बिहार में पूर्णिया समेत केवल दो ही हैं राज्य पुस्तकालय
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बदहाली के दौर से गुजर रहा है राज्य पुस्तकालय
बिहार में पूर्णिया समेत केवल दो ही हैं राज्य पुस्तकालय बिजली व पत्र-पत्रिकाओं का बिल भी बकाया पूर्णिया : सुनहरे अतीत और बदहाल वर्तमान के बीच जिला मुख्यालय में स्थित राज्य पुस्तकालय लंबे समय से बदहाली के दौर से गुजर रहा है और अस्तित्व के लिए आखिरी लड़ाई लड़ रहा है. विडंबना यह है कि […]
बिजली व पत्र-पत्रिकाओं का बिल भी बकाया
पूर्णिया : सुनहरे अतीत और बदहाल वर्तमान के बीच जिला मुख्यालय में स्थित राज्य पुस्तकालय लंबे समय से बदहाली के दौर से गुजर रहा है और अस्तित्व के लिए आखिरी लड़ाई लड़ रहा है. विडंबना यह है कि फणीश्वर नाथ रेणु की इस शिल्पभूमि पर पुस्तकालय का पुरसाहाल कोई नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि बिहार में केवल दो स्टेट लाइब्रेरी हैं जिनमें से एक पूर्णिया का यह राज्य पुस्तकालय है. इतना अहम पुस्तकालय होने के बावजूद सिन्हा लाइब्रेरी की ओर से इसकी न सिर्फ हकमारी की जा रही है
बल्कि इसके विकास कोष पर भी वह कुंडली मार बैठा हुआ है. यही वजह है कि पिछले पांच सालों से कोष में 50 लाख रुपये रहते हुए भी जिला राज्य पुस्तकालय पाई-पाई का मोहताज है. दो लाख का बिजली बिल तो दूर दो महीने के पत्र-पत्रिकाओं का बिल भी उसपर भारी गुजर रहा है.
कमेटी के अभाव में खर्च नहीं हो रहा 50 लाख
पांच साल पहले शहर के थाना चौक स्थित जिला राज्य पुस्तकालय के विकास के लिए 50 लाख रुपये आवंटित किए गए. इस राशि के खर्च के लिए पटना स्थित सिन्हा लाइब्रेरी से कमेटी गठन के लिए मार्गदर्शन की मांग की गई. हालांकि पांच साल के बाद भी इस बारे में सिन्हा लाइब्रेरी की ओर से गाइडलाइन नहीं दी गई है. नतीजतन 50 लाख रुपये यूं ही पड़े हैं. पुस्तकालयकर्मी बताते हैं कि अब तो सिन्हा लाइब्रेरी की ओर से राशि वापस लेने की बात की जाती है.
जमीन पर बिखरी हैं बहूमूल्य किताबें : विकास मद से राशि नहीं मिलने के कारण पुस्तकालय में सेल्फ का अभाव है. इस हालत में बड़ी संख्या में बहुमूल्य किताबें जमीन पर बिखरी रहती हैं. जबकि कोलकाता के एक फाउंडेशन की ओर से हर साल बड़ी संख्या में दानस्वरूप किताबें मिलती हैं. हाल में कई पुरानी और दीमक लगीं किताबों को नष्ट कर नई किताबों को सेल्फ में जगह दी गई है. फिर भी नई खेप में मिल रहीं किताबों को जमीन पर रखने की मजबूरी है.
शिक्षक चला रहे हैं पुस्तकालय : राजकीय कन्या उच्च विद्यालयों के दो शिक्षक को जिला राज्य पुस्तकालय में प्रतिनियुक्त किया गया है जिससे मूल विद्यालय में पठनपाठन में दिक्कत हो रही है. मूल विद्यालय की ओर से इन शिक्षकों का प्रतिनियोजन रद्द करने की मांग की गयी है. यह मसला सिन्हा लाइब्रेरी तक भी पहुंचा पर वहां से इस दिशा में कोई कवायद नहीं की जा रही है.
50 लाख रुपये की योजना से खासकर वाचनालय को विस्तार देने की योजना है. विस्तार के साथ-साथ वाचनालय को सुविधा संपन्न भी करना है. इसके अलावे अन्य विकास कार्य भी किए जाने हैं. वर्तमान में वाचनालय का आकार काफी छोटा है. इसके अलावे पुस्तकालय की घेराबंदी की भी बात है. हालांकि रुपये के अभाव में यह योजना अधर में है.
65 साल पुरानी है लाइब्रेरी
जिला राज्य पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1952 में हुई थी. तब से यह जिले की साहित्यिक गतिविधियों का अहम केन्द्र है. गुजरे जमाने में यहां मूर्धन्य साहित्यकारों और विद्वानों का जमावड़ा होता था. वर्तमान में यह पुस्तकालय प्रतियोगी छात्रों का केंद्र बन गया है. वाचनालय में पत्र-पत्रिकाओं के अध्ययन के लिए रोजाना बड़ी संख्या में प्रतियोगी छात्र यहां जुटते हैं.
जिला राज्य पुस्तकालय के मामले में सिन्हा लाइब्रेरी से जो मार्गदर्शन मिलता है उस अनुरूप कार्रवाई की जाती है. 50 लाख के विकास कोष के बारे में भी गाइडलाइन का इंतजार है. गाइडलाइन मिलते ही फौरन विकास का काम शुरू कर दिया जायेगा.
मिथिलेश प्रसाद, प्रभारी डीइओ.
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