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दयानंद को किनारा कर एमओ के पास संतोष ने बनायी थी पैठ

एमओ ब्रजेश कुमार सिंह क्षेत्र में अपनी डीलिंग क्षमता के लिए मशहूर माने जाते थे. उन्हें अपने महकमे में संकटमोचक के रूप में जाना जाता था पूर्णिया : निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की छापेमारी के बाद चर्चा में आये पूर्णिया पूर्व प्रखंड के एमओ ब्रजेश कुमार सिंह क्षेत्र में अपनी डीलिंग क्षमता के लिए मशहूर माने […]

एमओ ब्रजेश कुमार सिंह क्षेत्र में अपनी डीलिंग क्षमता के लिए मशहूर माने जाते थे. उन्हें अपने महकमे में संकटमोचक के रूप में जाना जाता था

पूर्णिया : निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की छापेमारी के बाद चर्चा में आये पूर्णिया पूर्व प्रखंड के एमओ ब्रजेश कुमार सिंह क्षेत्र में अपनी डीलिंग क्षमता के लिए मशहूर माने जाते थे. उन्हें अपने महकमे में संकटमोचक के रूप में जाना जाता था. वह सीधे तौर पर किसी भी मामले में सामने नहीं आते थे, लेकिन विभाग के सिस्टम को ही अपने हित के लिए बखूबी इस्तेमाल की कला उसमें विद्यमान थी. हाल के दिनों में नगर निगम के वार्ड संख्या 45 में अवैध रूप से पीडीएस दुकान का संचालन कर रहा संतोष चौरसिया से उसके संबंध भले ही प्रगाढ़ हो, लेकिन एमओ के शागिर्दों में संतोष इकलौता नहीं था.
संतोष के पूर्व डिमिया छतरजान पंचायत स्थित श्रीनगर गांव में पीडीएस डीलर दयानंद यादव एमओ का सबसे करीबी माना जाता था. संतोष और दयानंद दोनों श्री सिंह के दायां और बायां हाथ माना जाता था. सूत्र बताते हैं कि बीते करीब 02-03 माह से एमओ के संबंध दयानंद से बिगड़ने लगे थे. ऐसे संबंधों में मतभेद क्यों होते हैं, यह सहज ही समझा जा सकता है. चर्चा तो यह है कि अपनी पैठ बनाने के लिए संतोष ने ही श्री सिंह और श्री यादव के बीच मतभेद की दीवार खड़ी की.
पदस्थापन मामले में भी ब्रजेश का था दायरा विस्तृत : एमओ ब्रजेश, संतोष चौरसिया व दयानंद यादव की जोड़ी पान के पत्ते की तरह थी. सितंबर 2014 में पूर्णिया पूर्व प्रखंड में योगदान के साथ ही संतोष व दयानंद ने एमओ से नजदीकी स्थापित कर ली थी. लेकिन डीलिंग में मुख्य भूमिका दयानंद की ही होती थी. दरअसल एमओ जब भी किसी पीडीएस दुकान का निरीक्षण करने के उपरांत लौटते थे, अथवा किसी पीडीएस दुकानदार के विरुद्ध शिकायत प्राप्त होती थी तो दयानंद ही मध्यस्थ बनता था.
जिसके एवज में एमओ द्वारा भी उसे विभिन्न माध्यमों से अवैध लाभ पहुंचाया जाता रहा. वही संतोष द्वारा एमओ को अपनी सूमो गाड़ी उपलब्ध करायी गयी थी. साल के 365 दिन एमओ इसी गाड़ी की सवारी किया करते थे. सूत्रों का दावा है कि एमओ के बेहतर डीलिंग की वजह से ही उसे पदस्थापन के मामले में लंबा दायरा भी मिलता रहा.
लंबे समय तक उसने पूर्णिया पूर्व व नगर निगम क्षेत्र सहित केनगर और श्रीनगर प्रखंड का भी प्रभार संभाला. करीब 06 माह पूर्व ही उससे केनगर का प्रभार वापस लिया गया था. जबकि श्रीनगर का अभी भी उसके पास अतिरिक्त प्रभार है.
महकमे के नंबर 01 एमओ थे ब्रजेश : एमओ ब्रजेश कुमार सिंह अपने महकमे में एमओ नंबर 01 माने जाते थे. उन्हें वरीय अधिकारियों को प्रभावित करने की गजब की क्षमता थी. साथ ही उसमें काम के लोगों की पहचान की भी विशेष महारथ हासिल थी. लिहाजा पूर्व प्रखंड के एमओ रहते हुए उन्होंने संतोष और दयानंद को अपना हमराज बनाया.
सबसे अधिक दयानंद पर विश्वास करता था. लेकिन बाद में दयानंद अक्सर कई मामले की जानकारी एमओ को नहीं देता था. हालांकि पूछताछ करने पर मामले को डील करने की बात वह स्वीकार कर लेता था. लेकिन बाद में इस तरह की स्थिति लगातार उत्पन्न होने के बाद एमओ और दयानंद के बीच दूरी बढ़ती चली गयी.
इसी दूरी का फायदा उठाते हुए संतोष चौरसिया ने एमओ और दयानंद के बीच मतभेद पैदा किया. संतोष ने इसके लिए वह हर काम किया, जो उसे विश्वासपात्र का दर्जा दिला सकता था. अब जबकि एमओ श्री सिंह निगरानी के जांच के दायरे में है, दयानंद और संतोष जैसे उनके खासमखास भी परेशान हैं.

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