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बुढ़वा होली से कुर्ता फाड़ होली तक, जानिए बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों में लोग कैसे खेलते हैं रंग

बिहार के अलग -अलग क्षेत्रों में होली मनाने के तरीके भी अलग हैं. कहीं कपड़े फाड़ कर होली खेली जाती है तो कहीं गोबर और कीचड़ से. ऐसे ही होली मनाने के तरीके में कई और भी भिन्नताएं हैं. आज हम आपको होली मनाने के इन्हीं रिवाजों के बारे में बताने जा रहे हैं.

रंगों के त्योहार होली के दौरान देश भर में खुशियों का माहौल रहता है. हर तरफ जश्न में लोग नाचते गाते दिख जाते हैं. बिहार के अलग -अलग क्षेत्रों में होली मनाने के तरीके में भी कई भिन्नताएं हैं. बिहार में कई तरह से होली का त्योहार मनाया जाता हैं. इनमें मगध में मनाये जाने वाली बुढ़वा मंगल होली, समस्तीपुर में छाता पटोरी होली, मिथिला में बनगांव की होली झुमटा होली और कुर्ता फाड़ होली भी काफी मशहूर है.

बनगांव की घमौर होली

सहरसा जिले के बनगांव में मनाये जाने वाली घमौर होली काफी प्रसिद्ध है. बनगांव की इस घुमौर होली में लोग एक दूसरे के कंधे पर चढ़ जाते हैं और जोर अजमाइस कर होली मनाते है.18वीं शताब्दी में संत लक्ष्मीनाथ गोस्वामी द्वारा एक सूत्र में पिरोने के लिए बनगांव सहित आसपास के क्षेत्रों में शुरू की गयी होली की यह परंपरा आज भी देखने को मिलती है.कई ग्रामीण इलाकों में फाल्गुन पूर्णिमा को ही होली मनाई जाती है.इस दौरान यहां के लोग फगुआ गाते हैं और एक दूसरे को रंग गुलाल लगा कर खुशियां मनाते हैं.होली के दिन कुलदेवी की पूजा कर गुलाल भी अर्पित किया जाता है.

मारवाड़ी समाज की होली

मारवाड़ी समाज में होली के सात दिन पहले से होलाष्टक शुरू हो जाता है. इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं होता. होलिका दहन में महिलाएं पारंपरिक परिधान चुन्नी ओढ़ कर ठंडी होलिका की पूजा कर पति और परिवार की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं.होलिका की भस्म घर के सभी सदस्य लगाते हैं.नवविवाहित महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं.मारवाड़ी समाज में पारंपरिक गीत गाये जाने का भी रिवाज है. राज्य के ग्रामीण इलाकों में फगुआ गाने का भी खूब प्रचलन है. लोग एक-दूसरे के घर जाकर होली के गीत गाकर बधाई भी देते हैं.

मगध में बुढ़वा होली की परंपरा

राज्य के मगध क्षेत्र में होली के अगले दिन बुढ़वा होली मनाए जाने का रिवाज है. इस दिन झुमटा भी निकाला जाता है. झुमटा निकालने वाले होली गाते हुए नाचते- गाते अपनी खुशी का इजहार करते हैं. मगध क्षेत्र में कीचड़, गोबर और मिट्टी से होली खेलने का भी खासा महत्व है. दोपहर में रंग और फिर शाम में अबीर-गुलाल लगाते हैं. वहीं, ग्रामीण इलाकों या मोहल्लों में लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं. उसके बाद टोली बनाकर पारंपरिक गीत गाते हुए पूरे गांव और मोहल्लों में घूमते हैं.

समस्तीपुर की छाता होली 

समस्तीपुर जिले के पटोरी प्रखंड के धमौन में हरियाणा से आये जाटों का कुनबा रहता है. हरियाणा और बिहार की मिली-जुली संस्कृति समेटे धमौन की अनूठी ‘छाता होली’ भी काफी प्रसिद्ध है. इस दौरान बांस के बड़े-बड़े छाते तैयार किये जाते हैं. इन छातों को रंगीन कागजों से सजाया जाता है. बताया जाता है कि साल 1935 से ही यहां छाता होली मनायी जाती है. गांव में जाटों के कुल देवता निरंजन स्वामी का मंदिर भी है. कुल देवता स्वामी निरंजन मंदिर में सभी अबीर-गुलाल चढ़ाते हैं. इसके बाद होली गाते हुए एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर गले मिलते हैं. इस दौरान सभी छातों को घुमाया जाता है.

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कुर्ता फाड़ होली

बिहार में कुर्ता फाड़ होली भी खूब देखी गयी.ग्रामीण इलाकों में कीचड़ और गोबर से भी होली खेली जाती है. इस दौरान कई लोग एक दूसरे के कपड़े भी फाड़ देते हैं. जिसे कुर्ता फाड़ होली कहते हैं. होली में गायन के साथ-साथ गालियों का भी प्रचलन है.

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