बिहार में शहरी निकाय चुनाव पर फंस सकता है पेच, सुशील मोदी ने उठाये ये सवाल

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जहां पंचायत व नगर निकायों में पहले से आरक्षण है, वहां भी एक अलग आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर नयी सूची तैयार की जाये, जो सेवा और शिक्षा में आरक्षण की सूची से अलग हो. हर निकाय में जातियों की सूची और प्रतिशत भी भिन्न-भिन्न हो सकता है.

By Prabhat Khabar Print Desk | March 30, 2022 6:27 AM

पटना. बिहार में नगर निकाय चुनाव पर पेच फंस सकता है. इसकी वजह सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश है, जिसके तहत उसने सेवा व शिक्षा में आरक्षण और राजनीतिक आरक्षण के लिए ओबीसी की सूची अलग-अलग तैयार करने को कहा है. अभी राज्यों के पास कोई नया आंकड़ा नहीं है. ऐसे में माना जा रहा है कि बिहार में शहरी निकाय चुनाव टल सकता है.

नयी सूची तैयार करने का है आदेश 

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जहां पंचायत व नगर निकायों में पहले से आरक्षण है, वहां भी एक अलग आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर नयी सूची तैयार की जाये, जो सेवा और शिक्षा में आरक्षण की सूची से अलग हो. हर निकाय में जातियों की सूची और प्रतिशत भी भिन्न-भिन्न हो सकता है. इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सूची रद्द कर दी और स्थानीय चुनाव स्थगित करना पड़ा.

ओबीसी को नयी सूची के आधार पर मिले आरक्षण

मंगलवार को राज्यसभा में भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने शूून्यकाल के दौरान यह मामला उठाया. उन्होंने कहा कि इसके चलते बिहार और कर्नाटक में नगर निकाय का चुनाव को लंबे समय तक टालने की नौबत आ गयी है. मोदी ने कहा कि वर्षों से अधिकतर राज्यों में पिछड़े वर्गों की सूची है और उसी के आधार पर नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जाता है. 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद पंचायत और नगर निकाय के चुनाव में भी उसी सूची के आधार पर ओबीसी को आरक्षण दिया गया.

राज्यों के पास कोई आंकड़ा नहीं

मोदी ने कहा कि राज्यों के पास कोई आंकड़ा नहीं है और नया आयोग बनाने का अर्थ है कि लंबे समय तक चुनाव टालने पड़ेंगे और ऐसी सूची बनाना भी अत्यंत कठिन है. उन्होंने कहा कि जिस प्रकार अनुसूचित जाति/जनजाति की एक ही सूची के आधार पर सेवा, शिक्षा और राजनीतिक आरक्षण दिया जाता है, उसी प्रकार ऐसा प्रावधान किया जाये कि राज्य भी अपनी एक सूची के आधार पर सेवा, शिक्षा के साथ-साथ स्थानीय निकाय में भी आरक्षण दे सके.

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