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औद्योगिक व्यवस्था का विरोध कर जीवन को दें नयी दिशा

आधुनिक सभ्यता के विकल्प पर बोले सच्चिदानंद सिन्हा पटना : 20वीं सदी की शुरुआत में पूंजीवाद का विकल्प साम्यवाद को माना जाता था. बाद के अनुभव ने साबित किया कि यह सही विकल्प नहीं है क्योंकि इससे भी गैर बराबरी और तानाशाही कायम हो रही है. ये विचार रविवार को गांधी संग्रहालय में आयोजित किशन […]

आधुनिक सभ्यता के विकल्प पर बोले सच्चिदानंद सिन्हा
पटना : 20वीं सदी की शुरुआत में पूंजीवाद का विकल्प साम्यवाद को माना जाता था. बाद के अनुभव ने साबित किया कि यह सही विकल्प नहीं है क्योंकि इससे भी गैर बराबरी और तानाशाही कायम हो रही है. ये विचार रविवार को गांधी संग्रहालय में आयोजित किशन पटनायक स्मृति व्याख्यान में प्रख्यात समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा ने रखे. उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्रांति से शुरू होनेवाली आधुनिक औद्योगिक सभ्यता पूर्ववर्ती सभ्यताओं से पूरी तरह अलग थी. इसके पहले लोगों का जीवन जैविक विकास पद्धति पर आधारित था. ज्ञान मानव के बीच संवाद और सामंजस्य स्थापित करने का साधन था, लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद ज्ञान प्रभुत्व स्थापित करने का माध्यम बन गया है.
रूस के अधिनायकवादी साम्यवाद के पतन के बाद पूंजीवादी व्यवस्था के नये विकल्प ढूंढ़े जा रहे हैं. महात्मा गांधी का अंगरेजी शासन के खिलाफ चलाया गया असहयोग आंदोलन का इस दिशा में प्रतीकात्मक महत्व हो सकता है. उस समय तो यह असहयोग अंगरेजों द्वारा थोपे गये विदेशी वस्त्रों और अन्य वस्तुओं के व्यवहार के विरुद्ध था. लेकिन इस पर चल कर हम वर्तमान औद्योगिक व्यवस्था और जीवन पद्धति से असहयोग कर सकते हैं और अपने जीवन को एक नयी दिशा में मोड़ सकते हैं. इस नयी पहल की शुरुआत कृषि क्षेत्र से भी हो सकती है. जहां कहीं भी खेती लायक भूमि है, हम इसे शुरू कर सकते हैं.
समाजवादी जन परिषद ने औद्योगिक व्यवस्था के विकल्प को सदा अपने उद्देश्यों के केंद्र में रखा है. पर्यावरण संकट के मौजूदा दौर में यह मानव जाति के अस्तित्व की मांग है. इस अवसर पर समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अफलातून और प्रदेश अध्यक्ष डॉ संतु भाई संत ने भी अपने विचार रखे. सभा की अध्यक्षता डॉ स्वाती ने की, जबकि संचालन नवेंदू प्रियदर्शी ने किया.

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