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प्राइवेट चिकत्सिक टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में बने बाधक

प्राइवेट चिकित्सक टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में बने बाधक प्रतिबंधित ब्लड जांच के आधार पर मरीजों को दे रहे हैं टीबी की दवाआरएनटीसीपी के अनुसार टीबी मरीजों की नहीं हो पा रही पहचानसीवान . जिले के प्राइवेट डॉक्टरों द्वारा टीबी उन्मूलन के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम आरएनटीसीपी में सहयोग नहीं किये जाने से कार्यक्रम में […]

प्राइवेट चिकित्सक टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में बने बाधक प्रतिबंधित ब्लड जांच के आधार पर मरीजों को दे रहे हैं टीबी की दवाआरएनटीसीपी के अनुसार टीबी मरीजों की नहीं हो पा रही पहचानसीवान . जिले के प्राइवेट डॉक्टरों द्वारा टीबी उन्मूलन के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम आरएनटीसीपी में सहयोग नहीं किये जाने से कार्यक्रम में सफलता नहीं मिल पा रही है. अधिकतर मरीज प्राइवेट डॉक्टरों के पास ही इलाज कराते हैं. इससे स्वाभाविक टीबी के नये मरीज प्राइवेट डॉक्टरों के पास अधिक मिलते हैं. प्राइवेट डॉक्टर जांच के बाद मरीजों को टीबी की दवा तो लिख देते हैं, लेकिन मरीज दवा खा रहा है कि नहीं इससे डॉक्टर को कोई लेना-देना नहीं रहता. टीबी की दवा कड़वी तथा गरम होने के कारण मरीज दवा का कोर्स पूरा नहीं करता तथा वह टीबी का एमडीआर मरीज बन कर सरकारी डॉट सेंटरों में पहुंचता है. यही कारण है कि प्रतिमाह करीब दो सौ से अधिक टीबी एमडीआर के सस्पेक्टेड मरीज डॉट सेंटरों में इलाज के लिए पहुंचते हैं. जिले में अब तक 52 टीबी एमडीआर व दो टीबी एक्सडीआर के मरीज हैं, जिनका इलाज चल रहा है.ब्लड से टीबी की प्रतिबंधित जांच होती है धड़ल्ले से : टीबी के इलाज के लिए प्राइवेट डॉक्टर मरीजों की प्रतिबंधित ब्लड जांच एलाइजा फॉर टीबी धड़ल्ले से करा रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा पर ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने इस ब्लड जांच को प्रतिबंधित करते हुए इस जांच के आधार पर मरीजों को टीबी की दवा नहीं देने की सलाह दी, लेकिन आज भी शहर के प्रतिष्ठित प्राइवेट चिकित्सकों द्वारा प्रतिबंधित इस जांच के आधार पर मरीजों को टीबी की दवा खिला रहे हैं. विभाग व प्राइेवट डॉक्टरों में सहयोग नहीं होने के कारण टीबी की बीमारी के संबंध में होने वाले नये प्रयोगों से प्राइवेट डॉक्टर वंचित रह जाते हैं. नियमानुसार प्राइेवट डॉक्टरों को टीबी के मरीजों को सरकारी डॉट सेंटरों पर रेफर कर देना चाहिए. सरकारी डॉट सेंटरों में एक तो मरीजों को मुफ्त इलाज व दवा मिल जायेगी, दूसरी ओर टीबी उन्मूलन कार्यक्रम अपने लक्ष्य को पा सकेगा.क्या कहते हैं अधिकारी जनवरी महीने से टीबी के मरीजों के इलाज की प्रक्रिया में बदलाव होने वाला है. मरीजों की शिकायत थी कि प्राइवेट में टीबी की दवा रोज तथा सरकारी में एक दिन के अंतराल पर मिलती है. विभाग ने जनवरी माह से टीबी के मरीजों को रोज खाने वाली दवा उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है. विभाग टीबी उन्मूलन के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार कर मरीजों में विश्वास पैदा करेगा. टीबी बीमारी के उन्मूलन के संबंध में प्राइवेट डॉक्टरों के साथ आइएमए की सहयोग से विचार-विमर्श किया जायेगा. डॉ सुरेश शर्मा, सहायक एसीएमओ सह सहायक उपाधीक्षक

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