दूसरे दिन तितरा बंगरा, मुइंया व दरौली के बौद्ध स्तूपों को देखाभगवान बुद्ध के अंतिम पड़ाव प्राचीन कुशीनारा (तितरा) में किया पूजा-पाठफोटो:-26 -प्राचीन कुशीनारा में पूजा-अर्चना करते विदेशी बौद्ध भिक्षु.जीरादेई/सीवान . थाइलैंड व वियतनाम से आये विदेशी बौद्ध भिक्षुओ ने […]

भगवान बुद्ध के अंतिम पड़ाव देख भाव-विह्वल हुए विदेशी बौद्ध भिक्षु विदेशी बौद्ध भिक्षुओं ने दूसरे दिन तितरा बंगरा, मुइंया व दरौली के बौद्ध स्तूपों को देखाभगवान बुद्ध के अंतिम पड़ाव प्राचीन कुशीनारा (तितरा) में किया पूजा-पाठफोटो:-26 -प्राचीन कुशीनारा में पूजा-अर्चना करते विदेशी बौद्ध भिक्षु.जीरादेई/सीवान . थाइलैंड व वियतनाम से आये विदेशी बौद्ध भिक्षुओ ने सोमवार को दूसरे दिन जीरादेई प्रखंड के तितरा बंगरा, मुइंया और दरौली स्थित प्राचीन बौद्ध स्तूपों को देखा. विदेशी बौद्ध भिक्षु जब तितरा बंगरा गये तथा भगवान बुद्ध के अंतिम पड़ाव को देखा, तो भावुक होकर भाव-विह्वल हो गये. स्तूप के समीप ग्रामीणों द्वारा लगाये गये भगवान बुद्ध के चित्र के समीप बैठ कर पूजा-अर्चना की. उसके बाद यहां की मिट्टी व मृदभांड के टुकड़ों को अपने साथ ले गये. बौद्ध भिक्षुओं को ग्रामीणों ने बताया कि यह स्थान प्राचीन समय का कुशीनारा है. उन्होंने तितिर स्तूप व मुइयागढ़ के मुकुटबंधन को देखा. जिसके अंदर प्राचीन अवशेष होने के अनुमान हैं. वियतनाम से आयी बौद्ध भिक्षुणी माता बोधी चित्ता ने कहा कि सचमुच में यह प्राचीन स्थान शोध का विषय है. बौद्ध ग्रंथों के अध्ययन व यहां से प्राप्त होने वाले प्राचीन अवशेषों से सीवान में प्राचीन कुशीनारा होने की प्रबल आशंका है. बोध गया से आये बौद्ध भिक्षु भंते अशोक ने कहा कि सीवान में प्राचीन पावा (पपौर), कुकुथा नदी (दाहा नदी), हिरण्यवती नदी (सोना नदी), शालवन के प्रतीक ( तितराबंगरा), सिसहानी, सेलरापुर, पिपरहिया, महुआबारी ,गुलरबग्गा, मालक नगर आदि सभी गांव शालवन के ही प्रतीक हैं. ग्रामीणों ने बताया कि तितिर स्तूप, हिरण स्तूप, व्रजपाणी स्तूप, मुकुट बंधन साक्ष्य प्राचीन कुशीनारा के हैं. इसके अलावा किशुनपुर गांव के दक्षिण से नदी का होना भी एक मुख्य प्रमाण है. पावा उन्नयन ग्राम समिति के संयोजक कुशेश्वर नाथ तिवारी ने बताया कि प्राचीन समय में आये चीनी बौद्ध यात्रियों ने भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल के संबंध में जो लिखा है, उसके अनुरूप वर्तमान कुशीनगर में कोई बौद्ध स्तूप नहीं मिले हैं. सीवान जिले में दर्जनों स्तूपों व कुकुथा व हिरणयवती नदी के अवशेष आज भी गौतम बुद्ध के अंतिम पड़ाव को साबित करने के लिए काफी हैं. उन्होंने बताया कि इतिहासकारों का कहना है कि चीनी यात्री फाहियान ने अपने यात्रा वृतांतों में लौरियानंद गढ़ स्थित अंगार स्तूप की दूरी भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल से करीब 12 योजन यानी 140 किलोमीटर बताया है. यह दूरी वर्तमान कुशीनगर से नहीं बल्कि सीवान से सटीक है. शाम में बौद्ध भिक्षु पुन: मटुकछपरा गांव के पांडेय बाबा के पास गये. उन्होंने ने यहां पर ग्रामीणों द्वारा खुदाई कर निकाले गयीं प्राचीन मूर्तियों को देखा.

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