समस्तीपुर: मॉनसून पूर्वानुमान से गदगद कृषि निदेशालय ने चालू वर्ष में जिले के 76 हजार हेक्टेयर भूमि में खरीफ धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया था. लेकिन मॉनसून की दगाबाजी ने किसानों के हौसले को इस कदर पस्त किया कि आच्छादन मात्र 52363 हजार हेक्टेयर भूमि में सिमट कर रह गयी, जो लक्ष्य का 68.90 फीसदी है. इसके बाद शुरू हुई सूखे की स्थिति ने धान के खेतों में दरारें ला दी.
नतीजा धान के साथ किसानों के चेहरे इस कदर पीले हुए कि उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाले डीजल अनुदान भी हरा नहीं कर सका. धान बचाने के लिए चार चरणों में डीजल अनुदान के लिए जिले को कुल 60847000 रुपये आवंटित हुए हैं. फिलहाल जमीन पर दूसरे चरण का ही डीजल अनुदान बंट रहा है. कोषागार से निकासी की गयी 18368947 रुपये में से 17638405 रुपये का वितरण हुआ है. नतीजा धान की फसल चौपट हो चुकी है. इसका कारण जिले में सिंचाई के लिए समुचित साधन का नहीं होना है. किसान महंगे डीजल खरीद कर निजी पंपसेट की मदद से अपने फसल को बचाने की स्थिति में खुद को नहीं पा रहे हैं. जिला प्रशासन के मुताबिक जून से सितंबर 18 तक 856.2 मिमी वर्षा होनी चाहिए. जिसमें 464.3 मिमी हुआ, जो सामान्य से 391.9 मिमी कम है. बताते चलें कि जिले में कृषि योग्य भूमि का कुल रकवा 200724 हेक्टेयर है. इसमें सिंचित भूमि 182940 हेक्टेयर है. यह आंकड़ा फाइलों में सटीक बैठता है. धरातल पर इसकी स्थिति अलग है. यहां पूरी कृषि व्यवस्था मौसम के भरोसे है. ताल तलैयों में पानी नहीं है. जिले में 1960 के दशक में लगाये गये राजकीय नलकूप दम तोड़ रही है. फिलहाल पुराने 254 राजकीय नलकूपों में से 89 चालू हालत में है. नाबार्ड के द्वारा लगाये 129 नये नलकूप पांच वर्षो से बिजली कनेक्शन की बाट जोह रहा है. इसी तरह उद्वह सिंचाई योजना के 99 इकाई में से मात्र 9 चालू हालत में है. इसका भी किसानों को सही लाभ नहीं मिलता है. बार्ज सिंचाई परियोजना के तहत 134 संयंत्र दिये गये थे. लेकिन ताल तलैये में पानी नहीं रहने के कारण यह भी बेकार हो गये हैं. नतीजा खेतों में उभरी दरारों ने किसानों को तार-तार कर दिया. दूसरी ओर बाढ व अतिवृष्टि के कारण मोहिउद्दीननगर, मोहनपुर, विद्यापतिनगर व पटोरी प्रखंडों की 10897.76 हेक्टेयर भूमि में लगी आधी फसल नष्ट हो गयी है. कुल मिला कर इस वर्ष भी खरीफ का मौसम किसानों के लिए घाटे का सौदा ही साबित हुआ.