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जहां प्रथम राष्ट्रपति पढ़े, वहां आज महज 46 विद्यार्थी
अनदेखी : 167 साल पुराने और एेतिहासिक टीके घोष हाइस्कूल की स्थिति खराब, 1996 के बाद नहीं बना बिहार बोर्ड के परीक्षा का केंद्र पटना : देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ राजेंद्र प्रसाद जिस टीके घोष एकेडमी में पढ़े और जिसे अपने समय का सबसे बेहतर स्कूल मानते थे, वो आज बदहाल है. उस वक्त […]
अनदेखी : 167 साल पुराने और एेतिहासिक टीके घोष हाइस्कूल की स्थिति खराब, 1996 के बाद नहीं बना बिहार बोर्ड के परीक्षा का केंद्र
पटना : देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ राजेंद्र प्रसाद जिस टीके घोष एकेडमी में पढ़े और जिसे अपने समय का सबसे बेहतर स्कूल मानते थे, वो आज बदहाल है. उस वक्त इस स्कूल में नामांकन को छात्र लालायित रहते थे, लेकिन वर्तमान में इस स्कूल की छवि बिल्कुल ही बदल गयी है.
अब इस स्कूल में कोई नामांकन लेने नहीं आता. पिछले पांच साल की बात करें, तो इस स्कूल में 100 से अधिक नामांकन नहीं हुए हैं. टीके घोष एकेडमी में विद्यार्थियों के साथ शिक्षकों की भी स्थिति बहुत खराब है. स्कूल के पास न तो प्रयोगशाला है, न ही लाइब्रेरी और न ही कंप्यूटर की सुविधा. इस स्कूल की नयी बिल्डिंग तो बनायी जा रही है, लेकिन स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही है. स्कूल में अभी आठ शिक्षक कार्यरत है. इसमें चार शिक्षक तो पढ़ा रहे हैं, लेकिन एक शिक्षक 9 फरवरी, 2016 से शैक्षणिक अवकाश पर है. वहीं, एक शिक्षिका सारिका कुमारी 01 जनवरी, 2014 से बिना सूचना के ही अनुपस्थित है. इसकी सूचना नगर निगम और विभाग को स्कूल की ओर से दी गयी है.
बारापथ हथुआ मार्केट स्थित टीके घोष राजकीय उच्च विद्यालय की स्थापना 1850 में की गयी थी. पालित बंधुओं की ओर से एक बीघा, 16 कट्ठे जमीन में निजी विद्यालय के रूप में अपने पूर्वजों टीके घोष के नाम पर मध्य विद्यालय की स्थापना की गयी. 1997 में इस स्कूल को राजकीय स्तर का दर्जा भी मिल गया. 2011 में सरकार की ओर से अधिग्रहण कर लिया गया.
स्कूल प्रशासन की ओर से हर साल स्कूल का एक मैगजीन भी निकाली जाती थी. हर साल तीन दिसंबर को इस मैगजीन का लोकापर्ण किया जाता था. लेकिन, 1991 के बाद यह मैगजीन बंद हो गयी. इस स्कूल में मैट्रिक तक की ही पढ़ाई होती है. स्कूल के कर्मचारी संतोष कुमार ने बताया कि स्कूल में प्लस-टू की भी बिल्डिंग है, लेकिन पढ़ाई नहीं होती. इसके लिये पिछले साल भी शिक्षा विभाग को लिखा गया था. स्कूल में न तो कमरे थे और न ही कोई सुविधा. इससे 1996 के बाद स्कूल में मैट्रिक की परीक्षा का केंद्र नहीं बनाया गया.
स्कूल की जमीन को लेकर कई लड़ाई हाइकोर्ट में चल रही थी. इस कारण स्कूल की स्थिति बहुत ही खराब हो गयी थी. लेकिन, 2011 में बिहार सरकार ने इसे अधिग्रहण कर लिया. इसके बाद ही स्कूल की बिल्डिंग बनायी जा रही है. अब स्थिति में सुधार हो रहा है. 2017 में हम कोशिश भी करेंगे कि इस स्कूल में छात्रों की संख्या बढ़ायी जाय.
दीपक कुमार, प्रभारी प्राचार्य, टीके घोष एकेडमी
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