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कैशलेस ने पकड़ी रफ्तार, कई कारोबारों पर मार

नोटबंदी : पीएम ने किया था वादा, 30 के बाद सुधरेंगे हालात, पर संकट बरकरार कम हो गयी पैकेज टूर की बुिकंग पर्यटन सीजन के बीच 500 व 1000 के पुराने नोट बंद होने का असर पर्यटन उद्योग पर सबसे अधिक देखा गया. नोटबंदी के इन 50 दिनों के शुरुआती दौर में कैश की कमी […]

नोटबंदी : पीएम ने किया था वादा, 30 के बाद सुधरेंगे हालात, पर संकट बरकरार
कम हो गयी पैकेज टूर की बुिकंग
पर्यटन सीजन के बीच 500 व 1000 के पुराने नोट बंद होने का असर पर्यटन उद्योग पर सबसे अधिक देखा गया. नोटबंदी के इन 50 दिनों के शुरुआती दौर में कैश की कमी के चलते घरेलू पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ.
घरेलू पर्यटन के बुक कराये गये कई टूर पैकेज अचानक रद्द हो जाने से जहां टूर ऑपरेटरों को नुकसान हुआ. वहीं, पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को भी परेशानी हुई. जिन लोगों ने बिहार से बाहर जाने के लिए पैकेज टूर के तहत बुकिंग करा रखी थी, उनमें से अधिकतर लोगों ने नोटबंदी के बाद बुकिंग रद्द करा दी. माना जा रहा है कि बीते 50 दिनों में पर्यटन उद्योग को 10 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है.
50 दिन पूरे होने के बाद भी व्यवसाय की हालात में अब तक पूरी तरह सुधार नहीं आया है. पर्यटन स्थलों पर अब भी बेरोजगारी की मार देखी जा रही है. नोटबंदी के एक माह तक सूबे के पर्यटक स्थल राजगीर, वैशाली, नालंदा, पावापुरी, बोधगया में सामान्य से काफी कम पर्यटक आये. हालांकि, टूर ऑपरेटर व पर्यटन व्यवसायी अब धीरे-धीरे इसमें सुधार की उम्मीद जता रहे हैं. पर्यटन कारोबार से जुड़े राजेश कुमार कहते हैं कि नोटबंदी के बाद विदेशी पर्यटक तो बिहार आये. क्योंकि, उनकी बुकिंग दो-तीन माह पूर्व से ही थी.
निगम व बिजली विभाग को बंपर कमाई
नोटबंदी के प्रारंभिक दिनों में जनजीवन ठहर-सा गया था. सरकारी योजना से लेकर लोगों की दैनिक गतिविधि तक प्रभावित हो गयी थी. बाजार सुनसान था, किसानों की गतिविधि बंद हो गयी थी.
मजदूर बेकार हो गये थे, मजदूरी करने बाहर गये सैकड़ों लोग वापस गांव आ गये थे. एक पखवाड़े के बाद जनजीवन में फिर से बदलाव प्रारंभ हो गया. 50 दिन के बाद अब नोटबंदी का सीधे कोई असर नजर नहीं आ रहा है. बैंक तथा एटीएम में पैसे हैं, लेकिन इसे लेने वालों की भीड़ नहीं है. बाजार में रौनक लौट आयी है. रबी की खेती में किसान जुटे हैं.
नोट बंदी के बाद डिजिटल लेने- देन का माहौल बना है. दर्जनों दुकानों में पेटीएम समेत भुगतान के अन्य सिस्टम विकसित होने लगा है. छोटे-छोटे दुकानदार भी तकनीक का फायदा उठा रहे हैं. प्रारंभिक कठिनाइयों से किसान उबर चुके हैं. नोट की कमी का किसानों ने आपसी सहयोग से सामना किया. खेतों की जुताई से लेकर खाद-बीज तक उधार लेकर खेती का काम पूरा किया गया. धान की बिक्री कम कीमत पर करके भी पैसे की व्यवस्था किसानों ने कर ली.
सामान्य जनजीवन कैशलेस की ओर बढ़ा
नोटबंदी के 50 दिनों के दौरान शहर से गांव तक अफरा-तफरी मची रही. इस बीच बाजार में नोटों की कमी के कारण जहां आम लोग प्रभावित हुए, वहीं बाजार पूरी तरह चरमरा गयी. शहर से गांव तक के लोग बैंक की कतारों में खड़े हो गये. नोटबंदी के कारण जिले में खेती- किसानी पर व्यापक असर पड़ा. जिस दौरान नोटबंदी की गयी वह समय रबी फसल में गेहूं, मसूर व अन्य फसलों की बुआई का आदर्श माना जाता है.
किसान भूषण रामराजी सिंह बताते हैं कि पहल सरकार की सराहनीय है, पर या तो इसे एक सप्ताह पहले लागू किया जाता या फिर दिसंबर के बाद तो किसानों को इतनी अधिक परेशानी नहीं होती. मजदूरों के भुगतान में भी परेशानी हो रही थी. हालांकि कुछ समय बीतने के बाद स्थिति सामान्य हो गयी. जिले के मजदूर जो दूसरे प्रदेशों में काम कर रहे थे, पैसा नहीं मिलने के कारण वे लोग काम- काज छोड़कर अपने घर लौट गये. गल्ला बाजार, सर्राफा बाजार, कपड़ों का बाजार एवं सब्जी बाजार में भी नोटबंदी का व्यापक प्रभाव पड़ा. कुछ दिनों तक मंदी छायी रही. इसका सबसे व्यापक असर छोटे-छोटे सब्जी व्यवसायियों पर पड़ा जो दो सौ रुपये प्रतिदिन कमा लेते थे.
डिजिटल लेनदेन में 20 फीसदी का इजाफा
नोटबंदी के 50 दिन करीब पूरे होने वाले है. नोटबंदी के शुरुआती दौर में ठहर सी गयी जिंदगी अब धीरे धीरे फिर से पटरी पर लौटने लगी है.
हालांकि अभी भी कई क्षेत्र नोटबंदी की मार से अभी उबर नहीं पाये हैं. फिर भी अधिकतर क्षेत्रों में सुधार जारी है. प़ चम्पारण जिला नोटबंदी से उत्पन्न समस्या से करीब करीब निबट चुका है. बैंकों व एटीएम में अब पहले जैसी कतारें नहीं हैं. व्यापारी व आमलोगों में कैशलेस ट्रांजेक्शन के प्रति रुझान बढ़ा है. हालाकि बैंक अभी मांग के अनुरूप स्वाइप मशीन उपलब्ध कराने में नाकाम है. फिर भी चेक व पेटीएम से लोगों का काम चल रहा है. हालांकि इन 50 दिनों में बाजार सबसे अधिक प्रभावित रहा. सर्राफा बाजार करीब सप्ताह भर बंद रहा. इन 50 दिनों में बैंकों ने 700 करोड़ रुपये जमा हुआ, जबकि 300 करोड़ रुपये बांटे गये. बाजार में दो हजार की करेंसी तो पहुंची, लेकिन 500 रुपये के नोट अभी बाजार से गायब हैं.
किसान को अनाज बेचने में हो रही परेशानी
नोटबंदी से किसानों को रबी फसल की खेती में तो बहुत अधिक परेशानी नहीं हुई, लेकिन किसान को अनाज बेचने के लिए भटकना पड़ा. धान तैयार कर जब किसान बेचने की तैयारी कर रहे थे, इसी समय नोटबंदी की घोषणा हो गयी.
इसके बाद धान खरीद के लिए न तो व्यापारी तैयार हो रहे थे और न ही सरकारी स्तर पर पैक्स के जरिये धान की खरीद की जा रही थी. किसान असमंजस की स्थिति में थे. हालांकि यह स्थिति कमोबेश अभी भी बनी हुई है. नोटबंदी को लेकर जिले के प्रगतिशील किसान व एक्सपर्ट की अलग – अलग राय है. एमबीआरआई भटौलिया के निदेशक अविनाश कुमार बताते हैं कि नोटबंदी से खेती तो बंद नहीं हुई, लेकिन बैंक से पैसा निकासी नहीं होने के कारण गेहूं व मक्के की खेती का समय बढ़ गया.
पर्यटन व्यवसाय गिरा
नोटबंदी की मार पर्यटन के क्षेत्र पर सबसे ज्यादा पड़ी है. कैश नहीं होने से पर्यटन आधारित बाजार बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. पर्यटन के कारोबार में करीब 60 प्रतिशत तक की कमी दिखने लगी है. उदाहरण के तौर पर बोधगया का मामला देखा जा सकता है.
पर्यटन के व्यवसाय से जुड़े लोगों की मानें तो यहां आमतौर पर सीजन में पर्यटन आधारित जो कारोबार होता था, उसका 40 फीसदी हिस्सा ही बचा दिख रहा है. नोटबंदी की तमाम दिक्कतोें के बावजूद गया व आसपास के स्कूलों व आंगनबाड़ी केंद्रों पर चलनेवाली सरकार की मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) योजना (एमडीएम) चल रही है.
नोटबंदी की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को विश्वास दिलाया था कि 30 दिसंबर तक सब कुछ सामान्य हो जायेगा. लेकिन 50 दिनों से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी राज्य में स्थिति पहली जैसी नहीं हो पायी है. बैंकों में कतार जरूर छोटी हो गयी है, लेकिन कैश की किल्लत अब भी बरकरार है.
100 के पुराने नोट व 500 के नये नोट पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं होने के कारण लोगों की परेशानी कम नहीं हो रही है. इस दौरान जहां सूबे में डिजिटल लेन-देन की रफ्तार में काफी तेजी आयी है, वहीं कुछ सरकारी योजनाओं पर भी इसकी मार पड़ी है. राज्य के कई जिलों में मध्याह्न भोजन योजना बाधित हुई है. सबसे अधिक मार पर्यटन उद्योग पर पड़ी है. राजधानी पटना, बोधगया, राजगीर, वैशाली, नालंदा, पावापुरी आदि जगहों पर काफी कम संख्या में पर्यटक आ रहे हैं.
शुरुआती दौरान में खेती-किसानी पर भी असर रहा, लेकिन किसानों ने किसी तरह रबी की फसलों की बुआई कर ली. वहीं इस दौरान नगर निगम व बिजली विभाग के टैक्स कलेक्शन में भारी तेजी आयी है. देश के दूसरे शहरों में रह रहे बिहारी मजदूरों का पलायन भी बढ़ा है. इनके समक्ष रोजगार का गंभीर संकट खड़ा हो गया है. इस साल की बड़ी घटना नोटबंदी ने पिछले 50 दिनों में राज्य को किस तरह प्रभावित किया, इस पर आज डाल रहे हैं नजर .
कैशलेस ट्रांजेक्शन का बढ़ा प्रचलन
नोटबंदी के 50 दिन बाद बैंक व एटीएम में भीड़ तो कम हो गयी लेकिन नकद के सहारे काम चलाने की आदत अभी जस का तस है. नकद की कमी से आज भी हर वर्ग के लोग परेशान हैं.
सबसे ज्यादा टेंशन दो हजार का नोट बना हुआ है. वैसे जिले में कैशलेस ट्रांजेक्शन को लेकर लोग कदम बढ़ा रहे है. बड़े प्रतिष्ठानों के साथ छोटी दुकानों में भी कई जगह कैशलेस व्यवस्था प्रारंभ कर दी गयी है. अधिकतर जगहों पर स्वैप मशीन नजर आने लगी है. यहां तक की चाय पान के दुकानदार भी इसके लिए अपने को तैयार कर रहे हैं. पीरो में पान दुकानदार प्रताप व ललन ने तो नोटबंदी के कुछ दिन बाद ही अपनी दुकान पर कैशलेस व्यवस्था शुरू कर दी थी. शहर के बैंकों में शुरुआती दौर की तुलना में भीड़ काफी कम देखने को मिल रही है.
स्थिति सुधरेगी तो कमाने जायेंगे परदेश
नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने पर भी लोगों को अब राहत नहीं मिली है. बैंक में भीड़ थोड़ी कम जरूरी हुई है. लेकिन, निकासी की रकम निर्धारित करने से ग्राहक हर दिन परेशान है. बाजार के अनुसार वर्तमान समय में भी कारोबार करीब 60 प्रतिशत प्रभावित है. थोक दुकानों पर ग्राहक नहीं दिख रहे हैं.
हालांकि नोटबंदी के बहाने जिला धीरे-धीरे डिजिटिलाइजेशन की ओर भी बढ़ रहा है. कारोबार को शीघ्र पटरी पर लाने के लिए कई दुकानों पर स्वैप मशीन भी लग गयी है. लोग बटुआ की जगह पेटीएम और क्रेडिट कार्ड का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं. पेट्रोल पंप की दुकान हो या इलेक्ट्रॉनिक अधिकतर जगहों पर ग्राहक से लेकर दुकानदार तक कैशलेस सिस्टम का प्रयोग कर रहें हैं. लेकिन, गांव की स्थिति बिलकुल विपरीत है.
किसानी व रोजगार हुए कुप्रभावित
नोटबंदी के पचास दिन पूरे होने वाले हैं. इस बीच जहानाबाद जिले में शुरुआती 15 दिनों तक तो नोट के लिए काफी अफरातफरी मची. जिले के शहरी व ग्रामीण इलाके में नोटबंदी से उभरी समस्या आज भी बनी हुई है.
जहां तक डिजिटल लेनदेन और कैशलेस कारोबार की बात है तो इस मामले में इस जिले के लोगों के बीच कोई खास रूझान नहीं है. शहर के पेट्रोल पंपों और कुछ कपड़ा एवं रेडिमेड प्रतिष्ठानों में पॉश मशीन (स्वाइप मशीन) की सुविधा उपलब्ध तो करायी गयी लेकिन इसका उपयोग कुछ गिने चुने लोगों के द्वारा ही किया जा रहा है. उधर खेती करने वाले किसान और मजदूर अब भी परेशान हैं. सिकरियां गांव के निवासी किसान रामसिहासन सिंह कहते हैं कि नोटबंदी ठीक है, लेकिन सरकार ने जनहित के दृष्टिकोण से इसकी पूर्व तैयारी नहीं की. खाद बीज खरीदने में किसानों को जूझना पड़ा.
कैशलेस ट्रांजेक्शन ने कम की परेशानी
नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने को है. नोटबंदी ने भले ही लोगों के सामने मुश्किल हालात खड़े कर दिये हों पर इसका सकारात्मक असर भी इस दौर में देखने को मिला. अधिकतर लोगों ने कैशलेस ट्रांजेक्शन के प्रति अपनी दिलचस्पी दिखायी. नोटबंदी के पहले जिन दुकानदारों ने स्वैप मशीन लगा रखी थी उसका बखूबी इस्तेमाल अब शुरू हो गया है.
साथ ही स्वैप मशीन के लिए बैंकों में आये आवेदन के आंकड़ों ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि छपरा भी अब कैशलेस अभियान की और बढ़ चुका है. हालांकि नोटबंदी के कारण पूर्व से चल रही सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर गंभीर असर जरूर पड़ा, पर समय के साथ-साथ अब पुनः योजनाएं सामान्य रूप से कार्य करने लगी हैं. बैंको से रुपया नहीं मिलने के कारण अधिकतर विद्यालयों में बच्चों को भोजन कराने में काफी कटौती की.
फंसी मिड-डे मील योजना, गुरुजी कर्ज में
नोटबंदी के 50 दिन बाद भी अधिकतर बैंकों में कैश का संकट जस का तस बना है. मिड-डे मील योजना ग्रामीण बैंक की पेंच में फंसी है. अधिकतर स्कूलों के गुरुजी कर्ज लेकर एमडीएम योजना संचालित कर रहे हैं. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में कैश नहीं मिलने का संकट आज भी बरकरार है. वहीं कारोबार पर नजर डालें तो
बड़े कारोबारियों को कैशलेस से थोड़ी राहत मिली है, तो वहीं अधिकतर छोटे कारोबारी नोटबंदी से मुसीबत में हैं. बैंकों के पास पॉश मशीन नहीं है,जिससे कैशलेस कारोबार 80 फीसदी से अधिक कारोबारी नहीं कर पा रहे हैं. डिजिटल लेने-देन का काम पॉश मशीन के अभाव में प्रभावित हो रहा है. शहर में कई ऐसे छोटे दुकानदार हैं, जिनके यहां नोटबंदी के कारण बोहनी तक नहीं हो सका. किसानों को केसीसी से पैसे नहीं मिल रहे हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में कैशलेस से बढ़ी परेशानी
नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने के बाद भी लोगों की समस्या बरकरार है. प्रखंड की पंचायतों में चल रही विकास योजनाओं की रफ्तार काफी धीमी है. जहां तक कैशलेस और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दिये जाने की बात है तो ग्रामीण क्षेत्रों में इस रफ्तार को तेज करना काफी मुश्किल है.
आरंभिक दौर में किसानों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा . लेकिन इसके बावजूद किसानों ने बुआई की. अब पटवन का काम चल रहा है. किसानों ने दुकानदारों से क्रेडिट पर उधार लेकर खेती जरूर कर ली है लेकिन पिछले वर्ष की अपेक्षा किसानों की फसल भी थोड़ा पीछे जरूर हो गयी है. कृषि विशेषज्ञ अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक डॉ राम कृपालु सिंह का मानना है कि प्रदेश में किसानों ने किसी तरह से अच्छी फसल जरूर लगायी है .
सरकार की योजनाओं पर नहीं हुआ बड़ा असर
नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने को हैं. वैशाली जिले में इसका हल्का असर रहा. आम जनजीवन सामान्य चला. कुछ परेशानी लोगों को खुल्ले को लेकर हुई, अन्यथा जिंदगी सामान्य दिनों की तरह ही चलती रही. गांवों में बैंकों की शाखा कम होने के कारण लोग परेशान रहे, लेकिन अब स्थिति सामान्य हो रही है. सरकार की योजनाओं पर कोई बड़ा असर नहीं दिखा. योजनाएं धीमी हुईं, जो अब सामान्य हो चुकी है. स्कूलों में बच्चों को भोजन मिलता रहा. लोगों ने कुछ कटौती कर इसे समझने का प्रयास किया. कई दुकानों पर पेटीएम का बोर्ड लगा. लोग मोबाइल से भुगतान करने का प्रयास करते रहे. नोटबंदी के 10 दिन तक सबसे ज्यादा परेशानी किसानों को रही. किसान घबरा गये, लेकिन बाद में सब कुछ सामान्य हो गया.
बैंकिंग कार्य सामान्य, एटीएम अब भी बेहाल
नोटबंदी के 50 दिन बाद हालात में धीरे-धीरे सुधार तो हो रहा है, मगर दुश्वारियां कम होने का नाम नहीं ले रही है. बैंकों के आगे तो लाइन पहले ही खत्म हो चुकी है और अब इसके अंदर भी भीड़ नहीं रही. यानी, बैंकिंग कार्य सामान्य हो चुका है, मगर एटीएम की स्थिति जस की तस है. कोई खास सुधार नहीं दिखाई दे रहा है. लोग अब भी एटीएम के चक्कर काटने को विवश हैं. बहुत से एटीएम ऐसे हैं, जो पूरी तरह बंद हैं. नोटबंदी के बाद तीन हजार करोड़ से ज्यादा के 500-1000 के पुराने नोट जमा हुए हैं, जिसे आरबीआइ को भेजी गयी है. जिले के सभी 29 बैंकों के 235 शाखाओं द्वारा पुराने नोट बदला गये गये हैं.
परेशानी बरकरार सरकारी योजनाएं ठप
नोटबंदी के 50 दिन बाद भी संकट बरकरार है. खास कर सरकारी योजनाओं का काम ठप है. सरकार के कैशलेस के प्रचार के बाद भी लोगों की पहुंच से यह दूर ही दिख रहा है. यही कारण है कि बाजार में भीड़ नहीं है. ग्रामीण इलाके के छोटे-छोटे दुकानदार तो और भी परेशान हैं.
खास बात यह है कि कई काम अब भी उधारी पर ही चल रहे हैं. लखीसराय के नया बाजार के किराया व्यवसायी पप्पु कुमार का कहना है कि दो हजार मूल्य के नोट वाले कई ग्राहकों को उन्हें बिना सामान के खुदरा के अभाव में लौटाया जा रहा है. कमोबेश हर जगह यही स्थिति है. वहीं सहरसा, सुपौल, मधेपुरा में लोगों की परेशानी कम नहीं हुई है. सभी जिलों के एटीएम में नकदी का संकट बरकरार है.
समस्याओं के बीच रबी की खेती का लक्ष्य पूरा
पटना : नोटबंदी के बीच रबी की खेती का लक्ष्य लगभग पूरा हो गया है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार कृषि विभाग के लक्ष्य से थोड़ी कम भी खेती हुई, पर पिछले साल की अपेक्षा लगभग सभी फसलों की अधिक बुआई हुई है. इससे उम्मीद है कि आने वाले साल में पिछले साल की अपेक्षा अधिक अनाज का उत्पादन होगा. जिन क्षेत्रों में खेतों में अधिक नमी के कारण बुआइ नहीं भी हुई, उन इलाकों में किसान देर से ही सही पर, गेहूं व अन्य फसलों की खेती कर रहे हैं. हालांकि देर से होने वाली रबी की खेती में उपज कम होने की समस्या का सामना करना पड़ता है.
हाल में कृषि विभाग की रबी की खेती की समीक्षा में मिले ब्योरा के अनुसार सरकार के लक्ष्य के 80 प्रतिशत गेहूं की खेती हो चुकी है. पिछले साल गेहूं की खेती 1911662 हेक्टेयर में हुई थी, इस बार यह 1860433 हेक्टेयर में गेहूं की खेती हो चुकी है. वहीं मक्के की खेती लक्ष्य का 95 प्रतिशत पूरा कर लिया गया है. पिछले साल 411704 हेक्टेयर में हुई थी तो इस बार 41745 हेक्टेयर में हुई है. जौ की खेती पिछले साल 13106 हेक्टेयर में हुआ था. इस बार इसकी खेती 13427 हेक्टेयर में हो चुकी है. हालांकि राज्य सरकार ने जौ की खेती का लक्ष्य 25000 हेक्टेयर तय किया है.
चना की खेती पिछले साल 96291 हेक्टेयर में हुई थी. इस साल चना की खेती 99817 हेक्टेयर में हुई है, पिछले साल यह मात्र 96291 हेक्टेयर में ही हुई थी. मसूर की खेती पिछले साल 202845 हेक्टेयर में हुई थी, इस साल 206868 हेक्टेयर में हुई है. वहीं मटर की खेती पिछले साल की अपेक्षा इस साल एक हजार हेक्टेयर में अधिक हुई है. अन्य दलहनी फसलों की खेती भी पिछले साल 106297 हेक्टेयर और इस साल 104348 हेक्टेयर में हुई.
विभागीय अधिकारी ने बताया कि इस साल तय लक्ष्य में गेहूं 80 प्रतिशत, मक्का 95 प्रतिशत और जौ 54 प्रतिशत खेती हुई है, लेकिन पिछले साल की अपेक्षा इन फसलों की खेती अधिक हुई है.
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस साल रबी की लगभग सभी फसलों के लिए बेहतर मौसम है. वर्तमान तापमान गेहूं समेत सभी रबी फसलों के लिए अच्छा है. खेतों में पर्याप्त नमी है, इसलिए किसानों को रबी फसल में अतिरिक्त पटवन की आवश्यकता नहीं हाेगी.

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