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Bihar Chunav 2020: आज पानी की तरह चुनाव में बहता है पैसा, कभी माड़-भात व साग खाकर चुनाव प्रचार में निकलते थे मंत्री जी…

पटना: पहले के चुनावों में आज की तरह न तो महंगी गाड़ियों का बोलबाला था और न ही नेता होटलों में ठहरते थे. चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को लोग ही चावल-दाल और हजार-पांच सौ रुपये का चंदा देते थे. पटना से मंत्री, विधायक गांव में प्रचार करने आते थे तो दरवाजे पर खाट, चटाई, पुआल पर दरी बिछाकर सो जाते थे. गांव वाले खातिरदारी भी करते थे. सुबह जो मिल जाता वही खाकर प्रचार के लिए निकल गये.

पटना: पहले के चुनावों में आज की तरह न तो महंगी गाड़ियों का बोलबाला था और न ही नेता होटलों में ठहरते थे. चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को लोग ही चावल-दाल और हजार-पांच सौ रुपये का चंदा देते थे. पटना से मंत्री, विधायक गांव में प्रचार करने आते थे तो दरवाजे पर खाट, चटाई, पुआल पर दरी बिछाकर सो जाते थे. गांव वाले खातिरदारी भी करते थे. सुबह जो मिल जाता वही खाकर प्रचार के लिए निकल गये.

1985 में कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे दिलकेश्वर राम का चुनाव प्रचार

वर्ष 1985 में इसी तरह से चुनाव प्रचार कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे दिलकेश्वर राम ने किया था. दिलकेश्वर राम ने आदापुर में पांच दिन के प्रचार के दौरान एकडरी, कटगेनवा, महुआवा में चटाई पर सो कर रात गुजारी. जहां जो मिला खा लिया. अपनी यादों की किताब के पन्ने पलटते हुए पूर्व विधायक हरिशंकर यादव बताते हैं – चुनाव में कांग्रेस की ओर से मैं प्रत्याशी था. लोकदल से शमीम हाशमी और निर्दलीय ब्रजबिहारी प्रसाद चुनाव लड़ रहे थे. दस गांवों का एक दिन में पैदल भ्रमण करना था. सेंटर पर खाना नहीं बना था.

माड़, भात व साग खाकर निकले मंत्री जी

तत्कालीन मंत्री दिलकेश्वर राम जी एकडरी में सुबह एक व्यक्ति के घर माड़, भात, साग बनने की बात सुने थे. उन्होंने कहा कि लेट हो रहा है. माड़, भात, साग भी मिल जाये तो खाकर जल्दी चला जाये. इसके बाद गांव के लोगों ने मंत्री जी को माड़, भात, साग खिलाया. हमलाेग भी खाये. इसके बाद उनके साथ चुनाव प्रचार के लिए निकल गये.

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50 हजार रुपये खर्च कर जीते चुनाव

श्री यादव ने कहा कि 50 हजार रुपये खर्च कर हम चुनाव जीते थे, जिसमें पांच हजार रुपये जगन्नाथ मिश्रा और पांच हजार रुपये रामेश्वर बाबू भी दिये थे. विधायक बनने से पहले श्री यादव जिला पार्षद के उपाध्यक्ष भी रहे थे. वह बताते हैं कि अब तो चुनाव में प्रत्याशी पानी की तरह पैसा बहाते हैं. पहले की तरह कार्यकर्ता भी नहीं रहे. जब नेता ही रातोंरात दल बदल देते हैं, तो कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता क्या रहेगी.

Published by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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