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बिहार में अभी 10 दिनों तक और रहेगी रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत, विकल्प दवाएं भी दुकान से गायब

राज्य में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ने के साथ ही गंभीर कोरोना मरीजों की संख्या भी बढ़ गयी है. वर्तमान में एक्टिव कोरोना मरीजों की संख्या 56354 हो गयी है. कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमितों के लिए लाइव सेविंग ड्रग्स के रूप में पूरी दुनिया में रेमडेसिविर इंजेक्शन का उपयोग किया जा रहा है. अब इसकी पटना समेत पूरे बिहार में मांग काफी बढ़ गयी है.

पटना. राज्य में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ने के साथ ही गंभीर कोरोना मरीजों की संख्या भी बढ़ गयी है. वर्तमान में एक्टिव कोरोना मरीजों की संख्या 56354 हो गयी है. कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमितों के लिए लाइव सेविंग ड्रग्स के रूप में पूरी दुनिया में रेमडेसिविर इंजेक्शन का उपयोग किया जा रहा है. अब इसकी पटना समेत पूरे बिहार में मांग काफी बढ़ गयी है.

स्वास्थ्य विभाग ने सोमवार को इसके 50 हजार वायल जल्द उपलब्ध होने की बात कही थी. इनमें 1200 वायल सोमवार की देर शाम पहुंच भी गये. लेकिन इसकी मांग के मुताबिक यह संख्या बेहद कम है, क्योंकि एक मरीज को इसके छह इंजेक्शन पड़ते हैं. इसके अलावा अभी जो परिस्थिति है, उसके मद्देनजर इस इंजेक्शन को यहां के बाजार में सुचारु रूप से उपलब्ध होने में 10 दिनों से ज्यादा समय लग सकता है.

इस इंजेक्शन को बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि बिहार में सरकार या बाजार के स्तर पर पहले से इसकी अधिक मांग नहीं भेजी गयी.इस वजह से संबंधित कंपनियों ने नॉर्मल स्टॉक सप्लाइ ही यहां जारी रखी. अब अचानक इसकी मांग बढ़ने लगी. ऐसे में आनन-फानन में भी इसे उपलब्ध कराने में सात से 10 दिन लग जायेंगे.

वितरण की सरकारी व्यवस्था भी कारगर नहीं

इसकी बढ़ती मांग और ब्लैक मार्केटिंग को रोकने के लिए राज्य सरकार ने पटना के गोविंद मित्रा रोड स्थित एक निजी दवा एजेंसी से इसके वितरण की व्यवस्था की है. यह औषधि नियंत्रक की देखरेख में बांटा जाता है, लेकिन इस स्थान से भी लोगों को निराशा ही हाथ लग रही है. यहां यह इंजेक्शन लेने से पहले मरीज का नाम, पता, रेमडेसिविर की सलाह लिखी डॉक्टर की पर्ची, आधार कार्ड नंबर समेत अन्य जानकारी बतानी पड़ती है. बावजूद इसके तीन से चार दिन बाद इंजेक्शन लेने के लिए बुलाया जाता है.

वेटिंग लंबी है, यह बताया जाता है. इसके अलावा रेमडेसिविर लेने के लिए पटना नगर निगम क्षेत्र के सहायक ड्रग्स कंट्रोलर विश्वजीत दासगुप्ता के हवाले से जारी एक फॉरमेट है, जिसे भरकर स्टेट ड्रग कंट्रोलर को इ-मेल करना है. लेकिन, इस पर इ-मेल करने पर कोई जवाब नहीं आता और फोन करने पर पांच दिनों की वेटिंग की बात कही जाती है.

इसकी विकल्प दवाओं की भी किल्लत

रेमडेसिविर की किल्लत तो है ही. इसके विकल्प के तौर पर दो-तीन दवाएं और भी हैं, जिनका उपयोग कोरोना में लाइव सेविंग ड्रग्स के तौर पर होता है. ये दवाएं भी बाजार से नदारद हैं. इनमें ऑक्टेंमरा इंजेक्शन, डेपोमेडरोल, फेवीफ्ल्यू मुख्य रूप से शामिल हैं.

सामान्य बाजार में नहीं मिल रहा यह इंजेक्शन

कुछ सरकारी अस्पतालों को छोड़कर यह इंजेक्शन निजी अस्पतालों, दवा दुकानों में नहीं मिल रहा है. एम्स जैसे कुछ सरकारी अस्पतालों में यह उपलब्ध है, लेकिन वहां बेड ही खाली नहीं है. जो मरीज निजी अस्पताल या अन्य स्थानों पर भर्ती हैं, उन्हें यह इंजेक्शन नहीं मिल रहा है. इसे बनाने वाली कंपनियों और सरकार के स्तर से इसे मुहैया कराने के लिए जारी हेल्पलाइन नंबरों पर फोन करने पर तीन से पांच दिन तक की वेटिंग की सूचना मिलती है. जहां कहीं भी यह थोड़ा-बहुत उपलब्ध, वे 10 से 15 गुना अधिक कीमत वसूल रहे हैं.

केंद्र सरकार की पहल पर कंपनियों ने हाल में इसकी कीमत में 900 रुपये की कमी भी की है. अब इसकी कीमत दो हजार से 2200 रुपये तक हो गयी है, लेकिन ब्लैक में यह 20 हजार से 40 हजार रुपये तक में मिल रहा है.

Posted by Ashish Jha

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