बैलगाड़ी पर अनाज लाद नारेबाजी करते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे किसान
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कलेक्ट्रेट गेट पर फेंकी अनाज और सब्जियां
बैलगाड़ी पर अनाज लाद नारेबाजी करते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे किसान पूर्णिया : मक्का समेत अन्य कृषि उत्पादों का लागत मूल्य नहीं मिलने से हताश पूर्णिया के किसान मंगलवार को सड़क पर उतर आये. किसानों ने सरकार और उसके तंत्र का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए एक नायाब तरीका अपनाया. बैलगाड़ी पर अनाज लादे किसान […]
पूर्णिया : मक्का समेत अन्य कृषि उत्पादों का लागत मूल्य नहीं मिलने से हताश पूर्णिया के किसान मंगलवार को सड़क पर उतर आये. किसानों ने सरकार और उसके तंत्र का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए एक नायाब तरीका अपनाया. बैलगाड़ी पर अनाज लादे किसान कलेक्ट्रेट के गेट के सामने पहुंचे और बोरियों से मक्के का दाना और हरी सब्जी को सड़क पर फेंक दिया. पहले तो लोग समझ नहीं पाये पर जब उनकी बातें सुनी तो लगा कि विरोध का यह नया तरीका है. बिहार किसान मजदूर संघ के बैनर तले दर्जनों किसान थाना चौक से जुलूस की शक्ल में निकले. आगे-आगे बैलगाड़ी
कलेक्ट्रेट गेट पर…
और पीछे किसानों का जत्था चला जा रहा था. अंत में कलेक्ट्रेट गेट के पास यह जत्था पहुंचा और प्रदर्शनकारी किसान अनाज की बोरियां फेंक कर वहीं बैठ गये. किसान केंद्र सरकार की दोहरी नीतियों पर रोष जता रहे थे. किसानों के इस प्रदर्शन का नेतृत्व बिहार किसान मजदूर संघ के संस्थापक अनिरुद्ध मेहता, अध्यक्ष शक्तिनाथ यादव, कांग्रेस की जिलाध्यक्ष इन्दु सिन्हा, सम्पूर्ण क्रांति मंच के महामंतरी इन्देश्वरी प्रसाद सिंह, संयोजक तारकेश्वर मेहता, दिनेश यादव, नक्षत्र ऋषि आदि संयुक्त रूप से कर रहे थे. नेताओं ने एक स्वर से कहा कि केंद्र और राज्य सरकार किसानों के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार कर रही है जिससे किसानों की माली हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है. किसान नेताओं ने कहा कि मक्का का लागत मूल्य नहीं मिलने से इसकी खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है. बाद में पांच सदस्यीय एक शिष्टमंडल ने डीएम से मुलाकात कर छह सूत्री मांग पत्र सौंपा.
किसानों का मक्का हो रहा बर्बाद : पूर्णिया. बदलते दौर में किसानों के लिए सोना साबित हुए मक्का को इस साल बड़ा झटका लगा है. बाजारों में मक्के का भाव औंधे मुंह गिर गया है जिससे जिले के किसान हताश और हैरान हैं. हताशा इसलिए है कि कैश क्रॉप का उनके सामने कोई विकल्प नहीं और हैरानी इसलिए है कि केंद्र सरकार ने घोषणा के बावजूद लागत का डेढ़ गुणा समर्थन मूल्य अभी तक लागू नहीं किया. गौरतलब है कि एक जमाने में जूट इस क्षेत्र का मुख्य कैश क्राॅप हुआ करता था. मगर विडंबना यह रही कि इसकी कीमत पर बंगाल का एकाधिकार हमेशा कायम रहा. नतीजतन लागत मूल्य नहीं मिलने के कारण किसानों ने सूर्यमुखी और फिर केला को कैश क्रॉप के रुप में अपनाया. मगर इसका भी यही हश्र हुआ. बाद में डिमांड बढ़ने पर किसानों ने मक्का की खेती शुरू की. शुरुआती दौर में दाम मिला तो हौसला बढ़ा, पर इस साल इसकी कीमत एक हजार पर अटक गयी है. यही वजह है कि हताशा के बीच किसान सड़क पर उतरने को विवश हो गये हैं.
किसानों की प्रमुख मांगें
मक्के का समर्थन मूल्य कम से कम दो हजार हो
किसानों का सभी तरह का कर्ज माफ करे सरकार
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को सरकार लागू करे
कोसी में मक्का, आलू, केला आधारित उद्योग लगे
डीजल, पेट्रोल और गैस के दामों को घटाया जाये
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