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जज्बा, मेहनत से मिलती है कामयाबी : अजहर

अमौर: सुविधाओं की कमी राह में मुश्किलें बन कर जरूर सामने आती हैं, लेकिन अगर आपको अपने लक्ष्य का पता हो, लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता मालूम हो और कुछ करने का जज्बा हो तो सफलता जरूर कदम चूमती है. उक्त बातें यूपीएससी की परीक्षा में 744 वां स्थान प्राप्त करनेवाले प्रखंड के सहनगांव निवासी […]

अमौर: सुविधाओं की कमी राह में मुश्किलें बन कर जरूर सामने आती हैं, लेकिन अगर आपको अपने लक्ष्य का पता हो, लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता मालूम हो और कुछ करने का जज्बा हो तो सफलता जरूर कदम चूमती है. उक्त बातें यूपीएससी की परीक्षा में 744 वां स्थान प्राप्त करनेवाले प्रखंड के सहनगांव निवासी अजहर कबीर ने रविवार को प्रभात खबर से बातचीत करते हुए कही. बेटे की सफलता पर फक्र करते हुए पिता सेवानिवृत्त शिक्षक कबीरउद्दीन असगर और अम्मी कनीजा खातून ने अल्लाह का शुक्रिया अदा किया.
फारबिसगंज में हुई मैट्रिक तक पढ़ाई. अजहर के पिता मो कबीरउद्दीन असगर फारबिसगंज के डीएस हाई स्कूल में शिक्षक थे. उन्होंने दसवीं की परीक्षा वर्ष 2001 में डीएस हाई स्कूल से पास किया. उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से आर्किटेर में डिप्लोमा की उपाधि वर्ष 2006 में लिया. उसके बाद प्राइवेट नौकरी करते हुए वर्ष 2011 में इतिहास से स्नातक किया. उसके बाद नौकरी छोड़ तैयारी में जुट गये.
खुली आंखों से देखा था सपना. अजहर ने बताया कि जब वे हाई स्कूल में फारबिसगंज में पढ़ा करते थे तो गरीबी, बेरोजगारी, जजर्र सड़कें और लोगों की अन्य मुश्किलों को देख कर परेशानी महसूस होती थी. उन्होंने अपने एक उम्र में बड़े चचेरे भाई से जब पूछा कि लोगों की मुश्किलें कौन कम करेगा, तो उन्होंने बताया कि यह केवल डीए म ही कर सकते हैं. बस उसी के बाद से डीएम बनने का सपना हमेशा देखता रहा.
पिता ने हमेशा की हौसला आफजाई . अजहर ने मुश्किल भरे दिनों को याद करते हुए कहा कि पहली बार प्रारंभिक परीक्षा में भी असफलता मिली. दूसरी बार मुख्य परीक्षा में असफल रहा. इसी दौरान पिताजी सेवानिवृत्त हो चुके थे और मैं आर्थिक परेशानी महसूस करने लगा. लेकिन पिता जी अपने पेंशन के पैसे भेजते रहे और मैंने मना भी किया तो उन्होंने हौसला आफजाई की. यही हौसला मेरी सफलता का राज है.
यह तो पड़ाव, लक्ष्य है दूर. मशहूर उर्दू उपन्यासकार इवने शफी के जासूसी उपन्यास पढ़ने के कायल रहे अजहर ने माना कि ग्रामीण परिवेश में पढ़ाई करने के कारण कई बार मुश्किलें भी सामने आयी. लेकिन वे कभी निराश नहीं हुए. हमेशा अपने को साबित करने की कोशिश में लगे रहे. हीन भावना से भी ग्रसित हुआ लेकिन कुछ कर गुजरने का जज्बा हमेशा प्रोत्साहित करता रहा. सफलता से उत्साहित अजहर ने माना कि ‘यह तो अहम पड़ाव है, खुली आंखों से देखे हुए सपने को हकीकत में तब्दील करना ही उनका अंतिम लक्ष्य है.’

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