हद है. जितना तेज-तर्रार बिचौलिया, उतनी ज्यादा कमाई
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शहर में बिचौलिये तय करते हैं डॉक्टरों के क्लिनिक की रौनक
हद है. जितना तेज-तर्रार बिचौलिया, उतनी ज्यादा कमाई पूर्णिया शहर स्वास्थ्य नगरी कहलाता है. अब जाहिर सी बात है स्वास्थ्य नगरी है तो यहां डॉक्टरों की चलती होगी. लेकिन डॉक्टरों के क्लिनिक की रौनक पूरी तरह से बिचौलियों पर निर्भर है. जिस डॉक्टर के बिचौलिये जितने तेज-तर्रार होंगे, उसके क्लिनिक में मरीजों की भीड़ उतनी […]
पूर्णिया शहर स्वास्थ्य नगरी कहलाता है. अब जाहिर सी बात है स्वास्थ्य नगरी है तो यहां डॉक्टरों की चलती होगी. लेकिन डॉक्टरों के क्लिनिक की रौनक पूरी तरह से बिचौलियों पर निर्भर है. जिस डॉक्टर के बिचौलिये जितने तेज-तर्रार होंगे, उसके क्लिनिक में मरीजों की भीड़ उतनी ही ज्यादा होगी.
पूर्णिया : शहर में सैकड़ों क्लिनिक और निजी अस्पताल संचालित हैं. खासकर लाइन बाजार क्षेत्र को मेडिकल का हब के नाम से जाना जाता है. यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग इलाज के लिए आते हैं. वर्तमान समय में भी लोगों की नजर में डॉक्टर को भगवान का दर्जा है. लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि इलाज के दौरान मरीजों को जो कटु अनुभूति होती है,
उससे भगवान होने का मिथक टूटने लगता है. इसकी वजह यह है कि जिस उम्मीद से लोग वहां पहुंचते हैं और बिचौलियों द्वारा जो उन्हें सब्जबाग दिखाया जाता है, उसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं होता है. जाहिर है कि स्वास्थ्य नगरी में बिचौलिये अहम किरदार होते हैं और चिकित्सकों के लिए उनका दर्जा भगवान से कम नहीं होता है. इसलिए कि बिचौलिये की सक्रियता ही डॉक्टर की सफलता तय करती है. स्वास्थ्य नगरी में सैकड़ों बिचौलिया सक्रिय है, जो नर्सिंग होम से लेकर ओपीडी क्लिनिक चलाने वाले डॉक्टरों के लिए रहबर है.
डॉक्टर की मेरिट बताते हैं बिचौलिया : शहर से लेकर गांव तक बिचौलियों का नेटवर्क स्थापित है. इसकी महत्वपूर्ण कड़ी झोला छाप डॉक्टर भी होते हैं. इसके अलावा कुछ बिचौलिये स्थायी रूप से पूर्णिया में ही निवास करते हैं. दरअसल गांव में जब लोग बीमार होते हैं तो सबसे पहले झोला छाप डॉक्टर की शरण में जाते हैं.
स्थानीय तौर पर अगर इलाज नहीं हो पाया तो झोला छाप डॉक्टर द्वारा मरीज को रेफर किया जाता है. उस समय मरीज के परिजन अपना हमदर्द समझ कर झोला छाप डॉक्टर से चिकित्सक के बाबत सलाह लेते हैं. उसके बाद झोला छाप चिकित्सक द्वारा पूर्णिया में बैठे बिचौलिये से संपर्क साधा जाता है. बीमारी जानने के बाद बिचौलिये एक्सपर्ट की तरह अपनी राय देते हैं. उसी आधार पर इलाज कहां होगा, यह तय होता है. फिर देखना क्या है, मामला फीट हो जाता है.
जितना बिचौलिया, उतनी होती है मरीजों की भीड़ : किसी चिकित्सक के पास अगर अच्छी-खासी भीड़ लगती है तो यह नहीं समझना चाहिए कि डॉक्टर साहब को अपने क्षेत्र में महारत हासिल है. अगर ऐसे महारत वाले डॉक्टर शहर में है भी तो उनकी संख्या मुश्किल से एक दर्जन है. अहम यह होता है कि डॉक्टर साहब को आउट सोर्सिंग पर कितना भरोसा है. बिचौलियों की संख्या जितनी होगी, मरीजों की भीड़ उतनी ही लगनी तय है. सूत्रों की मानें तो कई स्थापित डॉक्टर ऐसे भी हैं,
जिनकी सफलता का राज बिचौलिया ही है. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक चिकित्सक बताते हैं कि दो वर्ष पहले जब वे शहर में आये थे, एक दिन में मुश्किल से दो-चार मरीजों को ही देखने का मौका मिलता था. शुभचिंतकों की बात मानी तो अब ठीक-ठाक स्थिति है.
चिकित्सकों से थोड़ा ही कम ज्ञानी होते हैं बिचौलिये : बिचौलियों की वेशभूषा हो या बातचीत का लहजा डॉक्टर साहब से कमतर नहीं होता है. खास बात यह है कि चिकित्सा विज्ञान का भी उन्हें अच्छा-खासा ज्ञान होता है. जानकारी इतनी अच्छी कि परिजनों को संतुष्ट करने में सफल होता है. वह यह बताने में गुरेज नहीं करता है कि डॉक्टर साहब ने किन बड़े-बड़े शहरों में अपनी सेवाएं दी है और कैसे जटिल से जटिल ऑपरेशन को अंजाम दिया है और मरीज यहां से स्वस्थ होकर गये हैं. मरीजों की जांच पड़ताल से लेकर ठहराने तक में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
अधिकांश निजी अस्पताल और नर्सिंग होम में मरीजों के लिए सुविधा नदारद है. यदि कोई सुविधा दी भी जाती है तो मरीज के परिजनों से उसकी मुंहमांगी रकम वसूली जाती है. किसी भी निजी अस्पताल में ब्लड बैंक की सुविधा उपलब्ध नहीं है. यदि भर्ती किसी मरीज को ब्लड की जरूरत पड़ गयी तो परिजनों को दर-दर भटकना पड़ता है. डॉक्टर द्वारा अस्पताल तो खोल दिया गया है, लेकिन कोई जांच सुविधा उपलब्ध नहीं है. परिजनों को बाहर का चक्कर लगाना पड़ता है.
यही नहीं डॉक्टरों में अधिक फीस लेने की होड़ मची हुई है. सुविधा चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन अस्पताल की फीस पटना, सिलीगुड़ी और अन्य बड़े शहरों के अस्पतालों को बराबर लिया जाता है. यहां तक कि डॉक्टर खुद पैथोलॉजी जांच लिखते हैं और जब मरीज पैथोलॉजी जांच करा कर रिपोर्ट दिखाने के लिए डॉक्टर के पास जाने पर डॉक्टर द्वारा रिपोर्ट देखने की भी फीस की मांग की जाती है, जिसको लेकर मरीज और डॉक्टर के बीच अक्सर हंगामा हो रहा है.
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