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लिखना था महासुदर्शन वटी, लिख रहे हैं पारासिटामोल व सिफेक्जिम

पूर्णिया : ‘ आये थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास ‘ जैसी स्थिति जिले में पदस्थापित आयुष चिकित्सकों की है. आयुर्वेद कॉलेज में आयुर्वेद की पढ़ाई के बाद जो जड़ी-बूटी का ज्ञान प्राप्त हुआ, वह अब हाशिये पर है और सरकारी नौकरी पाकर ऐसे आयुर्वेद चिकित्सक अब अंग्रेजी दवा का पाठ पढ़ने को विवश हैं. […]

पूर्णिया : ‘ आये थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास ‘ जैसी स्थिति जिले में पदस्थापित आयुष चिकित्सकों की है. आयुर्वेद कॉलेज में आयुर्वेद की पढ़ाई के बाद जो जड़ी-बूटी का ज्ञान प्राप्त हुआ, वह अब हाशिये पर है और सरकारी नौकरी पाकर ऐसे आयुर्वेद चिकित्सक अब अंग्रेजी दवा का पाठ पढ़ने को विवश हैं. मजबूरी यह है कि नौकरी मिली थी आयुर्वेद की दवा लिखने के लिए, लेकिन यहां परिस्थितिवश अंग्रेजी दवा लिखनी पड़ रही है. दरअसल सरकारी अस्पतालों में आयुर्वेद की दवा की आपूर्ति वर्षों से नहीं हो रही है,

ऐसे में आयुष चिकित्सक के सामने अपनी मजबूरी है. विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पताल में उन्हें पदस्थापित कर दिया गया है और उन्हें ओपीडी से लेकर रात्रि ड्यूटी तक बजानी पड़ रही है. ऐसे में न जानते हुए भी और न चाहते हुए भी उन्हें मरीजों को अंग्रेजी दवा लिखनी पड़ रही है. सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आयुष चिकित्सक अंग्रेजी दवा लिख कर किस प्रकार की चिकित्सा कर रहे होंगे और उनकी प्रतिभा का कितना सदुपयोग राज्य सरकार कर पा रही है.

जिले में 59 आयुष चिकित्सक हैं कार्यरत : मिली जानकारी अनुसार जिले में 59 आयुष चिकित्सक कार्यरत हैं. इनमें अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों में 32 पद सृजित हैं, जिसके विरुद्ध 28 आयुष चिकित्सक पदस्थापित हैं. इसी प्रकार राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत 19 चलंत चिकित्सक दल में 38 आयुष चिकित्सक की जगह 31 चिकित्सक पदस्थापित हैं. राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा वर्ष 2007 में जिले के अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों पर आयुष चिकित्सकों की बहाली की गयी थी.
उसके बाद वर्ष 2013 में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत चलंत चिकित्सकों के लिए आयुष चिकित्सकों की बहाली की गयी थी. वर्तमान में अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों पर 14 आयुर्वेद, 07 होमियोपैथ एवं 07 युनानी आयुष चिकित्सक कार्यरत हैं.
वर्षों से नहीं हो रही है दवाओं की आपूर्ति
अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों पर आयुर्वेद के अलावा होमियोपैथ और यूनानी दवाओं की महज एक ही बार आपूर्ति हुई है. आयुर्वेदिक दवाओं के अभाव में आयुष चिकित्सक ऐलोपैथ दवा रोगी को लिखने के लिए विवश हैं. जिन आयुष चिकित्सकों को महासुदर्शन वटी और पंचकोल चूर्ण लिखना है, वे मजबूरन पारासिटामोल और सिफेक्जिम की गोलियां मरीज के पूर्जे पर धड़ल्ले से लिख रहे हैं. नियमत: आयुष चिकित्सकों को अंग्रेजी दवा नहीं लिखनी है, यह पूरी तरह प्रतिबंधित है.
लेकिन स्वास्थ्य विभाग खुद अपनी ही नियम-कायदे की धज्जियां उड़वा रहा है. जाहिर है एक प्रकार से मरीजों के जान के साथ खिलवाड़ सरकारी अस्पतालों में हो रहा है. अधिकांश आयुष चिकित्सक कार्यरत क्षेत्र में निजी क्लिनिक खोल कर रोगी का इलाज करने के लिए मजबूर हैं. इससे न केवल उनका आयुर्वेद ज्ञान बचा हुआ है, बल्कि उनके ज्ञान का भी वर्द्धन हो रहा है.
अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों पर आयुर्वेद के अलावा होमियोपैथ और यूनानी दवाओं की महज एक ही बार आपूर्ति हुई है. आयुर्वेदिक दवाओं के अभाव में आयुष चिकित्सक ऐलोपैथ दवा रोगी को लिखने के लिए विवश हैं. जिन आयुष चिकित्सकों को महासुदर्शन वटी और पंचकोल चूर्ण लिखना है, वे मजबूरन पारासिटामोल और सिफेक्जिम की गोलियां मरीज के पूर्जे पर धड़ल्ले से लिख रहे हैं.
नियमत: आयुष चिकित्सकों को अंग्रेजी दवा नहीं लिखनी है, यह पूरी तरह प्रतिबंधित है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग खुद अपनी ही नियम-कायदे की धज्जियां उड़वा रहा है. जाहिर है एक प्रकार से मरीजों के जान के साथ खिलवाड़ सरकारी अस्पतालों में हो रहा है. अधिकांश आयुष चिकित्सक कार्यरत क्षेत्र में निजी क्लिनिक खोल कर रोगी का इलाज करने के लिए मजबूर हैं. इससे न केवल उनका आयुर्वेद ज्ञान बचा हुआ है, बल्कि उनके ज्ञान का भी वर्द्धन हो रहा है.
एमबीबीएस डॉक्टर की तरह ली जाती है सेवा
जिले में एमबीबीएस डॉक्टरों का घोर अभाव है. जानकारों की मानें तो आवश्यकता की तुलना में आधे एमबीबीएस डॉक्टर भी जिले के स्वास्थ्य महकमा को प्राप्त नहीं है. सदर अस्पताल में भी जरूरत की तुलना में आधे डॉक्टर ही कार्यरत हैं. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति की सहज ही कल्पना की जा सकती है. चिकित्सकों की कमी के कारण आयुष चिकित्सकों को प्रखंड अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डयूटी पर तैनात किया गया है. हैरानी की बात यह है कि इन आयुष चिकित्सकों से भी वे सभी काम लिये जाते हैं, जो एमबीबीएस डॉक्टर के जिम्मे होता है. उनसे न केवल ओपीडी करवाया जाता है, बल्कि रात्रि सेवा और इमरजेंसी सेवा में भी उन्हें तैनात किया जाता है. यह अलग बात है कि एमबीबीएस डॉक्टरों की तुलना में उनकी स्थिति बंधुआ मजदूर से बेहतर नहीं है.
कहते हैं आयुष चिकित्सक
केनगर प्रखंड अंतर्गत चंपानगर अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थापित होमियोपैथ के आयुष चिकित्सक डा शमीम ने बताया कि वर्ष 2013 में होमियोपैथ, आयुर्वेद एवं युनानी दवा की आपूर्ति की गयी थी. इसके बाद आपूर्ति नहीं हुई. दवा के अभाव में ऐलोपैथ दवा लिखना पड़ रहा है. अधिकांश सर्दी, खांसी, बुखार एवं पेट खराब जैसे रोगी को एलोपैथ दवा लिख कर इलाज किया जा रहा है. जनता चौक स्थित अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थापित डा विभा कुमारी होमियोपैथ चिकित्सक हैं, ने बताया कि होमियोपैथ की आंशिक मात्रा में दवा उपलब्ध है. दवा उपलब्ध नहीं रहने पर एलोपैथ दवा लिखना पड़ रहा है. बताया कि उनलोगों की बहाली संविदा के आधार पर हुई थी.

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