सीतामढ़ी : स्थानीय रेलवे स्टेशन पर अगर नल से टंकी का पानी पीते हैं तो पीने से पहले यह पता लगा लें कि पानी प्रदूषित तो नहीं है. हो सकता है कि पानी प्रदूषित हो और उस पानी के पीने से तरह-तरह का रोग न हो जाये. अगर टंकी का पानी पीने से बचते हैं और बोतल वाला पानी पीते हैं तो भी संभल कर व बोतल को देख परख कर खरीदें और उसका पानी पीयें.
कारण कि दोनों का पानी कथित तौर पर सुरक्षित नहीं माना जा रहा है. बताया गया है कि स्टेशन परिसर में स्थापित पानी टंकी की साफ-सफाई में कंजूसी बरती जाती है. आशंका है कि सफाई के अभाव में पानी कहीं प्रदूषित न हो गयी हो. बोतल वाला पानी तब खरीद करें जब यह देख लें कि उस पर आइएसआइ मार्का अंकित है. बिना मार्का वाला भी पानी खूब बिकता है.
1918 में बनी थी पानी टंकी
बताया गया है कि ब्रिटिश शासन काल में यानी वर्ष 1918 में स्टेशन परिसर में पानी टंकी का निर्माण कराया गया था. उस दौरान इसी टंकी से कोयला से चलने वाली ट्रेन के इंजन को पानी की आपूर्ति की जाती थी. यात्रियों के पीने के लिए भी काम आता था. बाद में टंकी के पानी का उपयोग सिर्फ पीने के लिए किया जाने लगा. अब भी उसी टंकी से नल के माध्यम से यात्रियों को पेयजल उपलब्ध कराया जाता है. जानकारों का कहना है कि टंकी का पानी सुरक्षित रहे, इसके लिए बीच-बीच में उसमें ब्लिचिंग पाउडर व अन्य दवाइयां डालनी है, पर यह सब न के बराबर किया जाता है.
इसी कारण शंका है कि टंकी का पानी पूरी तरह सुरक्षित होगा. टंकी में जगह-जगह छेद हो गया है, जिससे 24 घंटे पानी गिरता रहता है.
टंकी के आसपास काफी पेड़-पौधे उग आये हैं. मकड़ी का जाल फैला हुआ है. टंकी के नीचे कीचड़ व गंदगी के चलते बहुत से यात्री स्टेशन पर नल से पानी नहीं पीना चाहते. ऐसे लोग पानी भरा बोतल खरीद कर पीते हैं. उक्त टंकी की सफाई कब की गयी थी, इसका ठोस जवाब कोई नहीं दे पा रहा है. टंकी पर सफाई की तारीख का उल्लेख है, लेकिन वर्ष का उल्लेख नहीं रहने से किसी को भी यह पता नहीं चल पा रहा है कि किस वर्ष सफाई की गयी थी. शहर स्थित सरस्वती विद्या मंदिर के दो छात्र क्रमश: राजीव व कौशिक कुमार ने पूर्व में जल संरक्षण विभाग को पत्र भेज उक्त टंकी की सफाई की बाबत शिकायत की थी. कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी.