Bihar Politics: कभी दूसरों को टिकट बांटते थे, आज खुद के लिए तरस रहे ये नेता, जानें कहां तक बनी बात

Bihar Politics: बिहार में लोकसभा चुाव के पहले चरण के लिए नामांकन की तरीख कल खत्म हो रही है. कई राजनीतिक पार्टियां अब तक उम्मीदवार तय नहीं कर पाये हैं. कुछ नेता जो कल तक टिकट बांट रहे थे, आज खुद के टिकट के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

By Ashish Jha | March 27, 2024 2:53 PM

Bihar Politics: पटना. लोकसभा चुनाव का बिगुलगु बज चुका है. गठबंधन के अंदर सीट शेयरिंग तय हो रही हैं, लेकिन दो दल जो कल तक बिहार में सुर्खियों में थे, वो आज नेपथ्य में हैं. उनके सुप्रीमो जो कल तक टिकट बांटने की बात करते थे, आज खुद की एक सीट के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. पार्टी और उनका खुद का भविष्य अनिश्चित है. चिराग पासवान के चाचा और रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस और सन आफ मल्लाह मुकेश सहनी की नाव अब तक मझधार में हैं. जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को खुद की टिकट तो मिली, लेकिन टिकट बांटने की चाहत इसबार धरी की धरी रह गयी. हां, चिराग पासपान जरूर इसमें बाजी मार ले गये, लेकिन उनके चाचा पशुपति कुमार पारस न अपने दल को अब तक किसी गठबंधन में सेट कर पाये न अपने आप को. मुकेश सहनी और पशुपति कुमार पारस ये दोनों अब राजनीतिक सूर्खियों से भी गायब होने लगे हैं.

पारस के राजनीतिक भविष्य पर संकट

राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख पशुपति कुमार पारस एनडीए से अलग होने के बाद अब-तक अपने रुख का एलान नहीं कर पाये हैं. लोजपा से अलग होने के बाद उन्होंने रालोजपा पार्टी बनायी थी. रामविलास पासवान के रहते पशुपति पारस लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रहे, पर चुनाव में टिकट बंटवारे में उनकी प्रमुख भूमिका हुआ करती थी. रामविलास पासवान भी उम्मीदवारों को पारस जी से बात करने के लिए करते थे, लेकिन इस बार उन्हें एनडीए में जगह नहीं मिल सकी. इस बार किसी गठबंधन में रहते टिकट बांटने का सौभाग्य जिन्हें नहीं मिला, उनमें उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, पशुपति कुमार पारस और मुकेश सहनी मुख्य रूप से शामिल हैं.

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सन आफ मल्लाह की नैया मझधार में

सन आफ मल्लाह के नाम से प्रसिद्ध वीआईपी के सुप्रीमो मुकेश सहनी भी पिछले चुनावों तक दूसरों को टिकट दिया करते थे, लेकिन इस चुनाव में दूसरों को टिकट देने की बात तो दूर, उनकी पार्टी चुनाव लड़ने जा रही है या नहीं, यह भी अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है. एनडीए घटक दलों में वह शामिल नहीं हो सके हैं. महागठबंधन को लेकर भी अभी तक कुछ तय नहीं हो पाया है. पिछले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के तहत वीआईपी को तीन सीटें मिली थी. इसी तरह हम को भी तीन सीटें मिली थीं. वीआईपी भी महगठबंधन का हिस्सा थी. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी, तब की रालोसपा को 2019 में महागठबंधन के तहत पांच सीटें मिली थीं.

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