पूर्णिया/ भूकंप से बचने के लिए शहर के लोग अपने-अपने तरीके अपना रहे हैं. कई परिवारों में तो रात को सोते समय भूकंप आने की जानकारी के लिए तरह-तरह के नुस्खे भी लोग अपनाने लगे हैं.
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रतजगा कर रहे हैं लोग
पूर्णिया/ भूकंप से बचने के लिए शहर के लोग अपने-अपने तरीके अपना रहे हैं. कई परिवारों में तो रात को सोते समय भूकंप आने की जानकारी के लिए तरह-तरह के नुस्खे भी लोग अपनाने लगे हैं. पूर्णिया सिपाही टोला में मकान संख्या 0176-0199 में भाड़ेदार के रूप में रह रहे एक परिवार के सदस्य सत्यव्रत […]
पूर्णिया सिपाही टोला में मकान संख्या 0176-0199 में भाड़ेदार के रूप में रह रहे एक परिवार के सदस्य सत्यव्रत शानु तो रात के सोते समय बेड के आगे लगे टेबुल पर स्टील के एक ग्लास के ऊपर स्टील का प्लेट, प्लेट के ऊपर एक और ग्लास और ग्लास के ऊपर एक और स्टील का प्लेट लगाकर सोते हैं ताकि सोये अवस्था में भूकंप आने के कंपन से प्लेट ग्लास टेबुल पर गिरेगा और आवाज होगी तो घर के सदस्य जग जायेंगे और समय से घर से बाहर
निकल सकेंगे.
..उछलने लगी थी मछलियां
1934 के भूकंप के बारे में बनमनखी अनुमंडल क्षेत्र अंतर्गत धरहरा चकला भुनाई पंचायत के वार्ड संख्या 9 निवासी उपेंद्र सिंह एवं सुरेश सिंह कहते हैं कि वर्ष 1970 में उनके दादा की मृत्यु करीब सौ वर्ष की अवस्था में हुई. उनके दादा स्वर्गीय मांगन सिंह कहते थे कि वर्ष 1934 में 15 जनवरी को आये भूकंप से पहले 14 जनवरी की संध्या उनके गांव की एक महिला जब गांव के बगल स्थित पुरानीधार (जिस होकर करीब दो-ढाई सौ वर्ष पहले मुख्य कोशी नदी बहती थी) के निकट गयी तो देखी जंगली मछलियां पानी से सूखी जमीन पर कूद रही है. यह देख वह मछली अपने घर लाने लगी. थोड़ी देर बाद जब देखी कि काफी संख्या में मछली जमीन पर कूद रही है और सारी मछलियां वह नहीं ले जा पायेगी तो गांव में इस बात की जानकारी दी. तब अन्य ग्रामीण भी मछली लाये. तथा 15 जनवरी 1934 के भूकंप से पहले धरती के नीचे से तेज गुर्राहट के साथ आवाज हो रही थी. गांव के सभी कुएं से पानी तेजी से बाहर निकलने लगे थे. गांव के बगल से कई किलोमीटर की लंबाई में उत्तर से दक्षिण तक की करीब एक-दो मीटर की चौड़ाई में दरारें हो गयी थी जिसके नीचे खल-खल कर पानी बहता था. चारों तरफ हाहाकार मच गया. गांव में पक्का मकान नहीं होने से जन हानि तो नहीं हुई लेकिन कई दिनों तक भूकंप के लगातार झटके से लोग दहशत में थे. उस भूकंप के बाद क्षेत्र में चोरी एवं अन्य अपराध की वारदात नहीं होती थी. महीनों तक लोग घर में जंजीर लगा कर चले जाते थे. उनका सामान कोई नहीं छूता था. रास्ते में भी कोई सामान पड़ा मिलता तो लोग नहीं उठाते थे. लोगों में यह विश्वास हो चला था कि लोगों के गलत कार्य करने के कारण ही भगवान प्रलय की चेतावनी दिये.
बुजुर्गो से ले रहे हैं भूकंपों की जानकारी
कई परिवार के लोग बुजुर्गो से वर्ष 1934 के 15 जनवरी को दिन के 02.15 बजे रिक्टर पैमाने पर 8.4 तीव्रता के भूकंप, वर्ष 1988 के 6.6 तीव्रता के भूकंप एवं वर्ष 1897 के 12 जून को आये महाभूकंप की स्थिति और उससे हुए जन हानि के बारे में जानकारी प्राप्त करने लगे हैं.
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