पूर्णिया कोर्ट : शुक्रवार को बाढ़ व्यवहार न्यायालय परिसर में कैदी गुड्डू सिंह की अत्याधुनिक हथियार से दिनदहाड़े हत्या के बाद एक बार फिर न्यायालयों की सुरक्षा-व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं. पूर्णिया भी अपराध और अपराधियों की वजह से हमेशा से सुर्खियों में रहा है. पूर्व में भी जेल परिसर में आपराधिक घटनाएं घटित हो चुकी है.
लिहाजा यह चर्चा तेज हो गयी है कि पूर्णिया व्यवहार न्यायालय सुरक्षा के लिहाज से कितना सुरक्षित है. लेकिन जमीनी सच यह है कि व्यवहार न्यायालय की सुरक्षा-व्यवस्था मुकम्मल नजर नहीं आती है. यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उच्च न्यायालय द्वारा इस बाबत कई दिशा-निर्देश पूर्व में जारी किये जा चुके हैं. इस दिशा-निर्देश के बाद पुलिस मुख्यालय द्वारा एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) भी जारी किये गये थे. उस पर काफी हद तक तब अमल भी हुआ था. लेकिन वक्त बीतने के साथ सुरक्षा-व्यवस्था के उपाय शिथिल नजर आ रहे हैं.
न्यायालय परिसर में पहले हो चुकी है हत्या
मिली जानकारी अनुसार व्यवहार न्यायालय परिसर में विगत दो दशक में 4 लोगों की हत्या हो चुकी है. 19 अप्रैल 2000 को विधायक लेसी सिंह के पति बूटन सिंह की हत्या गोली मार कर कर दी गयी थी. इस घटना के लगभग एक वर्ष उपरांत चईया झा की कोर्ट परिसर में ही ईंट से पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी थी. इससे पूर्व वर्ष 1990 के करीब कोर्ट के सामने अरुण यादव समेत दो व्यक्ति की गोली मार कर कर दी गयी थी. जिला मुख्यालय में सेंट्रल जेल अवस्थित है, जहां कई चर्चित कैदी सलाखों के पीछे है. ऐसे में सुरक्षा-व्यवस्था में किसी भी प्रकार की कोताही पूर्व के इतिहास को दोहरा सकता है.
कोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर हाइकोर्ट ने लिया था संज्ञान
छपरा कोर्ट परिसर में हुए बम विस्फोट की घटना को गंभीरता से लेते हुए उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार को अपना हलफनामा दायर करते हुए सुरक्षा पक्ष पर जवाब मांगा था. हाइकोर्ट द्वारा बिहार के सारे कोर्ट परिसरों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए उठाये गये कदम की भी विस्तृत जानकारी भी देने का आदेश दिया था. आरा जिला न्यायालय में हुए वारदात के बाद ही पुलिस मुख्यालय के द्वारा सभी कोर्ट परिसरों की सुरक्षा के लिए विस्तृत एसओपी जारी की गयी थी.
उपरोक्त दिशा निर्देश अभी पूरी तरह से जमीन पर उतरा भी नहीं था कि दूसरी तरफ छपरा कोर्ट में पुन: घटना घट गयी और अब बाढ़ में हुई घटना के बाद पूरी सुरक्षा-व्यवस्था सवालों के घेरे में है. तब सुरक्षा को लेकर हुई थी कवायद : हाइकोर्ट के निर्देश पर पुलिस मुख्यालय द्वारा जो एसओपी जारी किया गया,
उसे व्यवहार न्यायालय में भी सरजमी पर उतारने का प्रयास किया गया था. तब व्यवहार न्यायालय में युद्ध स्तर पर कार्य चला तथा तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश अरविंद कुमार की देखरेख में सुरक्षा से संबंधित कई कार्य हुए. न्यायालय परिसर के तीन मुख्य द्वार पर तीन कमरे का निर्माण हुआ. इन कमरों में पुलिस कर्मी को तैनात रहना था जिनके पास मेटल डिटेक्टर भी रहता. साथ ही यहां डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर भी लगाया गया. यह सब कुछ दिनों तक तो चला, फिर स्थिति पूर्ववत हो गयी.
बंद पड़ा है मेटल डिटेक्टर कक्ष
व्यवहार न्यायालय के मुख्य द्वार के किनारे एक कक्ष बनाया गया था, जो मेटल डिटेक्टर युक्त होना था. लेकिन मेटल डिटेक्टर वाला पुलिसकर्मी गायब है और उसके स्थान पर अब निहत्था चौकीदार तैनात है. यहां लगाया गया डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर भी अब बंद रहता है. जबकि यहां प्रत्येक गेट पर एक महिला व एक पुरुष पुलिस कर्मी की तैनाती होनी थी. इस गेटों से गुजर कर ही लोगों को अंदर जाना था. न्यायालय परिसर की पुख्ता सुरक्षा में डाग स्क्वॉड का भी मदद लेना था. लेकिन ऐसा यहां कुछ दिखाई नहीं दे रहा है.
आरंभिक दौर में जो मेटल डिटेक्टर लगा तो गेट पर बने कक्ष में आगंतुकों की जांच होती थी. लेकिन यह व्यवस्था महज चार दिन ही चल सकी. उसके बाद जो मेटल डिटेक्टर बंद हुआ, वह आज भी बंद ही पड़ा हुआ है. उच्च न्यायालय के आदेश का अक्षरश: पालन नहीं हो रहा है.
जेएन अंबष्टा, सचिव, अधिवक्ता संघ