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… यहां धर्म के नाम पर फर्क करना है मुश्किल

… यहां धर्म के नाम पर फर्क करना है मुश्किल यहां मुसलमानों से ज्यादा हिंदु मनाते हैं मुहर्रमपूरे गांव में भ्रमण करता है ताजियासांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा मिसाल है बनगांव कुमार आशीष/सहरसाधर्म व मजहब को सामने रख समाज को बांटने की साजिश पूरे देश में चल रही है. इसके बावजूद सूबे में ब्राह्मणों की बाहुलता […]

… यहां धर्म के नाम पर फर्क करना है मुश्किल यहां मुसलमानों से ज्यादा हिंदु मनाते हैं मुहर्रमपूरे गांव में भ्रमण करता है ताजियासांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा मिसाल है बनगांव कुमार आशीष/सहरसाधर्म व मजहब को सामने रख समाज को बांटने की साजिश पूरे देश में चल रही है. इसके बावजूद सूबे में ब्राह्मणों की बाहुलता वाले गांव बनगांव की खासियत मिसाल कायम करती है. होली के मौके पर गांव के मुसलमानों के घर पुआ व पकवान बनते हैं तो तजिया में जंगी बन गांव के ब्राह्मण युवक मजहबी दीवार को ठेंगा दिखाने का काम करते हैं. दूसरे जगहों से आने वाले लोगों को पर्व-त्योहार के मौके पर धार्मिक फर्क करना मुश्किल हो जाता है. एक तरफ देश में धर्मान्धता की खाई बढ़ती जा रही है, वहीं जिला मुख्यालय से महज आठ किमी पश्चिम स्थित बनगांव में गंगा जमुनी तहजीब हिलकोर मार रही है. सांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा मिसाल पेश करते इस गांव में विभिन्न जाति व धर्म के लोग रहते हैं. मनोकामना पूर्ण होने पर हिंदू समुदाय के लोग भी जंगी बन करबला पहुंचते हैं. ताजिया निर्माण करते है हिंदुबनगांव में मुसलमानों की आबादी भी अच्छी खासी है. जो हमेशा से बनगांव के सामाजिक व राजनीतिक उत्थान में अपनी भूमिका निभाते आये हैं. मुहर्रम, ईद, बकरीद हो या फिर चालीसवां, मुसलमानों के सभी पर्व-त्योहार दशकों से हिंदु और मुस्लिम परिवार मिलकर मनाते चले आ रहे हंै. इस पर्व में पूरा गांव उत्साहित और आनंदित रहता है. मुहर्रम के अवसर पर हिंदु संप्रदाय से जुड़े युवकों की टोली गांव भर में चंदा इकट्ठा करती है. उन्हीं के जिम्मे शेष सारे कामों की जिम्मेवारी होती है. ताजिया बना रहे गांव के लोग बताते हैं कि दुर्गा पूजा, होली व छठ की तरह ही मुहर्रम का भी इंतजार रहता है. गांव के युवकों को बचपन से ही मुहर्रम के गीत गाना, लड़वारी खेलना आता है. गांव का हिस्सा हैं मुसलमानगांव के मुखिया धनंजय झा कहते हैं कि अब्दुल, आलम, शाहीद सभी गांव के अंग हैं. इनके बिना बनगांव की परिकल्पना संभव नहीं है. हममें कोई धार्मिक संकुचन नहीं है. हमारे पर्वों में सुल्तान और इसके त्योहारों में हमारे पूर्वजों के समय से ही हम शरीक होते आये हैं. उन्होंने बताया कि बाबा लक्ष्मीनाथ के प्रति गांव के मुसलमानों की भी आस्था है. पूर्वजों के संस्कार भी कायम हैं. अब्दुल चाचा, आलम भैया जैसे संबोधन बच्चे भी करते हैं. होली के मौके पर गांव के हिंदु हो या मुसलमान एक दूसरे के कंधे पर सवार होकर घूमते हैं. फोटो – जंगी 3 – सड़कों पर दौड़ लगाते जंगी (फाइल फोटो).

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