सीतामढ़ीः जानकी जन्मभूमि श्री सीतामढ़ी धाम की 69 वीं 84 कोसी परिक्रमा बुधवार को बथनाहा बीआरसी पर पहुंची. जहां वृंदावन, अयोध्या, चित्रकूट व जनकपुर समेत देश के कोने-कोने से आये साधु संत व महिला-पुरुष श्रद्धालुओं की उपस्थिति में श्री सीता राम लखन की डोली की पूजा-अर्चना की गयी और भोग लगाया गया.
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84 कोसी परिक्रमा की टोली बथनाहा पहुंची
सीतामढ़ीः जानकी जन्मभूमि श्री सीतामढ़ी धाम की 69 वीं 84 कोसी परिक्रमा बुधवार को बथनाहा बीआरसी पर पहुंची. जहां वृंदावन, अयोध्या, चित्रकूट व जनकपुर समेत देश के कोने-कोने से आये साधु संत व महिला-पुरुष श्रद्धालुओं की उपस्थिति में श्री सीता राम लखन की डोली की पूजा-अर्चना की गयी और भोग लगाया गया. महिलाएं पारंपरिक भक्ति […]
महिलाएं पारंपरिक भक्ति गीत पर झूम रही थी.
परिक्रमा मंडली द्वारा बताया गया आगामी आठ मई को जानकी नवमी के पूर्व 20 अप्रैल से महंत विनोद दास के नेतृत्व में जानकी मंदिर, उर्विजा कुंड से चल कर राजोपट्टी शिवालय, सिमरा हनुमान मंदिर व लगमा पहुंची. जहां से 22 अप्रैल को लगमा से परिक्रमा प्रारंभ हुआ. मदनपुर, परशुरामपुर, रेवासी, पकड़ी व बगही मठ आदि स्थानों पर विश्रम व राजभोग भंडार हुआ. आठ मई को परिक्रमा की समाप्ति होगी.
क्या हैं मान्यता
मिथिला में 12 वर्ष तक अकाल पड़ा था. पानी के लिए प्रजा में त्रहिमाम मचा था. लंका पति रावण ने ऋषि-मुनियों से कर वसूल कर एक घड़ा में रखा था. आकाशवाणी हुआ कि वह घड़ा जहां भी रहेगा, वहां का विनाश हो जायेगा. रावण व विदेह राजा जनक दोनों शिव भक्त थे. किसी शिव मंदिर में दोनों के बीच शास्त्रर्थ हुआ, जिसमें रावण की हार हुई. इसी बैर से रावण ने उक्त घड़ा को जानकी मंदिर के पास जमीन में गाड़ दिया. तब से अकाल पड़ गया. प्रजा की रक्षा के लिए विदेह जनक 11 वर्ष 11 माह तक प्रजा की सेवा करते रहे. तब आकाशवाणी हुआ कि यहां का राजा अपने हाथ से हल चलायेंगे, तब बारिश होगी. तब राजा जनक गिरमिशानी स्थित हलेश्वर नाथ शिव लिंग की स्थापना व पूजा अर्चना कर हल चलाना शुभारंभ किये. पुनौरा में सीता का प्राकट्य हुआ. उसी मां सीता के नाम पर यहां नाम सीतामढ़ी पड़ा.
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