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कुहासे में चौराहे से टकराता है वाहनें

उपेक्षा. एक दशक पूर्व हाइमास्ट लाइट लगाने की हुई थी घोषणा गुलाबबाग चौराहा का निर्माण के साथ सरकारी स्तर पर हाइमास्ट लगाने की घोषणा हुई थी. लेकिन अब तक रोशनी नहीं जली. कोहरे के दौरान बड़े वाहन चौराहे से अक्सर टकराते हैं. पूर्णिया : वर्ष 2006 में आम लोगों से जो वादा किया था, वह […]

उपेक्षा. एक दशक पूर्व हाइमास्ट लाइट लगाने की हुई थी घोषणा

गुलाबबाग चौराहा का निर्माण के साथ सरकारी स्तर पर हाइमास्ट लगाने की घोषणा हुई थी. लेकिन अब तक रोशनी नहीं जली. कोहरे के दौरान बड़े वाहन चौराहे से अक्सर टकराते हैं.
पूर्णिया : वर्ष 2006 में आम लोगों से जो वादा किया था, वह एक दशक बाद भी अधूरा है. इस एक दशक की यात्रा में शहर की सूरत भले ही बदल गयी, लेकिन गुलाबबाग चौराहा आज भी वादाखिलाफी का गवाह बना हुआ है.
जब फोरलेन के निर्माण के साथ गुलाबबाग चौराहा का निर्माण हुआ था तो सरकारी स्तर पर हाइमास्ट लगाने की घोषणा हुई थी. मगर अधिकारियों द्वारा किये गये वायदे का इंतजार एक दशक बाद भी स्थानीय लोगों को है. यह चौराहा कई बड़ी दुर्घटनाओं का गवाह बना, मौतें हुई, लोग घायल हुए, लेकिन अधिकारियों की नींद नहीं खुली. पूरब और पश्चिम को जोड़ने वाली गुलाबबाग का यह चौराहा कहने को तो गेटवे ऑफ इस्ट-वेस्ट है. इस चौराहे पर गरमी और बरसात के दिनों में तो मौसम साफ रहता है, लेकिन जाड़े के मौसम में कोहरे में इस गेटवे पर मौत नाचती है.
उत्तर बिहार का दूसरा बड़ा है चौराहा: फोरलेन के निर्माण के बाद गुलाबबाग जीरो माइल का चौराहा वैसे तो बरौनी के बाद दूसरा बड़ा चौराहा है, लेकिन असम से लेकर दिल्ली तक को एक सूत्र में बांधने वाला यह एक अकेला चौराहा है, जहां से प्रतिदिन हजारों गाड़ियां गुजरती है. देश के पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली, बिहार, बंगाल, असम के साथ नेपाल व भूटान के आने-जाने वाली सभी मालवाहक वाहनों के इस चौराहे से गुजरने के कारण इसे गेटवे ऑफ इस्ट-वेस्ट भी कहा जाता है. वैसे तो इस चौराहे के महज 300 मीटर पर उत्तर बिहार की सबसे बड़ी कृषि मंडी होने के कारण सैकड़ों छोटे-बड़े वाहन हर रोज गुजरते हैं. लेकिन बड़ी गाड़ियां जैसे कंटेनर से लेकर भारी मालवाहक वाहन देर रात इस रास्ते से गुजरती है. वजह है असम, बंगाल व भूटान से दिल्ली या अन्य पश्चिमी प्रदेश को जाने वाली गाड़ियां, दिन के तीसरे पहर चल कर अक्सर यहां रात को पहुंचती है. यही हाल पश्चिम से पूरब के तरफ जाने वाली गाड़ियों का है. तकरीबन 300 से अधिक सवारी बसें, जो रात्रि में पटना, सिलीगुड़ी, कोलकाता आदि के लिए चलती है, वह मध्य रात्रि ही इस चौराहे से गुजरती है.
वादा पूरा होने अब भी की प्रतीक्षा कर रहे हैं आमलोग
खतरों के बीच होता है सफर
जाड़े के दिनों में तकरीबन दो माह दिसंबर और जनवरी में इस चौराहे से सुरक्षित गुजरना भगवान का रहम माना जाता है. कारण है कि इन महीनों में शाम ढ़लते ही कोहरा छाने लगता है. ढ़लती रात के साथ कोहरे का परत धुंध बन कर गाड़ियों की रोशनी को कुंठ कर देता है. वहीं इस चौराहे पर हाइमास्ट या वेपर लाइट की व्यवस्था नहीं रहने के कारण हमेशा छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती है. बीते वर्षों में इस चौराहे पर तकरीबन चार मौतों के साथ दर्जन भर लोग भी घायल होकर अस्पताल पहुंच चुके हैं.
अब तक चार लोगों की हो चुकी हैं मौत
वर्ष 2006 में बने फोरलेन के साथ इस चौराहे पर बीते एक दशक के अंदर दर्जन भर छोटी-बड़ी गाड़ियां सीधी टकरायी है. जानकारी अनुसार वर्ष 2006 में फारबिसगंज से बंगाल जा रही बोरा लदी ट्रक के टकराने से चालक-खलासी की मौत हो गयी थी. इस घटना में तीन राहगीर भी घायल हुए थे. जिसमें एक की मौत हो गयी थी. वहीं 2009 के जनवरी माह में जलालगढ़ निवासी युवक इंडिका कार से चौराहे से टकरा गया था. जिसकी मौके पर ही मौत हो गयी थी और उसके तीन साथी बुरी तरह से घायल हो गये. वर्ष 2011 और 2012 में भी दो ट्रकों के टकरा कर पलटने से चालक व खलासी घायल होकर अस्पताल पहुंच गये थे. वहीं छोटी-छोटी दर्जनों घटनाएं यहां घटित होना आम बात है.
फिर छाने लगा है कोहरा, नहीं जली रोशनी
बीते 10 साल से स्थानीय लोगों द्वारा लगातार जीरो माइल चौराहे पर रोशनी की व्यवस्था को लेकर मांग होती रही है. वर्ष 2013-14 में जब जीरो माइल से मरंगा सड़क एनएच 31 का निर्माण व उस सड़क पर वेपर लगाने की योजना बनी थी, साथ ही पूर्णिया-गुलाबबाग मार्ग पर सिक्स लेन बनाने का प्रोजेक्ट बना था, तब तत्कालीन डीएम व एसपी ने इस चौराहे पर हाइमास्ट लगाने का आश्वासन भी दिया था. वक्त गुजरा, कई काल-कलवित हो गये, लेकिन गुलाबबाग चौराहा रौशन नहीं हो सका. जाहिर है रौशन होने का इंतजार आज भी है.

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