Gandhi Jayanti: 96 साल पहले आज के दिन 1925 में डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ दानापुर से मलखाचक पहुंचे थे गांधी जी

Happy Gandhi Jayanti: मलखाचक का क्रांतिकारी इतिहास रहा है. 1857 के गदर में वीरता दिखाने वाले चचवा इसी गांव के थे. शस्त्र और शास्त्र के अद्भुत प्रतीक माने जाने वाले राम विनोद सिंह भी यहीं के थे.

By Prabhat Khabar | September 30, 2021 11:29 AM

दिघवारा. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अपने देश में ऐसी प्रतिष्ठा रही है कि वे देश में जिस जगह पर भी ठहरे वहां लोगों ने उनका स्मारक बना दिया व उस इलाके के लिए वह स्थान तीर्थ बन गया. मगर कुछ ऐसे जगह हैं जहां गांधी के आने के बाद आज भी वह जगह गुमनाम होते जा रहा है. दिघवारा प्रखंड के मलखाचक का गांधी कुटीर ऐसा ही एक जगह है, जहां 30 सितंबर 1925 को गांधी स्वयं आये थे.

विडंबना कहिए कि ऐसे महत्वपूर्ण स्थल पर गांधी जयंती व गांधी की पुण्यतिथि पर कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं होता है. बस अतीत के यादों के सहारे गांधी कुटीर के इतिहास को संजोया जा रहा है. कुछ स्थानीय लोगों को छोड़ दें तो गांधी कुटीर के प्रति आम लोगों का उपेक्षित व्यवहार भी इसके लिए जिम्मेदार है. अगस्त 2019 में बिहार सरकार द्वारा गांधी कुटीर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की स्वीकृति मिली, मगर आज भी गांधी कुटीर किसी उद्धारक का इंतजार कर रहा है. 96 साल पहले जिस जगह पर गांधी आये थे, उस जगह को भावी पीढ़ी कैसे याद करेगी,यह बड़ा सवाल है.

क्रांतिकारियों की भूमि के नाम से था मशहूर

मलखाचक का क्रांतिकारी इतिहास रहा है. 1857 के गदर में वीरता दिखाने वाले चचवा इसी गांव के थे. शस्त्र और शास्त्र के अद्भुत प्रतीक माने जाने वाले राम विनोद सिंह भी यहीं के थे. क्रांतिकारी आंदोलनों को चलाने के लिए सन 1921 में मलखाचक में इस कुटीर की स्थापना की गयी.

यह कुटीर उस समय खादी उत्पादन में देश भर में प्रसिद्ध था.यहां की उत्पादित खादी कपड़े की अलग पहचान थी. कहने को गांधी कुटीर में खादी कपड़ों का उत्पादन होता था मगर यह परोक्ष रूप से क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन का प्रमुख केंद्र था. योगेंद्र शुक्ला, बैकुंठ शुक्ल, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद व बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों का गांधी कुटीर से गहरा संबंध था. इसी गांव के रामदेनी सिंह ने 18 जून 1931 को हाजीपुर में हुई ट्रेन डकैती में बड़ा बाबू की हत्या कर दी थी जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा दे दी गयी थी.

1921 में मलखाचक में हुई थी कुटीर उद्योग की स्थापना, उत्पादन की देश भर में थी चर्चा

मलखाचक जो क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था वहां खादी के कपड़ों का खूब उत्पादन होता था.1921 में राम विनोद सिंह व अन्य लोगों की पहल पर मलखाचक में एक कुटीर की स्थापना की गयी. इस केंद्र में प्रतिमाह आठ हजार 200 रुपये का खादी का उत्पादन होता था. इसके अलावा इस कुटीर की बिहार के मधुबनी भागलपुर और जमुई में शाखाएं थी. जहां तीन हजार 200 रुपये की मासिक बिक्री होती थी.

आज की तुलना में 1925 में रुपये का जो मूल्य था उसी से इस उद्योग की विशालता और कार्यकुशलता का अंदाजा लगाया जा सकता है. कानपुर में कांग्रेस अधिवेशन में खादी की प्रदर्शनी लगी थी जिसमें गांधी कुटीर का स्टॉल ही सबसे बड़ा स्टॉल था.यहां की उत्पादित कपड़ों की गुजरात समेत अन्य राज्यों में खूब मांग थी.खादी उत्पादन के लिए बारदोली प्रस्ताव पारित होते समय सारण जिले के दिघवारा थाना क्षेत्र में लगभग सात हजार चरखे और पांच सौ करघे कार्यरत थे.

मलखाचक का यह कुटीर राम विनोद सिंह के निर्देशन में काफी उपयोगी काम कर रहा था. आसपास के गांव के 200 जुलाहों का इस केंद्र से घनिष्ठ संबंध था जिन्हें यह चरखे का सूत देकर उनसे तैयार खादर लेता था. सूतों की बुनाई की उन्हें उचित मजदूरी दी जाती थी. 30 सितंबर 1925 में गांधीजी दानापुर के रास्ते पैदल ही इस केंद्र को घूमने आये थे और गांधी कुटीर पहुंचने के बाद यहां पर उत्पादित हो रही खादी के कपड़े को देखते हुए उन्होंने इस इस केंद्र की खूब सराहना की थी. तभी से यह कुटीर गांधी कुटीर के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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