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पुल निगम ने भी पल्ला झाड़ा उपेक्षा. विकास योजना अधर में

पूर्णिया : बाल उद्यान को संवारने की कवायद एक बार फिर पेच में फंसता नजर आ रहा है. दो वर्षों से फाइल में कैद रिपोर्ट धूल फांक रही है और निर्णय से पहले ही पुल निगम ने अब पल्ला झाड़ लिया है. इन स्थितियों में एक बार फिर नववर्ष में राजेंद्र बाल उद्यान में वोटिंग […]

पूर्णिया : बाल उद्यान को संवारने की कवायद एक बार फिर पेच में फंसता नजर आ रहा है. दो वर्षों से फाइल में कैद रिपोर्ट धूल फांक रही है और निर्णय से पहले ही पुल निगम ने अब पल्ला झाड़ लिया है.

इन स्थितियों में एक बार फिर नववर्ष में राजेंद्र बाल उद्यान में वोटिंग और बच्चों की मस्ती का उत्साह फीका रहने की संभावना है. दरअसल राजेंद्र बाल उद्यान को नये सिरे से सजाने-संवारने को लेकर विभागीय तौर पर फेर बदल कर नगर निगम से इसकी आधिकारिक जिम्मेवारी पुल निगम को सौंपी जानी थी. वर्ष 2014 में इसे लेकर निगम ने पूरी रिपोर्ट तत्कालीन डीएम राजेश कुमार को सौंप दिया था. लेकिन संयोगवश जब तक फाइल पर पहल होती, उससे पहले 04 अगस्त 2015 को तत्कालीन डीएम का तबादला हो गया और फाइलों में कैद बाल उद्यान की किस्मत धूल फांक रही है. दो वर्ष बाद अब पुल निगम राजेंद्र बाल उद्यान की जिम्मेवारी लेने से पल्ला झाड़ चुकी है.
गर्दिश में हैं बाल उद्यान
राजेंद्र बाल उद्यान में वैसे तो आज बच्चों और शहरवासियों की भीड़ जुटती है, लेकिन न तो वो उत्साह है और न ही कोई उमंग दिखता है. पिछले पांच वर्षों में लगातार घटती रौनक और खेलने के सामानों का अभाव शहरवासियों को हर रोज निराश कर रहा है. हालात यह है कि वर्ष 2011 में जब उद्यान का नवनिर्माण हुआ था, उसके तीन माह बाद ही इसकी रौनक पर ग्रहण लगना आरंभ हो गया. सबसे पहले वोटिंग बंद हो गयी, कई झूले टूट गये और बच्चों का सुरंग टूट कर बिखर गया. इसके अलावा पानी का फव्वारा भी बंद है. विडंबना तो यह है कि बीते पांच वर्षों में उद्यान की बिगड़ती व्यवस्था पर अब तक कोई पहल नहीं हुई और शहर के दूसरे उद्यानों पर लाखों खर्च की तैयारी जारी है.
तीन वर्ष नगर निगम व दो वर्ष संचिका में बीते
कहते हैं कि अगर कुछ करने की जज्बा दिल में हो तो लोग अंधेरे में भी रोशनी जला देते हैं. लेकिन यहां सब उलटा है. शहर के बीचोंबीच बना राजेंद्र बाल उद्यान उजड़ता रहा और केवल खानापूर्ति के भरोसे एक-एक दिन कटता चला गया. जिस उत्साह और उमंग के साथ राजेंद्र बाल उद्यान का जीर्णोद्धार व उद्घाटन हुआ था, वह नगर निगम के भरोसे तीन वर्षों में समाप्त हो गया. वहीं पुल निगम को सौंपने की कवायद में दो वर्ष गुजर गये. इस प्रकार उद्यान की सूरत दिनोंदिन बिगड़ती चली गयी.

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