पूर्णिया. होली के त्योहार का आगाज हर साल होलिका दहन से होता है, लेकिन होलिका की चिता भूमि कहां है, यह आज भी बहुत कम लोगों को पता है. उस जगह का आज भी अलग महत्व है. चाहे पूरा विश्व रंगों का त्योहार मानकर होली खेलता हो, लेकिन होलिका की चिता भूमि पर आज भी राख से होली खेलने की परम्परा है. होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, जो अपने भाई के कहने पर प्रह्लाद को आग में जलाना चाहती थी, लेकिन खुद जल गयी. प्रह्लाद को जिंदा देख लोग खुशी से नाचने लगे और होलिका की चिता की राख एक दूसरे पर डालने लगे. कहा जाता है कि इस तरह होली की शुरुआत हुई. इस इलाके में अगजा को सम्मत कहा जाता है. लोगों का मानना है कि हर साल सम्मत के आयोजन से लोगों में सम्मति आती हैं.
घटना से जुड़े अवशेष हैं मौजूद
पुराणों के अनुसार होलिका की चिता भूमि बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है. बिहार के पूर्णिया जिले बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी हिरण्यकश्यप काल से जुड़े अवशेष बचे हैं. सभी साक्ष्यों से यह प्रमाणित हो चुका है कि यह वही जगह है जहां होलिका दहन हुआ था और भक्त प्रह्लाद बाल बाल बच गये थे. तभी से इस तिथि पर होली मनायी जाती है. बनमनखी में होलिका दहन महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. आज भी यहां के लोग रंगों से नहीं बल्कि राख से होली खेलते हैं.
कयाधु के पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही विष्णु भक्त था
असुरराज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु के पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही विष्णु भक्त था. जिससे हिरण्यकश्यप उसे अपना शत्रु समझने लगा था. अपने पुत्र को खत्म करने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ प्रह्लाद को अग्नि में जलाने की योजना बनायी. होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिसपर आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता था. योजना के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को वही चादर लपेटकर प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग जला दी. तभी तेज पछुआ हवा चली और चादर होलिका के शरीर से हटकर प्रह्लाद के शरीर पर आ गिरा. होलिका जल गयी और प्रह्लाद बच गया.
भगवान नरसिंह ने किया था हिरण्यकश्यप का वध
यहां पर वह खंभा आज भी मौजूद है जिसके बारे में धारणा है कि इसी पत्थर के खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था. जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर बनमनखी प्रखंड स्थित धरहरा गांव में एक प्राचीन मंदिर है. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा ये खंभा कभी 400 एकड़ में फैला था, आज ये घटकर 100 एकड़ में ही सिमट गया है. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है. कहा जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया. इससे ये टूटा तो नहीं, लेकिन ये स्तंभ झुक गया.