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पटना के सरकारी अस्पतालों में बढ़ी सर्दी-खांसी के मरीजों की भीड़, पर जरूरी दवाएं स्टॉक से गायब

करीब एक सप्ताह से मौसम में काफी बदलाव आया है. ऐसे में सर्दी-खांसी, बुखार व सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गयी है. वहीं, शहर के छोटे सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने पहुंच रहे मरीजों के लिए न तो कफ सीरप उपलब्ध है और न ही सर्दी की दवा.

पटना/फुलवारीशरीफ. करीब एक सप्ताह से मौसम में काफी बदलाव आया है. कभी तेज धूप, तो कभी बारिश के कारण तापमान में भी उतार-चढ़ाव बना हुआ है. ऐसे में सर्दी-खांसी, बुखार व सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गयी है. वहीं, शहर के छोटे सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने पहुंच रहे मरीजों के लिए न तो कफ सीरप उपलब्ध है और न ही सर्दी की दवा. इसके कारण मरीजों को ये दवाएं बाजार से खरीदनी पड़ रही है़ं बुधवार को शहर के गार्डिनर रोड अस्पताल, गर्दनीबाग अस्पताल, एलएनजेपी हड्डी अस्पताल, राजेंद्र नगर आइ अस्पताल की पड़ताल की गयी, तो दवा काउंटर के कर्मियों ने इन दवाओं का स्टॉक नहीं होने की बात कही.

सप्लाइ नहीं होने से परेशानी

यह समस्या दानापुर व फुलवारीशरीफ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी है. वहीं, अस्पताल प्रशासन का कहना है कि बीएमआइसीएल को सर्दी-खांसी सहित जिन राेगों की दवाएं नहीं हैं, उनकी सूची भेजी गयी है. लेकिन, उनकी सप्लाइ नहीं होने से कुछ दवाएं मरीजों को नहीं मिल पा रही हैं. फुलवारीशरीफ पीएचसी के प्रभारी डॉ राजकुमार चौधरी ने बताया कि कफ सीरप की सप्लाइ पहले से बंद है. हालांकि, एंटीबायोटिक और एंटी एलर्जी समेत अन्य दवाएं उपलब्ध हैं, जिन्हें रोगियों को दी जा रही है़

इन दवाओं की भी किल्लत

  • दर्दनिवारक डायक्लोफेनिक

  • गैस की दवा रेनिटिडाइन

  • इयर ड्रॉप्स

  • माइकोनाजोल मलहम

  • जीबी लोशन

  • ब्लड शूगर की दवा

  • कैल्शियम

  • बच्चों के लिए एंटीबायोटिक

मरीजों के साथ होता है विवाद

डॉक्टर से दिखाने के बाद जब मरीज दवा काउंटर पर जाते हैं, तो उन्हें अस्पताल के स्टॉक में दवाएं नहीं होने की जानकारी दी जाती है, जिससे वे आक्रोशित जाते हैं. कई बार हंगामे की नौबत आ जाती है. स्वास्थ्य कर्मियों का कहना है कि मरीजों को लगता है कि स्टॉक में दवाएं है, लेकिन उनसे बहाना किया जा रहा है.

करोड़ों से बना भवन, लेकिन जरूरी दवाएं नहीं

शहर के राजेंद्र नगर आइ अस्पताल व राजवंशी नगर हड्डी अस्पताल में करोड़ों रुपये भवन की मरम्मत व रंगरोगन सहित स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर तो खर्चकिये गये हैं. यहां तक कि दोनों अस्पतालों में निर्माण कार्य अब भी जारी है. लेकिन, दवाओं की खरीदारी नहीं होने से मरीजों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है़

परामर्श की जगह मरीजों को मिल रही तारीख

इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस) में एक विभाग से दूसरी बीमारी के परामर्श के लिए भेजे जा रहे मरीजों को डॉक्टर उस दिन नहीं देख रहे हैं. इन्हें परामर्श के लिए तारीखें दी जा रही हैं. ऐसे में पुराने मरीजों को भी डॉक्टर से दिखाने के लिए नये मरीज से ज्यादा जद्दोजहद करनी पड़ रही है. कुछ विभागों में मरीज व परिजन सुबह जाकर परामर्श के लिए ओपीडी में नंबर भी लगाते हैं, लेकिन जब इनका नंबर आता है, तो कर्मचारी बताते हैं कि अभी नये मरीजों कोदेखने के बाद नंबर आयेगा, तो देखा जायेगा. अगले दिन मरीज को बुलाया जाता है.

प्राथमिकता के आधार पर देखा जाता है

अस्पताल के निदेशक डॉ आशुतोष विश्वास का कहना है कि हर विभाग में डॉक्टर क्षमता व संसाधन के अनुसार नये व पुराने मरीजों का इलाज करते हैं. प्राथमिकता के आधार पर देखा जाता है. मरीजों परेशानी नहीं हो, इसलिए उनको अच्छे तरीके से ध्यान में रख कर इलाज करने के लिए कहा गया है.

30% को परामर्श की सलाह देते हैं डॉक्टर

यहां आने वाले 30% मरीजों को कई तरह की दिक्कतें होती हैं, जिन्हें कई विभागों के डॉक्टरों के परामर्श की जरूरत होती है. इनमें इंडोक्राइनोलॉजी, न्यूरो न्यूरोलॉजी, गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी, गैस्ट्रो सर्जरी, पल्मोनरी मेडिसिन, यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी समेत दूसरे विभाग शामिल हैं.

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