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Friday, March 29, 2024

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स्मृति शेष : अपने भीतर गांव को हमेशा बरकरार रखा रघुवंश बाबू ने

पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह नयी राजनीतिक पीढ़ी के लिए अनुकरणीय हैं. वह संवेदनशील और हमेशा पढ़ने-लिखने वाले राजनेता रहे हैं. संसदीय परंपरा और प्रणाली पर उनकी अच्छी पकड़ रही. कई महत्वपूर्ण पदों को संभालने के बावजूद उनकी मुख्य खासियतों में सरलता, सादगी और सद्व्यवहार शामिल था.

डॉ रामबचन राय : पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह नयी राजनीतिक पीढ़ी के लिए अनुकरणीय हैं. वह संवेदनशील और हमेशा पढ़ने-लिखने वाले राजनेता रहे हैं. संसदीय परंपरा और प्रणाली पर उनकी अच्छी पकड़ रही. कई महत्वपूर्ण पदों को संभालने के बावजूद उनकी मुख्य खासियतों में सरलता, सादगी और सद्व्यवहार शामिल था. लोकतंत्र के मूल्यों का निर्वाह करते हुए उन्होंने हमेशा अपने भीतर गांव को बरकरार रखा. वह जीवट वाले व्यक्ति थे. हमेशा दूसरों को उत्साहित करते रहे.

रघुवंश बाबू राजनीति में समाजवादी विचारधारा के रहे. वह डॉ राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर से जुड़े हुए थे. कर्पूरी ठाकुर से उनकी बहुत निकटता थी. उनमें लोहिया का बेलौजपन और निर्भीकता सहित कर्पूरी जी की सादगी स्पष्ट दिखती थी. कर्पूरी ठाकुर को एक बार जब संख्या बल रहने के बावजूद नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं मिली तो वह बहुत बेचैन थे. कर्पूरी जीवन दर्शन पर बहुत विश्वास करते थे. रघुवंश बाबू संसदीय परंपरा और प्रणाली की जानकारी के लिए हमेशा कौल एंड शकधर की किताब पढ़ते थे. बहुत बार संसदीय कार्यों के दौरान इसका जिक्र भी करते थे.

रघुवंश बाबू अंग्रेजी का कम और देशज शब्दों का अधिक प्रयोग करते थे. वह गणित के प्रोफेसर रहे थे, लेकिन साहित्य के प्रति भी उनकी रुचि थी. रामधारी सिंह दिनकर और गोपाल सिंह नेपाली उनके समकालीन कवि थे. इसके साथ ही कबीर, रहीम और तुलसी के दोहों का वह हमेशा जिक्र करते थे. किसी कविता या संदर्भ के बारे में देर रात भी फोन कर पूछते रहते थे. संसद में भी अपने भाषणों में वह इनका जिक्र किया करते थे. किसी से भी मिलने पर वज्जिका भाषा में गंवई अंदाज में पूछते- कहू, की हालचाल…

राज्य के ऊर्जा मंत्री रहने के दौरान रघुवंश बाबू प्रत्येक शाम अपने दफ्तर में बैठकर बिजली उत्पादन इकाइयों सहित अन्य अधिकारियों से बिजली की हालत का जायजा लेते थे. उन्होंने एक रजिस्टर रखा था, जिस पर हालत का जायजा लेने के बाद में लिखा करते थे- पकड़ बढ़ी.

2003-04 का वाकया है कि जब वह केंद्रीय मंत्री थे, तो एक दिन उन्हें अपने अशोका रोड स्थित आवास से उद्योग मंत्रालय की बैठक में शामिल होने के लिए जाना था. 11 बजे से बैठक थी और 10 बजे सुबह वह तैयार होकर ड्राइवर का इंतजार कर रहे थे. संयोगवश ड्राइवर नहीं आया, तो रघुवंश बाबू पैदल ही बैठक में शामिल होने के लिए उद्योग मंत्रालय की तरफ चल पड़े. उनके पीछे सुरक्षाकर्मी थे. जब वह उद्योग मंत्रालय पहुंचने वाले थे, तभी उनकी गाड़ी लेकर ड्राइवर पीछे से पहुंचा. उसे देखने के बाद रघुवंश बाबू जरा भी नाराज नहीं हुए. केवल जल्दी चलने को कहा. वह समझते थे कि जरूर किसी खास वजह से ड्राइवर को देरी हुई होगी. इससे पता चलता है कि अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति वह कितने व्यवहार कुशल थे.

(कृष्ण से बातचीत के आधार पर)

posted by ashish jha

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