पांच साल बीते, न हुआ विकास, न मिला विशेष पैकेज

शहरी क्षेत्र में शामिल पांच पंचायतों की तसवीर आज भी गांव जैसी ही पूर्णिया : इंतजार के पूरे पांच वर्ष यूं ही गुजर गये, लेकिन नगर निगम से जुड़े उन पंचायतों की सूरत नहीं बदली, जो शहर का हिस्सा बनी थीं. 2011 में गांव से शहर बने उन इलाकों में वार्डों का गठन हुआ, चुनाव […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 19, 2017 5:42 AM

शहरी क्षेत्र में शामिल पांच पंचायतों की तसवीर आज भी गांव जैसी ही

पूर्णिया : इंतजार के पूरे पांच वर्ष यूं ही गुजर गये, लेकिन नगर निगम से जुड़े उन पंचायतों की सूरत नहीं बदली, जो शहर का हिस्सा बनी थीं. 2011 में गांव से शहर बने उन इलाकों में वार्डों का गठन हुआ, चुनाव हुए, पार्षद भी जीते, लेकिन शहरी क्षेत्र में शामिल पांच पंचायतों की तसवीर आज भी गांव जैसी ही है. विकास व बदलाव के सरकारी व विभागीय दावों की न रोशनी यहां पहुंची है और न ही कोई बदलाव होते नजर आ रहा है. पांच वर्ष पूर्व देखे गये सपने दरकते जा रहे हैं. वजह है इन पिछड़े इलाकों को शहर के समकक्ष खड़ा करने के लिए नगर निगम के पास न तो कोई विशेष पैकेज है और न ही कोई अतिरिक्त योजना. अलबत्ता इस इलाके के वाशिंदे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
इन्हें किया गया था शहर में शामिल
वर्ष 2011 में नगर परिषद का विघटन कर नगर निगम का गठन किया गया था. तब पूर्णिया पूर्व के अब्दुल्ला नगर, हांसदा, बेलौरी, मरंगा पूर्व एवं मरंगा पश्चिम पंचायतों को निगम में शामिल कर शहर का हिस्सा बना दिया गया था. इस घोषणा के बाद एक बड़ी आबादी को शहरी होने का सुखद एहसास हुआ था और उनमें उम्मीद बंधी थी कि उनके इलाके में शहरी आबोहवा नजर आयेगी. देखते ही देखते पांच साल बीत गये और खुली आंखों से देखा सपना अधूरा ही रह गया.
पांच वर्षों से नहीं खत्म हो रहा है इंतजार
समय दर समय दिन, महीना व साल बीतता रहा. इन वार्डों में चुने गये प्रतिनिधि व निगम की योजना बनती रही, लेकिन उम्मीदों को पंख नहीं लग सके. हालात पांच वर्ष गुजरने के बाद भी जस के तस बने हुए हैं. सड़कें जर्जर हैं और नालियां नहीं है. सार्वजनिक शौचालय नदारद है. शुद्ध पेयजल से लेकर रोशनी व शहरी चकाचौंध की उम्मीद महज सपना बन कर रह गयी है. यह दीगर बात है कि नगर निगम की नयी पारी में उन इलाकों में भी विकास योजनाएं लोगों तक पहुंची हैं, लेकिन जिस रफ्तार से व जिस आंकड़े में योजनाएं हैं, उससे इन इलाकों को शहर बनने में दशकों लग जायेंगे. फिर भी लोग उम्मीद की किरण जलाये हुए हैं.
विशेष पैकेज के बिना नहीं बदलेगी सूरत
हकीकत यह है कि जिस कदर विकास की योजनाएं सड़क, नाला, बिजली, आवास, पेयजल आदि 46 वार्डों में समानांतर लागू हो रही हैं, ऐसे में उन पांच पंचायतों के पिछड़े इलाकों के संपूर्ण विकास के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. बड़ी बात तो यह है कि शहर के विस्तार के साथ व्यापारिक विस्तार में इन इलाकों का बड़ा योगदान है. शहर के बड़े कारोबारी इन्हीं इलाकों में गोदाम बना रहे हैं. किसान व मजदूरों की भीड़ भी यहां जुटती है और निगम का कोई विशेष पैकेज नहीं है.
सड़क, नाला तक की है बदतर स्थिति
सड़कें जर्जर हैं व मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं. मगर निगम टैक्स की वृद्धि कर शहरी कर वसूलने का शिकंजा दो वर्ष पहले ही कस चुका है. विडंबना यह है कि इन पंचायतों को शहरी सुविधा तो दूर, उसकी जरूरतों की आवश्यक सुविधाएं सड़क व नाला तक नहीं मिला और निगम के बढ़े टैक्स की मार इन इलाकों की वाशिंदों की कमर तोड़ दी है. बहरहाल निगम विकास के दावे कर रहा है और जनता इंतजार कर रही है. अब देखना है कि इन पांच पंचायतों की सूरत शहर की तरह कब तक चमकती है. फिलहाल स्थिति पूर्ववत है व टैक्स को लेकर दिलों में दर्द उफान पर है.

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