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बिहार के बाजारों में बढ़ी अलसी की मांग, जानें इससे होने वाले फायदे

अलसी बहुमूल्य तिलहन फसल है.अलसी की खेती को व्यापारिक रूप से उगाया जाता है.बहुउद्देशीय फसल होने के चलते देश में आजकल अलसी की मांग काफी बढ़ी है.भारत अलसी उत्पादन में विश्व में चौथे नंबर पर आता है.अलसी के तने से उच्च गुणवत्ता वाला रेशा प्राप्त किया जाता है.

अलसी बहुमूल्य तिलहन फसल है.अलसी की खेती को व्यापारिक रूप से उगाया जाता है.बहुउद्देशीय फसल होने के चलते देश में आजकल अलसी की मांग काफी बढ़ी है.अलसी के बीजो में तेल की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है.आलसी का उपयोग कई उद्योगों के साथ दवाइयां बनाने में भी किया जाता है.इसके तेल को प्रिंटिंग प्रेस के लिए स्याही और इंक पैड को तैयार करने में किया जाता है.

अलसी को कई तरह से प्रयोग किया जाता है

अलसी के तेल को पेंट्स और वार्निश बनाने में भी उपयोग किया जाता है.शरीर पर निकले वाले फोड़े फुंसी को ठीक करने के लिए इसकी पुल्टिस बनाकर उस पर लगाने से आराम मिलता है.अलसी के तेल को दीपक जलाने में भी उपयोग किया जाता है.भारत अलसी उत्पादन में विश्व में चौथे नंबर पर आता है.अलसी के तने से उच्च गुणवत्ता वाला रेशा प्राप्त किया जाता है.जिनसे लिनेन को भी तैयार किया जाता है.

इसकी खली में उच्च गुणवत्ता वाले पोषक तत्व पाए जाते है

अलसी की खली दूध देने वाले जानवरों के लिये पशु आहार के रूप में उपयोग की जाती है.इसकी खली में उच्च गुणवत्ता वाले पोषक तत्व पाए जाते है.जिस वजह से इसे खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है.अलसी के पौधे का काष्ठीय भाग और छोटे-छोटे रेशों का प्रयोग कागज बनाने के लिए भी किया जाता है.अलसी की फसल में अच्छी जल निकासी वाली काली चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है.आधुनिक संकल्पना के अनुसार उचित जल एवं उर्वरक व्यवस्था करने पर किसी भी प्रकार की मिट्टी में अलसी की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है.

अलसी की फसल के लिए सर्द और शुष्क जलवायु उचित

अलसी की फसल के लिए सर्द और शुष्क जलवायु को उचित माना जाता है.इसकी खेती को रबी की फसल के बाद किया जाता है.अलसी का दाना छोटा एवं महीन होता है. इसीलिए अच्छे अंकुरण हेतु खेत का भुरभुरा होना आवश्यक है.अलसी की कई उन्नत किस्में हैं जिसमें अलसी की टी 397 किस्म,जे.एल.एस.66 किस्म और आर एल सी 6 किस्म प्रमुख हैं.इसके अलावा भी अलसी की और भी कई किस्में हैं जैसे आर एल 914,जवाहर 23,पूसा 2,पी के डी एल 42,जवाहर अलसी – 552 आदि.

पौधों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है

असिंचित क्षेत्रों में अक्टूबर के प्रथम पखवाडे़ में तथा सिचिंत क्षेत्रों में नवम्बर के प्रथम पखवाडे़ में बुवाई करना चाहिये.अलसी के पौधों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है.इसके लिए बीजो को खेत में छिड़क कर या ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है.इसके बीजों की रोपाई को पंक्तियो में भी किया जाता है.अलसी के पौधों को केवल दो से तीन सिंचाई की ही जरूरत होती है.बीज रोपने के 120 दिन बाद अलसी के पौधे पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है.इसकी कटाई जड़ के पास से करनी चाहिए.अलग-अलग किस्मो के आधार पर इसकी पैदावार भी अलग होती है.

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