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पांच असिस्टेंट के भरोसे है कुष्ठ उन्मूलन अभियान

विभागीय उपेक्षा के कारण पुनर्जीवित नहीं हो सका राजेंद्र कुष्ठ सेवाश्रम जिले के करीब आधा दर्जन प्रखंड कुष्ठ रोग के हैं हाइ रिस्क जोन तीन साल पहले विभाग ने हाइ रिस्क जोन मान पीएमडब्ल्यू की बहाली के दिये थे निर्देश पीएमडब्ल्यू की बहाली के लिए अभ्यर्थियों ने आवेदन तो किया,पर नहीं हुई बहाली सीवान : […]

विभागीय उपेक्षा के कारण पुनर्जीवित नहीं हो सका राजेंद्र कुष्ठ सेवाश्रम

जिले के करीब आधा दर्जन प्रखंड कुष्ठ रोग के हैं हाइ रिस्क जोन

तीन साल पहले विभाग ने हाइ रिस्क जोन मान पीएमडब्ल्यू की बहाली के दिये थे निर्देश

पीएमडब्ल्यू की बहाली के लिए अभ्यर्थियों ने आवेदन तो किया,पर नहीं हुई बहाली

सीवान : जिले में राष्ट्रीय कार्यक्रम कुष्ठ उन्मूलन अभियान मात्र पांच नॉन मेडिकल असिस्टेंट के भरोसे चल रहा है. करीब तीन साल पहले विभाग ने प्रीवीलेज रेट एक से अधिक होने पर जिले को कुष्ठ बीमारी के मामले में हाइ रिस्क जाेन मान कर सभी पीएचसी में एक-एक पारा मेडिकल वोलेंटियर बहाली करने के लिए जिला स्वास्थ्य समिति को निर्देश दिया था.

अभ्यर्थियों ने पद के लिए आवेदन तो किया, परंतु जिला स्वास्थ्य समिति ने बहाली की प्रक्रिया को ठंडे बस्ते में डाल दिया.बताया जाता है कि अगर पीएमडब्ल्यू की बहाली नहीं हुई, तो भविष्य में इस मद में जिले काे आवंटन नहीं मिल पायेगा.

वर्तमान में पीएचसी में कुष्ठ बीमारी के इलाज की व्यवस्था ओपीडी में मरीजों को देखने वाले डॉक्टरों के भरोसे है. पीएचसी व अन्य सरकारी अस्पतालों में कुष्ठ बीमारी के इलाज के लिए न तो डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया गया है और न कोई विभाग का पीएमडब्ल्यू ही प्रतिनियुक्ति है. सबसे अधिक परेशानी कुष्ठ के नये मरीजों की खोज करना है.

विभाग ने कुष्ठ के नये मरीजों को खोजने के लिए समाजसेवी संगठनों का सहयोग लेने का निर्णय लिया है. वैसे किसी नये मरीज को कोई भी थर्ड पर्सन सरकारी अस्पताल में लाता है, तो विभाग मरीज लाने वाले व्यक्ति को दो सौ रुपये प्रोत्साहन राशि देगा.

जिले में करीब 300 से अधिक हैं कुष्ठ के मरीज : जिले में अभी करीब तीन से अधिक मरीज ऐसे हैं, जिनका कुष्ठ का इलाज हो रहा है. जिले के हुसैनगंज, आंदर, रघुनाथपुर, सिसवन, बसंतपुर व जीरादेई प्रखंड कुष्ठ बीमारी के हाइ रिस्क जोन हैं.

इन प्रखंडों में प्रीवीलेज रेट एक से लेकर 2.15 तक है. लेकिन इन क्षेत्रों में कुष्ठ के नये मरीजों को खोजने के मामले में विभाग पूरी तरह फिसड्डी है. सबसे ज्यादा परेशानी कुष्ठ बीमारी से अपंग होने वाले मरीजों को है. जिले में अपंग होनेवाले मरीजों को ऑपरेशन कराने के लिए मुजफ्फपुर जाना पड़ता है. ऐसी बात नहीं है कि एक बार के प्रयास में मरीजों का ऑपरेशन हो ही जाये.

मरीजों को ऑपरेशन के लिए कई बार चक्कर लगाना पड़ता है. विभाग ने कुष्ठ मरीजों के इलाज के लिए जिला कुष्ठ उन्मूलन विभाग में करीब छह माह पहले एक मेडिकल ऑफसर की पदस्थापना तो की, लेकिन फिलहाल उन्हें दूसरे कार्यों में लगा दिये जाने के बाद सदर अस्पताल के स्कीन ओपीडी में मरीजों को नहीं देख पा रहे हैं.

उपेक्षा के कारण नहीं पुनर्जीवित हो सका राजेंद्र कुष्ठ सेवाश्रम : राजेंद्र सेवाश्रम में कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास के लिए कई प्रकार के उद्योग, सर्जरी यूनिट, अच्छी तरह से सुसज्जित प्रयोगशाला, कला फिजियोथेरेपी यूनिट व वोकेशनल ट्रेनिंग वर्कशॉप आदि की व्यवस्था थी. शिलापट्ट बताते हैं कि तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने इस परिसर में कुष्ठ मरीजों के पुनर्वास के लिए लगाये गये कुटीर उद्योगों का उद्घाटन किया था.

मरीजों के इलाज के लिए एक चिकित्सा पदाधिकारी, आठ पीएमडब्ल्यू, एक लैब टेकनीशियन, एक हेल्थ एजुकेटर थे.पूरे सारण जिले को नौ इकाइयों में बांटा गया था. प्रत्येक इकाई में एक ड्राइवर व मरीजों का इलाज करने के लिए चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मी थे. राजेंद्र कुष्ठ सेवाश्रम में कुल 200 कुष्ठ मरीजों को एक साथ भरती करने की व्यवस्था थी. जब तक बाबा जगदीश बीन व राजेंद्र बाबू के निर्देशन इस संस्थान को मिला, तब तक सारण के कुष्ठ रोगियों व कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम ठीक ढंग से चला. उसके बाद सरकारी सहायता बंद होने तथा संस्थान को कुशल नेतृत्व नहीं मिलने से धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता गया.

जिले के हाइ रिस्क जोन वाले प्रखंड

प्रखंड प्रिवीलेज रेट

आंदर 2.15

हुसैनगंज 1.22

रघुनाथपुर 1.25

सिसवन 1.62

बसंतपुर 1.40

जीरादेई 1.36

क्या कहते हैं अधिकारी

कुष्ठ बीमारी के मामले जिले का प्रिवीलेज रेट एक से कम है. कुछ प्रखंडों में एक से अधिक है, जहां इलाज की व्यवस्था की गयी है. कुष्ठ की सभी प्रकार की दवा उपलब्ध है. तीन साल पहले विभाग ने पीएमडब्ल्यू की बहाली करने का निर्देश दिया था. इस बात की जानकारी नहीं है.

डॉ शिवचंद्र झा, सिविल सर्जन

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