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शराब तो छूटी, अब दूसरे नशे पर भी हो चोट
अनुपम कुमार पटना : नशामुक्ति केंद्रों पर आनेवाले लोगों की संख्या घट कर आधी रह गयी है. यहां का परिदृश्य भी बदल गया है. साढ़े नौ महीना पहले जब पूर्ण शराबबंदी की घोषणा हुई थी, पियक्कड़ यहां शराब छोड़ने आते थे. अब ज्यादातर लोग गांजा, भांग और अन्य नशे की लत छोड़ने आते हैं. 21 […]
अनुपम कुमार
पटना : नशामुक्ति केंद्रों पर आनेवाले लोगों की संख्या घट कर आधी रह गयी है. यहां का परिदृश्य भी बदल गया है. साढ़े नौ महीना पहले जब पूर्ण शराबबंदी की घोषणा हुई थी, पियक्कड़ यहां शराब छोड़ने आते थे. अब ज्यादातर लोग गांजा, भांग और अन्य नशे की लत छोड़ने आते हैं. 21 जनवरी को नशामुक्ति जागरूकता के लिए प्रदेश में अब तक की सबसे बड़ी मानव शृंखला का निर्माण हो रहा है. इससे ठीक पहले शराबबंदी के प्रभाव की पड़ताल करने प्रभात खबर की टीम गुरुवार को राजधानी के बुद्धा कॉलोनी स्थित दिशा नामक नशामुक्ति व पुनर्वास केंद्र पर पहुंची. पड़ताल के दौरान सामने आया कि कई पियक्कड़ों ने शराबबंदी के बाद गांजा, भांग और अन्य नशा लेना शुरू कर दिया है. धीरे धीरे इनकी लत इतनी अधिक बढ़ गयी है कि लेने वालों के साथ-साथ परिवारजनों को भी परेशानी होने लगी है. अंतत: उन्हें नशामुक्ति केंद्र पर इलाज के लिए लाना पड़ रहा है.
मेडिसिनल ड्रग्स व इंजेक्शन का भी दुरुपयोग
गांजा और भांग के साथ-साथ मेडिसिनल ड्रग्स का भी नशा के लिए दुरुपयोग हो रहा है. कई एडिक्ट क्रेविंग से बचने व अतिरिक्त स्फूर्ति के लिए एक दिन में 40-50 एनालजेसिक और पारासिटामोल टैबलेट खा जाते हैं. लगातार ऐसा करने से किडनी पर बहुत खराब असर पड़ रहा है. कई लोग पेन किलर इंजेक्शन लेने लगे हैं. एक दिन में 15-20 इंजेक्शन तक लेने के कारण कई बार उनके हाथों की नसें फूल जाती हैं और अपंग होने का खतरा रहता है. कई लोग कफ सीरप का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. अधिक मात्रा में पीने के कारण यह किडनी को नुकसान पहुंचा रहा है.
अन्य कार्यों में इस्तेमाल होने वाले कई केमिकल का भी नशे के लिए इस्तेमाल हो रहा है. इसमें डायलेटर के सबसे अधिक व्यसनी हैं. इसकी वजह है कि व्हाइटनिंग में इस्तेमाल होने के कारण यह सब जगह आसानी से उपलब्ध है, सस्ता भी है और इसका नशा दिमाग तक पहुंच कर तुरंत असर करता है. सुलेशन का भी नशे के लिए इनहेलर के रूप में इस्तेमाल हो रहा है.
डोपामाइन स्राव घटने से परेशानी
अल्कोहल खून में जाता है और उसके माध्यम से दिमाग में पहुंच कर वहां फील गुड हार्मोन(डोपामाइन) की मात्रा बढ़ाता है. इसके कारण व्यक्ति आरंभ में बहुत अच्छा महसूस करता है और बार-बार शराब पीना चाहता है. जैसे-जैसे शराब की मात्रा बढ़ती है, शरीर उसके प्रति प्रतिरोध क्षमता विकसित करते जाती है. इसके कारण नशे के लिए व्यक्ति को मात्रा बढ़ानी पड़ती है. साथ ही, डोपामाइन का सामान्य स्थिति में होनेवाला स्राव घट जाता है. इससे हाथ-पैर में कंपन, अवसाद, निराशा, सुस्ती जैसे लक्षण उभरते हैं जिससे व्यक्ति को परेशानी होने लगती है. इसके कारण व्यक्ति को सामान्य स्थिति में आने के लिए भी शराब पीना पड़ता है. अधिक समय तक शराब पीने से यकृत खराब हो जाता है, जो जानलेवा होता है.
कड़ी सजा की घोषणा सही, नशामुक्ति आसान
पीते पकड़े जाने पर 10 साल की कड़ी सजा की घोषणा सही है. दिशा, नशामुक्ति सह पुनर्वास केंद्र की सचिव राखी शर्मा ने बताया कि पहले कई अभिभावक अपने बच्चों के इलाज से इसलिए कतराते थे कि उन्हें बच्चों को नशामुक्ति केंद्र में कुछ दिनों तक छोड़ना पड़ेगा.
इससे उनके बच्चों को बहुत परेशानी होगी. अब वही अभिभावक अपने बच्चों को लाते हैं और किसी भी तरह उनकी आदत छुड़ाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि चोरी छुपे शराब लाकर पीते हुए कभी उनका बच्चा पकड़ा गया तो उसका जीवन बरबाद हो जायेगा. नीतीश सरकार की पूर्ण शराबबंदी से अपना काम आसान होने की बात बताते हुए राखी ने कहा कि पहले काउंसेलिंग के दौरान कई एडीक्ट यह कहकर शराब पीने को सही ठहराते थे कि यदि शराब इतनी बुरी चीज है तो सरकार बेचती क्यों है. अब शराब की खरीद बिक्री पर पूरी तरह रोक लगने के साथ उनके इस तर्क का आधार ही खत्म हो गया है. नशाबंदी के शुरुआती दिनों में हमारे यहां हर महीने 250 से 300 के बीच व्यसनी आ रहे थे. पिछले तीन-चार महीनों से यह संख्या घट कर 150 के आसपास रह गयी है. नशे की लत की व्यापकता पर जोर देते हुए राखी ने बताया कि उनके द्वारा संचालित तीन पुनर्वास केंद्रों पर हर वर्ग से लोग आते हैं. उनमें 25 से 30 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो उच्च मध्यमवर्ग से संबंधित है. ये अच्छे जॉब्स में हैं या इनका अच्छा बिजनेस है. इसलिए नशे का संबंध गरीबी, अभाव या बेरोजगारी तक ही सीमित रखना सही नहीं है.
निकोटिन ( कीड़ा मारने में इस्तेमाल किया जाना वाला पदार्थ)
अमोनिया ( फर्श की सफाई में इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ)
आर्सेनिक ( चीटीं मारने वाला जहरीला पदार्थ)
कार्बन मोनोऑक्साइड ( कार से निकलने वाली खतरनाक गैस)
हाइड्रोजन साइनाइट ( गैस चैंबरों में इस्तेमाल की जाने वाली जहरीली गैस)
नेप्थालीन ( इससे मोथबॉल्स बनाये जाते हैं)
तारकोल ( सड़कों की ऊपरी सतह पर चिपकाये जाने वाला पदार्थ)
रेडियोएक्टिव कंपाउंडस ( परमाणु हथियारों में इस्तेमाल किया जाने वाला)
देश -प्रदेश में भयावह हैं तंबाकू सेवन के आंकड़े
6 वें स्थान पर तंबाकू इस्तेमाल के मामले में बिहार
53.5 फीसदी वयस्क तंबाकू का सेवन करते हैं, जिसमें 66.2 फीसदी पुरुष और 40.01 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
41.8 फीसदी वयस्क तंबाकू का सेवन करते हैं, जिसमें 55.7 फीसदी पुरुष और 27.2 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
7.2 फीसदी वयस्क तंबाकू का सेवन करते हैं, जिसमें 2.5 फीसदी पुरुष और 15 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
5.9 फीसदी वयस्क सिगरेट पीते हैं, जिसमें 11 फीसदी पुरुष और 0.4 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
1.6 फीसदी वयस्क हर दिन सिगरेट पीते हैं, जिसमें 2.8 फीसदी पुरुष और 0.3 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
8.4 फीसदी वयस्क बीड़ी पीते हैं, जिसमें 10.2 फीसदी पुरुष और 6.5 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
06 फीसदी वयस्क हर दिन बीड़ी पीते हैं, जिसमें 6.3 फीसदी पुरुष और 5.7 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
32.7 फीसदी वयस्क कभी कभार धूम्रपान करते हैं, जिसमें 31.9 फीसदी पुरुष और 33.9 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
48.7 फीसदी वयस्क खैनी, गुटखा और जर्दा खाते हैं, जिसमें 62.2 फीसदी पुरुष और 34.6 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
37.8 फीसदी वयस्क हर दिन खैनी, गुटखा और जर्दा खाते हैं, जिसमें 53.1 फीसदी पुरुष और 21.8 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
6.1 फीसदी वयस्क कभी कभार खैनी, गुटखा और जर्दा खाते हैं, जिसमें 2.4 फीसदी पुरुष और 13.7 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
38.7 फीसदी ध्रूम्रपान करनेवाले लोगों को उसके कारण स्वास्थ्य समस्याएं शुरू हो चुकी हैं. इसमें 36.2 फीसदी पुरुष और 43 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
15 फीसदी खैनी, गुटखा और जर्दा खाने वाले व्यस्कों को उसके कारण स्वास्थ्य समस्याएं शुरू हो चुकी हैं. इसमें 22.8 फीसदी पुरुष और 6.1 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
4000 करोड़ रुपये का राजस्व शराब से बिहार को मिला था 2015-16 में
5000 करोड़ रुपये का अनुमानित राजस्व नुकसान हुआ है 2016-17 में शराबबंदी से
6.2 लीटर थी शराबबंदी से पहले राज्य में प्रति व्यक्त शराब की खपत
472 करोड़ रुपये खर्च होते हैं बिहार में तंबाकू जनित बीमारियों के इलाज पर
35.21 फीसदी है राज्य में कुल चिकित्सा खर्च का तंबाकू जनित बीमारियों के इलाज पर होने वाला खर्च
10,143 करोड़ खर्च होते हैं देश में तंबाकू जनित बीमारियों के इलाज पर
31475 करोड़ रुपये खर्च होते हैं देश में अन्य बीमारियों के इलाज पर
24.37 फीसदी है देश के कुल चिकित्सा खर्च का तंबाकू जनित बीमारियों के इलाज पर होने वाला खर्च
स्रोत- ग्लोबल अडल्ट टोबैको सर्वे
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