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पपौर ही है प्राचीन मल्ल जनपद की राजधानी पावा

सीवान : जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर पूर्व स्थित पचरुखी प्रखंड का पपौर गांव प्राचीन बौद्धकालीन मल्ल जनपद की राजधानी पावा है. ऐतिहासिक तथ्यों, किदवंतियों व समय-समय पर मिले ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने अपने निर्वाण प्राप्ति के पूर्वार्ध में यहां पर काफी समय व्यतीत किया था. सर्वप्रथम […]

सीवान : जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर पूर्व स्थित पचरुखी प्रखंड का पपौर गांव प्राचीन बौद्धकालीन मल्ल जनपद की राजधानी पावा है. ऐतिहासिक तथ्यों, किदवंतियों व समय-समय पर मिले ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने अपने निर्वाण प्राप्ति के पूर्वार्ध में यहां पर काफी समय व्यतीत किया था. सर्वप्रथम डॉ होय नामक अंगरेज विद्वान ने पावा की खोज की थी. उन्होंने यहां पर तांबे के कुछ इंडो-बैक्टेरियन सिक्कों को भी खोजा था.
गौतम बुद्ध अपनी अंतिम यात्रा के क्रम में भोग नगर से चल कर पावा पहुंचे थे और चुंद नामक सोनार के आम्रवन में ठहरे थे. चुंद ने भगवान बुद्ध को भोजन पर आमंत्रित किया. भोजन करने के बाद भगवान बुद्ध को खूनी पेचिश हो गया. क्लेश होने के बाद भगवान बुद्ध कुशीनारा की ओर रवाना हुए, जहां उन्हें निर्वाण प्राप्त होने की बात कही जाती है. पपौर गांव के बगल में मटुक छपरा गांव है, जो भग्नावशेषों पर बसा है. 1978 में ग्रामीणों ने स्वयं खुदाई कर यहां से पालकालीन तारा व विष्णु के अतिरिक्त कई देवी-देवताओं की प्रचीन मूर्तियां निकाली थीं. वे मूर्तियां आज भी गांव के लोगों ने एक जगह स्थापित कर मंदिर का निर्माण कर दिया है.
इनमें से कई दुर्लभ मूर्तियों की चोरी भी हो चुकी हैं. पपौर गांव के युवा कुशेश्वर नाथ तिवारी ने ग्रामीणों की सहयोग से पावा उन्नयन ग्राम समिति का गठन कर मूर्तियों को संरक्षित करने की मांग राज्य सरकार व भारतीय पुरातत्व विभाग से की, लेकिन इस पर कोई ध्यान सरकार द्वारा नहीं दिया गया.
महादेइया के टीले की खुदाई में मिले हैं प्राचीन अवशेष : पावा उन्नयन ग्राम समिति के संयोजक कुशेश्वर नाथ तिवारी का प्रयास 2015 में रंग लाया और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने पावा में खुदाई करने का फैसला किया. 23 जुलाई को भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद पीके मिश्रा ने भूमि पूजन के बाद खुदाई का काम शुरू कराया. करीब एक माह तक हुई खुदाई में भारतीय पुरातत्व विभाग को कई प्राचीन मृदभांड, ईंट, मिट्टी के खिलौने तथा साधु-संतों के गले में पहनने वाली मिट्टी की बनी कंठी मिली. खुदाई में करीब आठ फुट लंबा तिउर(चूल्हा) मिला, जिसमें कार्बन के अवशेष भी थे.
चूल्हे से पुरातत्वविदों ने अंदाज लगाया कि यहां पर अधिक संख्या में लोगों का खाना एक साथ बनता होगा. करीब एक माह तक खुदाई करने के बाद एएसआइ की टीम वापस चली गयी. लेकिन खुदाई में मिले प्राचीन वस्तुओं के रहस्य से परदा नहीं उठ सका.

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