पूर्णिया : पूर्ण स्वच्छता और पवित्रता के महापर्व में बांस के बने सूप और डाला का महत्व और पौराणिक परंपरा रही है. छठ पर्व को प्रकृति से जुड़ा महापर्व भी कहा जाता है. लेकिन बीते कुछ वर्षों में बदलते समय और आये सामाजिक बदलाव का असर शुद्धता पवित्रता के इस महापर्व में भी दिखने लगा है. वह यह कि एक तरफ जहां बांस की कीमतें बढ़ी है और सामाजिक बदलाव में महादलित समाज के रहन-सहन में भी बदलाव हुआ, उसे देखते हुए व्रती अब अर्घ्य के लिए पीतल के सूप और पीतल का डाला खरीदने में जुट गयी है.
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परंपराओं में हो रहा है बदलाव, बदल रहा है चलन
पूर्णिया : पूर्ण स्वच्छता और पवित्रता के महापर्व में बांस के बने सूप और डाला का महत्व और पौराणिक परंपरा रही है. छठ पर्व को प्रकृति से जुड़ा महापर्व भी कहा जाता है. लेकिन बीते कुछ वर्षों में बदलते समय और आये सामाजिक बदलाव का असर शुद्धता पवित्रता के इस महापर्व में भी दिखने लगा […]
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