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माता स्थान में होती है वांछित मनोकामना पूरी

माता स्थान में होती है वांछित मनोकामना पूरी केनगर. प्रखंड के आदमपुर गांव स्थित माता स्थान शक्तिपीठ मंदिर आस्थावान भक्त श्रद्धालुओं का प्रसिद्ध साधना स्थल है. यही वजह है कि यहां पूजा-पाठ एवं ध्यान योग के लिए आने वाले धर्मप्रेमियों की संख्या में व्यापक वृद्धि हो रही है. मान्यता है कि जो भक्त पूर्ण समर्पित […]

माता स्थान में होती है वांछित मनोकामना पूरी केनगर. प्रखंड के आदमपुर गांव स्थित माता स्थान शक्तिपीठ मंदिर आस्थावान भक्त श्रद्धालुओं का प्रसिद्ध साधना स्थल है. यही वजह है कि यहां पूजा-पाठ एवं ध्यान योग के लिए आने वाले धर्मप्रेमियों की संख्या में व्यापक वृद्धि हो रही है. मान्यता है कि जो भक्त पूर्ण समर्पित भाव से माता की शरण आते हैं, उन्हें मानसिक शांति जरूर मिलती है. साथ ही उनकी वांछित मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है. यह मंदिर जिला से करीब नौ किलोमीटर पश्चिम चूनापुर हवाई अड्डा पक्की सड़क से कुछ ही दूरी पर अवस्थित है. सैकड़ों वर्ष पुराना है मंदिर कहा जाता है कि आज से करीब 400 वर्ष पूर्व आदमपुर गांव होकर कारी कोसी नदी बहती थी. मंदिर के मुख्य पुजारी अयोध्या परिहार ने बताया कि उसी समय उनके पूर्वज प्रेम परिहार (निषाद) जहां आज मंदिर है, उसी जगह जाल से मछली पकड़ते थे. एक दिन उनके जाल में अधिक वजन का कोई वस्तु फंसा, जिसे बड़ी मछली समझ उन्होंने बार-बार जाल को खींचने का प्रयास किया. लेकिन जाल नहीं खींचा जा सका. प्रेम परिहार नदी में उतरे और डुबकी लगा कर जाल टटोला तो माता भगवती की दिव्य कांतिवान प्रतिमा मिली. पास के अपने खेत की झाड़ी में उन्होंने प्रतिमा को रख दिया और मछली शिकार नहीं होने से दुखी होकर खाली हाथ घर लौट गये. एक रात स्वप्न में माता भगवती ने प्रेम परिहार निषाद को प्रतिमा स्थापित कर पूजा-पाठ करने की आज्ञा दी. एक झोपड़ी में वे माता भगवती को स्थापित कर पूजा करने लगे. प्रतिमा चुरायी तो फैली महामारी कहा जाता है कि एक निषाद द्वारा माता भगवती की पूजा किया जाना समीप के गांव चूनापुर के किसी धर्म आडंबरी को अच्छा नहीं लगा. उस धर्म आडंबरी ने एक रात माता की प्रतिमा चोरी कर ली और कारी कोसी के जलीय घास के बीच छिपा दिया. कहा जाता है कि धर्म आडंबरी के घर एवं गांव में तत्काल ही महामारी फैल गयी तथा प्रतिमा चोरी करने वाले वंशहीन हो गये. उधर माता भगवती ने अपने सेवक प्रेम परिहार (निषाद) को स्वप्न में उस स्थान की जानकारी दी जहां प्रतिमा छिपायी गयी थी. सेवक ने मां के बतायी जगह से प्रतिमा प्राप्त किया और पूजा पाठ करने लगे. पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे पुजारी माता स्थान शक्ति पीठ की सेवा की शुरुआत प्रेम परिहार के बाद उनके पुत्र भूटाय परिहार तीसरी पीढ़ी के ताले परिहार एवं महादेव परिहार चौथी पीढ़ी के जीबू परिहार, गिरो परिहार, माता कुशमी देवी परिहार, भोला परिहार तथा मिश्री परिहार ने की. पांचवीं पीढ़ी के सेवक छित्तन परिहार और छठी पीढ़ी के सेवक बौनी परिहार ने माता की सेवा की और कुछ वर्ष पूर्व इनका स्वर्गवास हो गया. वर्तमान में पांचवीं पीढ़ी के अयोध्या परिहार, लखन परिहार, अशोक परिहार, किशनदेव परिहार, राम प्रसाद परिहार, सुरेश परिहार, सुरेश परिहार एवं छठी पीढ़ी के शिवेंद्र परिहार, जीवेंद्र परिहार, प्रवीण परिहार, प्रीतम परिहार, दिलीप परिहार, कनक लाल परिहार, जीवानंद परिहार, मंगल परिहार और भगिनमान देवदत्त सिंह निषाद आदि परिहार परिवार माता भगवती शक्तिपीठ की पूजा-पाठ कर रहे हैं. वर्ष में दो बार लगता है मेला प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के शारदीय नवरात्र एवं कार्तिक मास में काली पूजा पर यहां नवमी और दसमी तिथि को भव्य मेला लगता है. नवमी तिथि को बड़ी संख्या में छाग की बलि पड़ती है. मंदिर परिसर में काल भैरव, माता काली एवं हनुमान जी का अलग-अलग मंदिर स्थापित है. परोरा निवासी दिवंगत गिरो राय ने सर्वप्रथम माता का एक पक्का भवन बनाया इसी गांव के कृष्ण मुरारी चौधरी ने माता स्थान परिसर में भैरव मंदिर के अलावा पुजारी एवं भक्तों का विश्राम भवन बनवाया तथा चाहरदीवारी का निर्माण कराया. दूर-दूर से आते हैं भक्त श्रद्धालु पड़ोसी देश नेपाल, बंगाल, बेगूसराय, खगडि़या, मानसी, भागलपुर, सुपौल, सहरसा, मधेपुर, कटिहार, अररिया एवं किशनगंज आदि जगहों से लोग यहां पूजा-पाठ करने पहुंचते हैं. हालांकि माता शक्तिपीठ में भक्तों की हाजिरी हर रोज लगती पर प्रत्येक मंगलवार, शुक्रवार एवं रविवार को श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ पूजा हेतु यहां उमड़ती है. फोटो: 14 पूर्णिया 37परिचय: आदमपुर का माता स्थान शक्ति पीठ

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