राजेश कुमार ओझा
बिहार में राजनीति और रेल के बीच चोली दामन का रिश्ता रहा है. रेलवे ट्रैक पर बिहार की राजनीति हमेशा सरपट दौड़ती रही है. यही कारण है कि बिहार में सरकार चाहे जिस किसी की रही हो, लेकिन रेल मंत्री का अपना दबदबा रहा है. चुनावी वर्ष से ठीक पहले एक बार फिर से बिहार में रेल पर चर्चा तेज हो गई है. यह चर्चा अप्रैल में बिहार से शुरू होने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस (vande bharat express) ट्रेनों के रूट को लेकर हो रही है. केंद्र सरकार ने आम बजट में तीन वंदे भारत एक्सप्रेस बिहार को दिया है. इन तीनों ट्रेनों के रूट मैप पर बिहार में सियासी संग्राम मच गया है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि शाहाबाद, मगध और पूर्वांचल के लिए यह पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक है. पीएम मोदी ने बिहार को तीन वंदे भारत एक्सप्रेस देकर वाराणसी,गया और पटना से पश्चिम बंगाल की दूरी कम कर दी. काफी दिनों से इसकी मांग हो रही थी.
चार घंटे में पटना से रांची
पूर्वांचल के यात्रियों को पहले पश्चिम बंगाल जाने में 12 घंटे से ज्यादा का समय लगता था. लेकिन, वंदे भारत एक्सप्रेस के शुरू होने के बाद यह दूरी अब पूर्वांचल के लोग करीब छह घंटे में ही तय कर लेंगे. इसके साथ ही बंगाल के लोगों को पूर्वांचल और बिहार की यात्रा करने के लिए किसी एक्सप्रेस ट्रेन का इंतजार नहीं करना होगा. गया के लोगों को पूर्वांचल और हावड़ा की यात्रा आसान हो जायेगा.पटना से खुलकर रांची को जाने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस आठ घंटे के बदले मात्र चार घंटे में यह दूरी तय कर लेगी. अभी पटना से रांची के लिए एक जनशताब्दी एक्सप्रेस चलती है, जो आठ घंटे में रांची पहुंचाती है. केंद्र सरकार ने अपने इस मास्टक स्टोक से एक साथ कई क्षेत्र को साध लिया है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मोदी सरकार अपने इस फैसले से पूर्वांचल का व्यवसायियों को खुश कर दिया. क्योंकि मोदी सरकार को पूर्वांचल का व्यवसायियों का पश्चिम बंगाल से व्यापारिक कनेक्शन और बिहार से जुड़ा है.केंद्र सरकार ने तीन वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन देकर इन क्षेत्रों को राजनीतिक रूप से साध लिया है. इसका असर आगामी लोकसभा चुनाव में दिखेगा.
मगध और शाहाबाद पर नजर
बिहार की राजनीति को समझने वालों को वर्ष 2020 का विधान सभा चुनाव याद होगा. सीएम नीतीश कुमार भी तब एनडीए के पार्ट थे. लेकिन,मगध और शाहाबाद में एनडीए का प्रदर्शन बहुत ही खराब था. मगध और शाहाबाद में एनडीए 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इसमें मात्र छह सीटों पर ही एनडीए की जीत हुई थी. बीजेपी ने तब इसकी समीक्षा करने की बात कही थी.कहा जाता है कि बीजेपी आला कमान ने उसी वक्त से मगध और शाहाबाद को अपने टारगेट कर रखा था. एक वंदे भारत एक्सप्रेस को गया से शुरू करने के फैसले को अब उससे ही जोड़कर देखा जा रहा है. क्योंकि बीजेपी को पता है कि मगध फतह करने के बाद ही हम बिहार फतह कर सकते हैं. यहां से बीजेपी को अच्छी खासी सीटें मिलने की उम्मीद भी है.वैसे भी गया के लोग का बहुत दिनों से पश्चिम बंगाल के लिए डायरेक्ट ट्रेन की तलाश में थे. मोदी सरकार ने उनकी यह तलाश पूरी कर दी.
रेल और राजनीति
राजनीति में हमेशा से ट्रेन राजनेताओं के लिए सियासत का वाहन रही है.पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी,राम विलास पासवान हों या फिर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री में रहते लिए गए फैसले इसके गवाह रहे हैं. रेल मंत्री रहते इन लोगों ने अपनी मर्जी से ट्रेनें शुरू की. 'रेल और राजनीति' का संगम ऐसा बना कि इसका संसद में विरोध भी शुरू हो गया. एक बार जब ममता बनर्जी संसद में रेल बजट पेश कर रही थीं, तो विपक्ष ने इसका विरोध कर दिया था. इसपर ममता बनर्जी उग्र हो गईं और उन्होंने कहा था कि ट्रेनें पश्चिम बंगाल की ओर ज्यादा जा रही हैं तो मैं क्या करुं ? 1996 में रेल मंत्री के रूप में, रामविलास पासवान ने एक नए रेलवे ज़ोन के निर्माण कर दिया था.दो जोन को काट कर उन्होंने पूर्व मध्य-रेलवे का निर्माण कर दिया था.इतना ही नहीं उन्होंने इसका मुख्यालय भी अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र में रखा.