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सिंडिकेट के माध्यम से फल-फूल रहा अवैध कारोबार

पूर्णिया : हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा हो जाये’ वाली कहावत फर्जी ट्रांसपोर्ट कारोबार के संदर्भ में सोलह आना सच साबित होती है. इस रास्ते लोग रातों-रात लखपति और करोड़पति बन रहे हैं, लिहाजा यह धंधा तेजी से फल-फूल रहा है. जानकार बताते हैं कि बिना किसी लाइसेंस किसी पूंजी और किसी सिक्यूरिटी के […]

पूर्णिया : हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा हो जाये’ वाली कहावत फर्जी ट्रांसपोर्ट कारोबार के संदर्भ में सोलह आना सच साबित होती है. इस रास्ते लोग रातों-रात लखपति और करोड़पति बन रहे हैं, लिहाजा यह धंधा तेजी से फल-फूल रहा है. जानकार बताते हैं कि बिना किसी लाइसेंस किसी पूंजी और किसी सिक्यूरिटी के लाखों करोड़ों कमाने का शॉर्टकट रास्ता ट्रांसपोर्ट के कारोबार में दिख रहा है. लिहाजा इस काले कारोबार से लोग तेजी से जुड़ने लगे हैं. यही मूल कारण है कि व्यावसायिक मंडी और इसके आसपास फर्जी ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस धंधे में खासकर दबंग और सफेदपोश लोग शामिल हैं.

पैसा कमाने का आसान रास्ता है ट्रांसपोर्ट चलाना. ट्रांसपोर्ट के इस धंधे में रातों रात लखपति और साल दो साल में करोड़पति बनने वालों की कमी नहीं है. शहर में कुछ चुनिंदा ट्रांसपोर्ट कंपनियों को छोड़ दें, तो लगभग दो तिहाई से अधिक ट्रांसपोर्टरों के पास न तो रजिस्ट्रेशन है और न ही वैट व पैन कार्ड ही है. उनके ट्रांसपोर्ट भी भाड़े के सरकारी जमीन या फिर सड़क पर घूमते बिचौलियों के सहारे संचालित हो रहे हैं. यही वजह है कि इन ट्रांसपोर्ट से भाड़े पर ली गयी गाड़ियां जब अनाज सहित गायब हो जाती हैं, तो व्यापारी लुट जाते हैं और ट्रांसपोर्टर शटर गिरा कर गायब हो जाते हैं.
सिंडिकेट के माध्यम से होता है खेल. दरअसल बिना किसी लाइसेंस के चलने वाले ट्रांसपोर्ट कंपनियों को संचालित करने वालों के पास सब कुछ फर्जी होता है. उनके चालान भी फर्जी होते हैं. जिन पर ट्रांसपोर्ट के रजिस्ट्रेशन नंबर दर्ज नहीं होते हैं. इतना ही नहीं ड्राइवर के लाइसेंस से लेकर कई दफा गाड़ियों का नंबर प्लेट और कागजात भी फर्जी होते हैं. अधिकांश तौर पर ऐसी ही गाड़ियों से लदा अनाज गायब हो जाता है. इस खेल में पूरा का पूरा सिंडिकेट जुड़ा होता है और इनके हिस्से भी पहले से तय होता है.
पंचायत में होता है फैसला. इस तरह के अधिकांश मामले पंचायत से ही निपटाये जाते हैं, जहां पंचायत में ट्रांसपोर्टरों की खूब चलती है. किसी वजह से अगर मामला थाने तक पहुंचा भी, तो मुकदमा गाड़ी और ड्राइवर पर होता है और ट्रांसपोर्टर सीधा बच निकलता है. फिर पुलिस जिस गाड़ी को ढूंढ़ती है उसका नंबर व ड्राइवर फर्जी निकलता है. हालांकि इस खेल में कभी-कभार पुलिस को सफलता भी मिलती है, तो मामला तारीखों में उलझता रह जाता है और अंतत: मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है.
खेल में शामिल है बड़ा नेटवर्क
फर्जी ट्रांसपोर्ट का यह खेल बड़ी ही शातिराना अंदाज में खेला जाता है. इस खेल का नेटवर्क नेपाल व बंगाल से लेकर यूपी, दिल्ली व पंजाब तक एक तिलिस्मी जाल की तरह फैला है. इसमें ट्रक ड्राइवर से लेकर अनाज खपाने वाले और स्थानीय ट्रांसपोर्टर की सहभागिता रहती है. जानकारों की मानें तो ट्रकों पर लदा अनाज लाखों का होता है. एक बार अनाज लदी गाड़ी गायब होने के बाद उसे ढूंढ़ना पुलिस के लिए भी टेढ़ी खीर होती है.

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