पुष्यमित्र
पिछले चार-पांच साल से नहीं सप्लाई हो रही उर्दू मीडियम की किताबें
स्कूलों में सिर्फ पूरक भाषा के तौर पर पढ़ाई जा रही उर्दू
उर्दू टीचरों के 70 हजार स्वीकृत पदों मेंआधे पद खाली हैं
सीएम नीतीश कुमार ने जश्न-ए-उर्दू कार्यक्रम के दौरान यह ख्वाहिश जाहिर की थी कि बिहार का हर बच्चा उर्दू जाने ताकि उसकी भाषा बेहतर हो. निश्चित तौर पर उर्दू ऐसी जबान है कि जिसके इस्तेमाल से हमारा अपना अंदाज-ए-बयां बेहतर हो सकता है. इस लिहाज से सीएम साहब की यह ख्वाहिश बिल्कुल दुरुस्त है. मगर क्या बिहार राज्य का शिक्षा विभाग मुख्यमंत्री के इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए तत्पर नजर आता है? कम से कम जमीनी हालात तो बिल्कुल उलट हैं. अभी तो जिन स्कूलों में उर्दू पढ़ाई जा रही है, वहां भी शिक्षक कम पड़ रहे हैं. किताबें समय से और समुचित मात्रा में नहीं मिल रहीं. ऐसे में अगर राज्य के सभी स्कूलों में उर्दू की पढ़ाई शुरू करानी है तो इसके लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी. मौजूदा हालात में और मौजूदा रफ्तार से तो यह बिल्कुल भी मुमकिन प्रतीत नहीं हो रही.
राज्य की राजधानी पटना में अशोक राजपथ पर स्थित अयूब उर्दू गर्ल्स हाई प्लस मिडल स्कूल काफी पुराना सरकारी स्कूल है. यहां 1962 से प्राइमरी कक्षाओं में उर्दू मीडियम से पढ़ाई होती रही है. कक्षा एक से छह तक हर विषय की पढ़ाई उर्दू माध्यम से होती है. मगर पिछले चार-पांच सालों से इस स्कूल को उर्दू मीडियम के टेक्स्ट बुक नहीं मिल रहे. लाचारी में बच्चों को फिर से हिंदी मीडियम अपनाना पड़ रहा है. अब बस नाम का उर्दू माध्यम है, किताबें हिंदी माध्यम की पढ़ाई जा रही हैं. अगर यह हाल राजधानी पटना के सरकारी उर्दू स्कूलों का है, तो दूर-दराज के गांवों के उर्दू स्कूलों का क्या हाल होगा, यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
स्कूल की प्रिंसिपल सबीहा सादिक कहती हैं कि सिर्फछठी से आठवीं तक की कक्षा की किताबें वह भी उर्दू भाषा की उपलब्ध होती हैं, वह भी समय से उपलब्ध नहीं होतीं. ऐसे में स्वभाविक है कि छात्राएं उर्दू मीडियम को छोड़ कर हिंदी मीडियम अपनाने लगी हैं. जबकि महज कुछ साल पहले तक यह स्कूल उर्दू मीडियम में अच्छी पढ़ाई के लिए जाना जाता था. समस्या सिर्फ टेक्स्टबुक की नहीं शिक्षकों की भी है. प्राइमरी स्कूल में यहां 13 शिक्षक कार्यरत हैं, मगर इनमें से सिर्फ तीन की नौकरी को सरकार से स्वीकृति मिली है, शेष दस शिक्षकों का मानदेय स्कूल संचालन समिति अपने फंड से देती है.
अपने संबोधन के दौरान मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया था कि शिक्षकों की कमी है, साथ ही उन्होंने यह तथ्य भी रेखांकित किया था कि सरकार को उर्दू पढ़ाने वाले योग्य शिक्षक नहीं मिल रहे. यह बात आंशिक रूप से सच है, सरकार ने उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जो मानक तय किये हैं उसके मुताबिक लोग बहुत मुश्किल से मिल रहे हैं. मगर जानकार इसकी वजह भी सरकारी नीतियों को ही बताते हैं. दरअसल जब उर्दू शिक्षकों की तलाश की जाती है तो यह अहर्ता रखी जाती है कि उम्मीदवार ने उर्दू की 200 नंबर वाली परीक्षा पास की हो. मगर 1990 के बाद से ही यह पढ़ाई राज्य के अधिकतर शिक्षण संस्थानों में बंद हो गयी है, जाहिर है कि अब ऐसे उम्मीदवार ढूंढने से भी नहीं मिल रहे.
राज्य में उर्दू शिक्षकों के 70 हजार के करीब पर स्वीकृत और सृजित हैं जबकि इस वक्त सिर्फ 39 हजार उर्दू शिक्षक की कार्यरत हैं, इनमें से भी बड़ी संख्या अस्थायी शिक्षकों की है. इन आंकड़ों को देखा जाये तो तकरीबन आधे स्कूल ऐसे हैं जिनमें उर्दू शिक्षक नहीं हैं. स्थिति यह है कि 2013 के स्पेशल टीईटी में जिन 16882 उर्दू शिक्षकों ने परीक्षा पास की थी, उनमें से भी 3882 शिक्षकों की अब तक नियुक्ति नहीं हो पायी है, ये लोग पिछले चार सालों से नियुक्ति की लड़ाई लड़ रहे हैं. अगर शिक्षकों की कमी है और योग्य शिक्षक नहीं मिल रहे तो ऐसे में चार हजार के करीब क्वालिफाइड शिक्षकों को विभाग क्यों नियुक्त नहीं कर रहा यह समझ से परे है.
इन शिक्षकों के संघर्ष का नेतृत्व कर रहे अब्दुल बाकी अंसारी, जो उर्दू असातिजा तंजीम के अध्यक्ष हैं, कहते हैं कि 1990 के बाद से ही राज्य में उर्दू की पढ़ाई की व्यवस्था को लगातार कमजोर किया गया. पहले हर स्कूल में उर्दू और फारसी की पढ़ाई होती थी, उर्दू विद्यालय में उर्दू माध्यम से गणित, विज्ञान, समाजशास्त्र आदि सभी विषयों की पढ़ाई हुआ करती थी. उर्दू भाषा की पढ़ाई भी 200 नंबर के साथ होती थी. मगर बाद में धीरे-धीरे सभी चीजें खत्म की जाने लगी. अब ज्यादातर स्कूलों में उर्दू सिर्फ एक भाषा के तौर पर पढ़ाई जाती है वह भी सप्लीमेंट्री. अभी सभी महाविद्यालयों में उर्दू या तो 50 नंबर का पाठ्यक्रम है या सौ नंबर का. ऐसे में योग्य शिक्षक मिलें भी तो कैसे? जब राज्य में उर्दू पठन-पाठन की परंपरा को ही 25-27 सालों से चौपट कर दिया गया तो उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति के लिए दूसरे विषयों जैसी अहर्ताएं रखना बेवजह है.
वे कहते हैं, 20 साल पहले तक कक्षा एक से ग्रेजुएशन तक सारी किताबें उर्दू में उपलब्ध थी. अब तो उर्दू भाषा की किताबें भी कोर्स कंम्प्लीट होने पर मिलती हैं. इसके अलावा मदरसों के लिए भी यह तय कर दिया गया है कि एक सेशन में अधिकतम 40 लड़के ही मौलवी का फार्म भर सकते हैं. जब तक यह व्यवस्थाएं नहीं सुधरतीं ऐसे कड़े मानकों के आधार पर शिक्षक तलाशना उचित नहीं है. सरकार अगर मानदंड़ों में थोड़ी-सी ढिलाई दे तो उसे अपनी आवश्यकता के अनुरूप पर्याप्त शिक्षक मिल जायेंगे.
आंकड़ों में राज्य की उर्दू शिक्षा व्यवस्था
श्रेणी कुल संख्या कुल नामांकन
प्राइमरी 53697 10473252
एलिमेंटरी 13761 2548580
सेकेंडरी 4146 1092237
राज्य के प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूलों में कुल शिक्षक – 254023
उर्दू शिक्षकों की कुल संख्या – 39000
कुल मदरसे 3587
अनुदानित- 1942
गैर अनुदानित- 1645
मदरसा बोर्ड से हर साल पास होने वाले छात्रों की संख्या
आठवीं- 1 लाख 20 हजार
दसवीं- 80 हजार