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लालू यादव के दरबार में सबसे अलग है भोला यादव का रुतबा, जानें कैसे बने छोटे सेवक से सबसे बड़े राजदार

बिहार की राजनीति में जब लालू प्रसाद उफान पर थे, उसी समय 1994-95 के आसपास मिथिलांचल के एक छोटे-से गांव से आये भोला यादव की लालू परिवार में इंट्री हुई. दरभंगा जिले के बहादुरपुर प्रखंड के कपछियाही गांव से आये भोला यादव का बाद के दिनों में एक अणे मार्ग में रूतबा बढ़ता गया.

पटना. बिहार की राजनीति में जब लालू प्रसाद उफान पर थे, उसी समय 1994-95 के आसपास मिथिलांचल के एक छोटे-से गांव से आये भोला यादव की लालू परिवार में इंट्री हुई. दरभंगा जिले के बहादुरपुर प्रखंड के कपछियाही गांव से आये भोला यादव का बाद के दिनों में एक अणे मार्ग में रूतबा बढ़ता गया. साल 2000 आते-आते भोला यादव लालू-राबड़ी दरबार के दूसरे नंबर के ओहदेदार बन गये.

सीएम के पीए से रेलमंत्री के ओएसडी तक बने

पूर्व विधान पार्षद रामानंद यादव ने अपने मुंशी भोला यादव को लालू प्रसाद से परिचय कराया था. लालू परिवार में भले ही उनका प्रवेश एक सेवक के रूप में हुआ, पर धीरे- धीरे वह पूरे परिवार के खासम-खास बनते चले गये. पहले वह लालू प्रसाद के सेवक बने. फिर राबड़ी देवी जब मुख्यमंत्री बनीं, तो उनके पीए के रूप में भोला का कद बढ़ा. बाद के दिनों में जब लालू मुकदमों में उलझे, तो सबसे खास भोला ही उनके राजदार रहे. मुंबई में इलाज से लेकर अदालतों की चौखट पर हाजिरी बनाने तक का सारा काम भोला यादव के ही जिम्मे था. 2005 में भोला यादव रेल मंत्री लालू प्रसाद के ओएसडी नियुक्त हुए.

2014 में बने एमएलसी, 2015 में विधायक बने

राजद में भोला का कद इतना बड़ा था कि जब 2014 में विधान परिषद की एक सीट आकस्मिक रूप से खाली हुई, तो वह महागठबंधन के साझा उम्मीदवार बने और विधान परिषद पहुंचे. 2015 के विधानसभा चुनाव में भोला यादव को जदयू के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन मंत्री मदन सहनी की जगह बहादुरपुर विधानसभा सीट से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया गया. मदन सहनी को बगल की गौड़ा बौराम की सीट मिली.

अंतिम समय में हटा मंत्री की सूची से नाम

बहादुरपुर से भोला भारी मतों से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे. जब महागठबंधन की सरकार बनने को हुई, तो संभावित मंत्रियों की सूची में राजद कोटे से भोला यादव का नाम भी चर्चा में रहा था, पर एन वक्त पर उनका नाम सूची से हट गया. 2020 में राजद एक नये फ्लेवर में आया, जब ऊपरी तौर पर पार्टी की कमान तेजस्वी यादव के हाथों में आ गयी. भोला यादव अब भी लालू परिवार के खास बने रहे, पर अहम मामलों में वह किनारे ही रहे. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें बहादुरपुर की जगह हायाघाट विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया. भोला की मुश्किलें बढ़ने लगीं, अंतत: वह करीब 11 हजार मतों से पराजित हो गये.

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