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बाजारीकरण ने कर दिया सामाजिक एकता को भंग
‘चंपारण में गांधी’ पर सेमिनार का समापन पटना : बाजारीकरण हमारे सामाजिक एकता को भंग कर रहा है. बाजारीकरण के दौर में आज सामाजिक समस्या व्यक्तिगत समस्या का रूप ले चुकी है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश नहीं हो रहा है जबकि शहरों में […]
‘चंपारण में गांधी’ पर सेमिनार का समापन
पटना : बाजारीकरण हमारे सामाजिक एकता को भंग कर रहा है. बाजारीकरण के दौर में आज सामाजिक समस्या व्यक्तिगत समस्या का रूप ले चुकी है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश नहीं हो रहा है जबकि शहरों में निवेश दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. इससे गांव और शहर के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है.
आर्थिक नीतियों को तय करने वाले संस्थानों को चाहिए कि गांवों में निवेश के लिए खास योजना बनाएं. यह बातें जेएनयू के अर्थशास्त्र विभाग के वरीय प्राध्यापक प्रोफेसर अरुण कुमार ने कही. वह समन्वय और देशज के बैनर तले ‘चंपारण में गांधी’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे.
प्रथम सत्र में उदयन वाजपेई ने कहा कि हम संकट के समय गांधी को जरूर याद करते हैं. महात्मा गांधी के विचारों में संकट का समाधान है. गांधी क्षेत्रीय स्तर पर चयनित सरकार के पक्षधर थे, इसका जिक्र उन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भी किया था. रांची से साहित्यकार पंकज ने चंपारण के हालात की जानकारी देते हुए कहा कि देश के 50 जिलों में अभी किसानों को मशीनों का वितरण नहीं किया जा सका है, इसमें चंपारण भी शामिल है.
मदन कश्यप ने कहा कि गांधी ने तत्कालीन और दूरगामी समस्याओं में संतुलन बनाये रखने का सामंजस्य किसानों को समझाया था. उनकी मदद को चंपारण पहुंचे गांधी वहां स्वच्छता और विचारों से लोगों की मदद कर रहे थे. अहिंसा गांधीजी की केवल रणनीति नहीं थी बल्कि जीवन मूल्य था. मोतिहारी के मुन्ना ने कहा कि गांधीजी के विचारों की बात करना तो बहुत आसान है, लेकिन गांधी के विचारों को अपने जीवन में अपनाना बहुत कठिन.
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