UPSC News: पिता बेचते थे खैनी, 2017 में मिली थी 728वीं रैंक, अब बिहार के निरंजन को UPSC में मिली सफलता

संघ लोक सेवा आयोग यानी Union Public Service Commission की सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम में बिहार के अभ्यर्थियों ने एक बार फिर बड़ी सफलता हासिल की है. इस बार भी टॉप 10 में ही बिहार के तीन अभ्यर्थी शामिल हैं.

By Radheshyam Kushwaha | September 25, 2021 4:57 PM

पटना. संघ लोक सेवा आयोग यानी Union Public Service Commission की सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम में बिहार के अभ्यर्थियों ने एक बार फिर बड़ी सफलता हासिल की है. इस बार भी टॉप 10 में ही बिहार के तीन अभ्यर्थी शामिल हैं. बता दें कि जमुई चकाई के प्रवीण कुमार 7वीं रैंक (IAS 7th Ranked Praveen Kumar) हासिल किया हैं. वहीं, समस्तीपुर के सत्यम गांधी को (10th Ranked Satyam Gandhi) 10वां स्थान मिला है. इन्हीं में शामिल नवादा के निरंजन कुमार (Niranjan Kumar From Nawada) है.

निरंजन को इस बार UPSC में 535वीं रैंक मिली है. निरंजन को 2017 में भी 728 वी रैंक मिली थी. हालांकि रैंक के हिसाब से तब उन्हें आईआरएस (IRS) के लिए चुना गया. बिहार के लाखों युवाओं में से निरंजन ऐसे है जिन्हें कठिन संघर्ष के बाद यह सफलता मिली है. निरंजन को UPSC में सफलता पाने के लिए बहुत ही कठिन रास्तों से गुजरना पड़ा है. निरंजन के पिता का एक छोटी से खैनी की दुकान है. निरंजन कभी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे तो कभी कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर कोचिंग जाते थे. फिलहाल निरंजन भारतीय राजस्व सेवा में बड़े अधिकारी हैं. इस बार जब उन्होंने पिछली रैंकिंग से काफी बेहतर परिणाम पाया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

निरंजन बिहार के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता एक खैनी की छोटी सी दुकान चलाते थे. पढ़ाई का खर्च उठाना भी मुश्किल था. उनकी आर्थिक हालात यूपीएससी (UPSC) की तैयारी करने लायक नहीं थी. इसके बाद भी निरंजन कुमार ने सपना साकार करने के लिए खुद मेहनत करने में जुट गए. पिता की एक छोटी सी खैनी की दुकान थी. इस दुकान की आमदनी से चार भाई-बहनों की पढ़ाई लिखाई का इंतजाम करना बड़ा ही मुश्किल था.

निरंजन अपनी प्रतिभा के बल पर जब नवोदय विद्यालय में चुने गए तो उनकी पढ़ाई सुचारू ढंग से चलने लगी. मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने पटना से इंटर की पढ़ाई की. पटना में रहना उनके लिए आसान नहीं था और घर की माली हालत अच्छी नहीं थी. पर निरंजन हौसला नहीं छोड़ा और उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. वो खुद अपनी कोचिंग के लिए कई किलोमीटर पैदल चलते थे. निरंजन का संघर्ष रंग तब लाया जब 2016 में यूपीएससी (UPSC) क्लीयर करने पर वे आईआरएस (IRS) चुने गए.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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