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कोचिंग संस्थानों में छात्रों का किया जा रहा है आर्थिक दोहन
पूर्णिया : शहर हो या ग्रामीण इलाका जिले की हर गली व मुहल्ले में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए हैं. दिन-प्रतिदिन कोचिंग संस्थानों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. साथ ही छात्र-छात्राओं का दोहन और शोषण भी बढ़ रहा है. दरअसल कोचिंग संस्थान पूरी तरह बेलगाम है और सरकार के लाख कवायद […]
पूर्णिया : शहर हो या ग्रामीण इलाका जिले की हर गली व मुहल्ले में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए हैं. दिन-प्रतिदिन कोचिंग संस्थानों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. साथ ही छात्र-छात्राओं का दोहन और शोषण भी बढ़ रहा है. दरअसल कोचिंग संस्थान पूरी तरह बेलगाम है और सरकार के लाख कवायद के बावजूद इन पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है. हालांकि सरकार के स्तर पर भी कवायद के नाम पर खानापूर्ति ही हुई है.
कोचिंग संस्थानों की बढ़ती मनमानी पर नकेल कसने के लिए 30 मार्च 2010 को बिहार सरकार ने बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट पारित किया, लेकिन इसे प्रशासनिक नाकामी कहें या कुछ और जिले में इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका. वैसे एक हकीकत यह भी है कि कानून का अनुपालन कराने में जिला प्रशासन की कभी दिलचस्पी नहीं रही है. इस एक्ट को लागू करने वाला बिहार उस वक्त देश का इकलौता प्रदेश था
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2012-13 में हुई थी प्रशासनिक पहल
बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट 2010 का अनुपालन कराने के लिए एकमात्र पहल वर्ष 2012-13 में की गयी थी. हालांकि उस पहल का भी कोई नतीजा नहीं निकल सका था. तत्कालीन डीएम मनीष कुमार वर्मा ने कोचिंग संस्थानों की मनमानी को गंभीरता से लिया था. श्री वर्मा ने इसके लिए निर्धारित प्रारूप के अनुसार कमेटी का भी गठन किया. इसमें डीएम इसके अध्यक्ष बने. वही पुलिस अधीक्षक को कमेटी का उपाध्यक्ष,
जिला शिक्षा पदाधिकारी को सचिव व संबद्ध कॉलेज सदस्य के रूप में महिला कॉलेज के प्राचार्य को कमेटी का सदस्य बनाया गया. डीएम के आदेश पर कुछ कोचिंग संस्थानों में छापेमारी भी की गयी थी. हालांकि तब कोचिंग संचालकों ने आरोप लगाया था कि यह छापेमारी उन्हें डराने-धमकाने के लिए कराया गया था, लेकिन चाहे जो भी हो अभियान के कारण 138 कोचिंग संचालकों ने तत्काल ही पंजीयन के लिए जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में आवेदन जमा किया था.
कोचिंग संचालकों की भी नहीं है दिलचस्पी
जानकार बताते हैं कि कोचिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत आने के लिए कोचिंग संचालकों में भी दिलचस्पी नहीं है. प्रशासन मौन रहे तो कोई भी कोचिंग पंजीयन के लिए आवेदन तक नहीं करेगा. इसकी मूल वजह यह कि कोचिंग रेगुलेशन एक्ट के कई सुविधाओं के प्रावधान भी हैं, जो कोचिंग संस्थानों के लिए उपलब्ध कराना मुश्किल है.
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