पटना: बिहार मानवाधिकार आयोग ने एक उर्दू अनुवादक को दस साल से वेतन का भुगतान नहीं किये जाने पर उर्दू निदेशालय (राजभाषा विभाग)को आड़े हाथ लिया है. राशि उपलब्ध होने के बावजूद विभाग ने उर्दू अनुवादक अब्दुल हसन अंसारी को दस वर्षो से भी अधिक की अवधि का वेतन नहीं दिया और राशि सरकारी खजाने में लौटा दी.
बिहार मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष नीलमणि ने बताया कि समस्तीपुर में पदस्थापित उर्दू अनुवादक अब्दुल हसन अंसारी को वर्ष 2000 में किसी मामले में निलंबित कर दिया गया था.
दस वर्ष बाद जब अंसारी ने मानवाधिकार आयोग से न्याय की गुहार लगायी,तो आयोग की पहल पर निलंबन 2010 में खत्म हुआ. फिर भी बकाया वेतन का भुगतान नहीं हुआ. पिछले साल 31 दिसंबर को अब्दुल हसन अंसारी सेवानिवृत्त हो गये.
विभाग ने समस्तीपुर में पदस्थापित अंसारी के वेतन मद में बकाया 26 लाख, 15 हजार की राशि का भुगतान न करके समस्तीपुर के डीएम को 19 लाख रुपये की राशि वापस लौटा दी. आयोग ने समस्तीपुर के डीएम से पूछा कि भुगतान में देरी क्यों हुई. खजाने में राशि उपलब्ध होते हुए भी उसे विभाग को वापस क्यों किया गया.