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बीएसएनएल : बेसिक, मोबाइल के बाद ब्रॉडबैंड भी रूला रहा

सहरसा मुख्यालय: साल 1994 के आसपास ही लोगों ने बीएसएनएल माने ‘भाई साहब नहीं लगेगा’ का जुमला दिया था. गांधी पथ में बीएसएनएल भवन का शिलान्यास करने आये तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री डॉ शकील अहमद ने लोगों के बीच प्रचलित इस जुमले का खंडन करते कहा था कि बीएसएन माने-‘भाई साहब निश्चित लगेगा’ है. लेकिन […]

सहरसा मुख्यालय: साल 1994 के आसपास ही लोगों ने बीएसएनएल माने ‘भाई साहब नहीं लगेगा’ का जुमला दिया था. गांधी पथ में बीएसएनएल भवन का शिलान्यास करने आये तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री डॉ शकील अहमद ने लोगों के बीच प्रचलित इस जुमले का खंडन करते कहा था कि बीएसएन माने-‘भाई साहब निश्चित लगेगा’ है. लेकिन दो दशक से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी बीएसएनएल की व्यवस्था में तनिक भी सुधार नहीं हुई.
पहले बेसिक फोन, फिर मोबाइल और अब ब्रॉडबैंड की सेवा भी रोज लोगों को रूला रही है. इधर विभागीय अधिकारी द्वारा सिर्फ फॉल्ट का पता लगाया जा रहा है, कह कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले रहे हैं. जबकि इंटरनेट पर आश्रित रहने वाले दर्जनों रोजगार बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. वे दिन-दिन भर इंटरनेट के कनेक्ट होने का इंतजार करते रह जाते हैं.
कब तक लगाये रहें टकटकी
26 मई के प्रभात खबर के अंक में यह प्रकाशित किया गया था कि सहरसा, मधेपुरा व सुपौल तीनों जिलों में जो भी बेसिक फोन के 8710 उपभोक्ता बचे हैं. उनमें से 90 प्रतिशत लोगों ने ब्रॉडबैंड की सुविधा के लिए ही बेसिक फोन का कनेक्शन ले रखा है. लेकिन निगम का ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं क ो सिरदर्द देने के सिवा कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करा पा रहा है. स्थिति यह है कि दिन भर में कभी-कभार मिनट दो मिनट के लिए इंटरनेट कनेक्ट होता है. फिर शेष समय तक लोग मोडेम के लालबत्ती को निहारते रह जाते हैं. पिछले एक महीने से निगम की व्यवस्था ने तो हद की सभी सीमाओं को पार दी है. बीते रविवार व मंगलवार को तो इंटरनेट झपकी लेने तक नहीं आयी. गुरुवार को 11 बजे दिन के बाद भी यही आलम रहा. कभी फोन से डायल टोन गायब तो मोबाइल में सभी लाइनें व्यस्त हैं की जानकारी दी जाती है और इंटरनेट कनेक्ट करने पर ‘दिस वेबपेज इज नॉट एवलेबुल’ का बैनर मिलता है.
कैसे भरेंगे ऑन लाइन फॉर्म..!
छोटी से बड़ी कंपनियां अथवा सरकारी नौकरी के लिए आवेदन अब ऑन लाइन ही मांगी जाती है. एडमिट कार्ड व रिजल्ट भी इंटरनेट पर ही प्रकाशित होता है. लिहाजा ऐसे आवेदकों की सुविधा के लिए शहर में दर्जनों इंटरनेट कैफे खुले हुए हैं. उनके रोजगार का साधन वही है. इसके अलावे ट्रेनका तत्काल टिकट भी इंटरनेट पर ही बनता है. रेलवे के काउंटर से सभी यात्रियों को टिकट मिल पाना संभव नहीं है. जेनरल इ-टिकट के भी दर्जनों काउंटर खुले हैं. प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया का कारोबार भी इसी इंटरनेट पर निर्भर है. ऑन लाइन शॉपिंग, इ-टेंडर सब इंटरनेट के सहारे ही होते हैं. डीबी रोड में कैफै चलाने वाले विद्यासागर ने बताया कि बीएसएन के भरोसे रहता तो कैफे खुलने से पहले बंद हो जाती. उन्होंने शुरू से ही निजी कंपनियों की सेवा ले रखी है. बीएसएनएल की बरबाद हो चुकी सेवा से ऐसे सभी कारोबार बरबाद होने लगे हैं या निगम से विमुख हो गए हैं. लेकिन उपभोक्ताओं को सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
क्या कहते हैं अधिकारी
बीएसएनएल के एसडीओ दिनेश चंद्र दास ने बताया कि बार-बार हो रहे फॉल्ट का पता लगाया जा रहा है. शीघ्र ही इसे ठीक कर लिया जायेगा.

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