बिहार में पीएम आवास के निर्माण की तीन स्तरों पर होगी समीक्षा, थर्ड पार्टी इंजीनियर जांचेंगे गुणवत्ता

गुणवत्ता निगरानी की जिम्मेदारी अनुभवी इंजीनियरों के हाथों में दी जानी है. प्रस्ताव के मुताबिक निगरानी टीम में एक टीम लीडर सहित छह सिविल इंजीनियर और पांच जूनियर इंजीनियर रहेंगे.

By Prabhat Khabar | June 28, 2023 1:46 AM

पटना. प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत सूबे में बन रहे आवासों के गुणवत्ता की जांच अब थर्ड पार्टी इंजीनियरों से करायी जायेगी. केंद्र सरकार के निर्देश पर नगर विकास एवं आवास विभाग की एजेंसी बुडा ने इसके लिए एजेंसी की तलाश शुरू कर दी है. चयनित होने वाली एजेंसी हाउस फॉर ऑल के तहत शहरी निकायों में स्लम पुनर्विकास, किफायती आवास और लाभार्थी आधारित निर्माण के तहत बनने वाले आवासों के निर्माण की समीक्षा कर अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को देगी.

तीन स्तर पर होगी निर्माण की समीक्षा

चुनी गयी थर्ड पार्टी क्वालिटी मॉनिटरिंग एजेंसी तीन स्तरों पर प्रधानमंत्री आवास योजना के गुणवत्ता की जांच करेगी. पहली जांच 10 से 15 फीसदी प्रगति पर, दूसरी 50 से 60 फीसदी प्रगति पर और तीसरी 85 से 100 फीसदी प्रगति पर होगी. एजेंसी को आइएसएसआर यानि इन-सीटू स्लम पुनर्विकास और एएचपी यानि साझेदारी में बनने वाले 100 फीसदी किफायती आवासों की गुणवत्ता निगरानी करनी होगी. लेकिन, बीएलसी यानि लाभार्थी द्वारा खुद बनाये जाने वाले पीएम आवास की सैंपल सर्वे के आधार पर निगरानी होगी. सैंपल के रूप में हर शहर के पांच से दस फीसदी आवासों की निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की जायेगी. एजेंसी को निरीक्षण के 15 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट बुडा को सौंप देनी होगी.

अनुभवी इंजीनियरों के हाथों में निगरानी की जिम्मेदारी

गुणवत्ता निगरानी की जिम्मेदारी अनुभवी इंजीनियरों के हाथों में दी जानी है. प्रस्ताव के मुताबिक निगरानी टीम में एक टीम लीडर सहित छह सिविल इंजीनियर और पांच जूनियर इंजीनियर रहेंगे. टीम लीडर के लिए सिविल इंजीनियरिंग में पीजी के साथ ही कम से कम 15 वर्षों का अनुभव अनिवार्य रखा गया है. अन्य सिविल इंजीनियर के लिए सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट और सात वर्षों का अनुभव मान्य होगा. जूनियर इंजीनियर के लिए तीन साल के अनुभव के साथ सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट या सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के साथ पांच वर्षों का अनुभव की योग्यता रखी गयी है.

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एजेंसी की यह होगी जिम्मेदारी

  • राज्य व निकायों के साथ उचित समन्वय करते हुए निरीक्षण हेतु शेड्यूल निर्धारित करना

  • अनुबंध के शर्तों के मुताबिक जांच का दस्तावेजीकरण करना

  • भूमि की आवश्यकता/उपलब्धता, साइट की तैयारी और अन्य वैधानिक मंजूरी की समीक्षा करना

  • परियोजना में लाभार्थी की भागीदारी व उनकी संतुष्टि देखना

  • परियोजना की गुणवत्ता में सुधार के लिए सुझाव देना

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