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सब्जी से हो रही अधिक स्थिति सुदृढ़

सब्जी से हो रही अधिक स्थिति सुदृढ़ फोटो 09 खेत में लगी गोभी की फसल फोटेा 10 व आदी की फसलबड़हरिया . न संसाधनों के अभाव का रोना, न सरकार से कोई अपेक्षा और न सरकारी व्यवस्था से चिढ़, सिर्फ एक धुन है विकास की नयी इबारत लिखने की. प्रखंड के पश्चिमोत्तर के दर्जन भर […]

सब्जी से हो रही अधिक स्थिति सुदृढ़ फोटो 09 खेत में लगी गोभी की फसल फोटेा 10 व आदी की फसलबड़हरिया . न संसाधनों के अभाव का रोना, न सरकार से कोई अपेक्षा और न सरकारी व्यवस्था से चिढ़, सिर्फ एक धुन है विकास की नयी इबारत लिखने की. प्रखंड के पश्चिमोत्तर के दर्जन भर ऐसे गांव हैं, जो सब्जियों का भरपूर उत्पादन कर अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करनेे में जुटे हैं. इनकी आत्मनिर्भरता का राज है इनकी कर्मठता, लगन व कड़ी मेहनत. बड़हरिया प्रखंड के रोहड़ा, भेड़िहारी टोला, नवीहाता, शिवघरहाता, शेखपुरा, कोइरी गांवा, सुंदरी आदि ऐसे गांव हैं, जहां कि हरी सब्जियां मैरवा, कुसौंधी, देवरिया, गोरखपुर सहित शहरों व गांवों की थाली में प्रतिदिन परोसी जाती हैं. हालांकि इन किसानों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन इन्हें न तो सरकार से कोई शिकायत है व न मदद की कोई उम्मीद. दिक्कत आने पर ये कर्मठ किसान अपनी राह खुद गढ़ लेते हैं. बता दें कि इन गांवों के किसान साइकिल, मोटरसाइकिल व अन्य वाहनों पर सब्जियों को लाद सीवान, मैरवा, कुसौंधी व गोपालगंज की मंडियों में पहुंचाते हैं. यह काम सूरज के निकलने के पूर्व पूरा हो जाता है. इधर, मोबाइल सहज-सुलभ हो जाने की वजह से पिछले दशकों के मुकाबले इनका मंडियों तक पहुंचाने वाला काम थोड़ा आसान जरूर हुआ है. इस परिक्षेत्र के सब्जी उत्पादक किसानों से वार्ता के बाद ऐसा जरूर महसूस होता है कि बाजार व कोल्ड स्टोरेज के अभाव का दर्द इन्हें झेलना पड़ रहा है. यदि मंडी नजदीक होती, तो हरी सब्जी आसानी से मंडी में पहुंच जाती व कोल्ड स्टोरेज होते तो नहीं बिक पायी सब्जियां सड़ने-गलने से बच पातीं. इन संसाधनों के अभाव के बीच ये किसान आसमान छूती कीमतों व मजदूरों की कमी के बावजूद ये किसान विकास की नयी इबारत लिखने में जुटे हैं. गोभी, मिर्च, बैगन, कद्दू, छिमी, टमाटर सहित अन्य कई सब्जियों की व्यापक पैमाने पर खेती करने वाले ये किसान अपनी पौधेशाला में भी पौधे भी उगाते हैं. ये पौधशाला इनकी आमदनी का बड़ा जरिया है. इन पौधों को स्थानीय भाषा में बिया कहा जाता है. इन पौधों को गोरेयाकोठी, बसंतपुर व पूर्वी चंपारण के सब्जी उत्पादक किसान ले जाते हैं. बहरहाल, इन्हें प्रशिक्षण देने की जरूरत है ताकि कीटनाशकों व रासायनिक खाद की जगह में किसान जैविक खाद व आयुर्वेदिक दवाअों का प्रयोग कर सकें. क्या कहते हैं सब्जी उत्पादकप्रखंड के शिवघरहाता गांव के बड़े सब्जी उत्पादक व प्रगतिशील किसान अमरजीत प्रसाद कहते हैं कि सरकार व व्यवस्था को कोसने के बजाय मौजूद संसाधनों का सदुपयोग ही बेहतर है. हालांकि इन्हें वार्मिग कंपोस्ट की सामग्री, निकौनी, मशीन, घिरनी वाला सिंचाई यंत्र आदि मुहैया कराये गये हैं, लेकिन यह भी तय है कि खाद व बीज की प्रामाणिक दुकानों का अभाव है. सब्जी तोड़ कर ठेले से मंडी में भेजनी पड़ती है. वहीं शिवघरहाता के एक अन्य किसान पूर्व प्रधानाध्यापक राम बड़ाई कहते हैं कि हम अपने बलबूते सब्जी की खेती कर आत्मनिर्भर हो रहे हैं.सफलता भी मिली है, लेकिन कृषि को उद्योग का दर्जा दिये बगैर किसानों में खुशहाली नहीं आ पायेगी. कभी-कभी मेहनत और लागत के हिसाब से दाम नहीं मिल पाता है. उन्होंने क्षेत्र के बंद पड़े सरकारी नलकूपों को चालू कराने की मांग की है. श्री प्रसाद का मानना है कि सब्जी की सिंचाई की सख्त जरूरत होती है. राहडा के मदन प्रसाद पौधे यानी बिया के सबसे बड़े विक्रेता हैं. श्री प्रसाद का मानना है कि अब बड़ी पूंजी की जरूरत पड़ने लगी है. ऐसे में बैंकों को सब्जी उत्पादकों के प्रति और उदार होने की जरूरत है. वहीं कैलगढ़ के मुन्ना कुमार का कहना है कि नकदी फसलों में सब्जी सबसे बेहतर विकल्प है, लेकिन कच्चा माल होने के कारण जोखिम भी ज्यादा है.

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