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Demonetisation : खेत तैयार, फिर भी किसान कर रहे बीज व खाद का इंतजार
मोकामा : 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट पर पाबंदी के कारण किसानों की हालत खराब हो गयी है. बुआई के मौसम में किसान न तो बीज व खाद की खरीदारी कर पा रहे हैं और न ही सिंचाई की व्यवस्था. रोपनी तो दूर की बात है, कहीं-कहीं तो महज 10 फीसदी खेतों की […]
मोकामा : 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट पर पाबंदी के कारण किसानों की हालत खराब हो गयी है. बुआई के मौसम में किसान न तो बीज व खाद की खरीदारी कर पा रहे हैं और न ही सिंचाई की व्यवस्था. रोपनी तो दूर की बात है, कहीं-कहीं तो महज 10 फीसदी खेतों की ही जुताई हो पायी है. यही हाल खाद-बीज दुकानदारों का भी है. ग्राहकी कमजोर होने से उनकी भी परेशानी बढ़ गयी है. भरोसे पर मिल रही थोड़ी -बहुत राहत से किसान जैसे-तैसे अपना काम चला रहे हैं. लोग खेती-किसानी का काम छोड़ कर पैसे के लिए बैंकों और एटीएम की लाइन में खड़े हैं.
बीज तो है, पर खाद कहां से लाएं
केंद्र सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोटों पर प्रतिबंध लगाने का असर खेती पर भी पड़ा है. मोकामा इलाका दलहनी फसलों की खेती के लिए जाना जाता है. मोकामा टाल में दलहनी फसलों की व्यापक खेती होती है और दलहनी फसलों की बोआई अभी शुरू ही हुई थी कि सरकार ने नोटबंदी की घोषणा कर दी.
बीज की खरीदारी में पुराने नोटों को भले ही मान्यता दी गयी, लेकिन बीज का उपचार करने वाले रसायनों, कीटनाशकों और खाद की खरीदारी में पुराने नोटों को मान्यता नहीं दी गयी है. हालात यह है कि किसानों को या तो उधार लेना पड़ रहा है, या फिर पैसे के लिए बैंकों और एटीएम के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. मरांची के किसान नेता अरविंद सिंह ने बताया कि मोकामा टाल इलाके में दलहनी फसलों की खेती के लिए किसानों के पास बीज उपलब्ध रहता है और यहां जरूरत कीटनाशकों व खाद की खरीदारी करनी पड़ती है. मजदूरों को उनकी मजदूरी का भुगतान करने के लिए भी किसानों के पास सौ के नोट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है. लिहाजा दैनिक मजदूर भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. यही हालत घोसवरी प्रखंड की है.
दुल्हिन बाजार :दुकानदार और किसान दोनों हैं परेशान
प्रखंड के सभी इलाके के किसान केंद्र सरकार की नोटबंदी की घोषणा से परेशान हैं. बैंक में पैसे हैं, पर पास में पैसे नहीं होने के कारण उनकी खेती पर असर पड़ रहा है. दूसरी ओर, बीज व खाद विक्रेता परेशान हैं. उनकी दुकानों पर किसान नहीं आ रहे हैं. बैंकों में जो पैसे प्रतिदिन आते हैं वह ग्रामीण इलाकों तक पहुंचते ही समाप्त हो जाते हैं. किसानों को बैंक व एटीएम से खाली हाथ लौटना पड़ता है.
पैसे के अभाव में किसान गेहूं, तेलहन, दलहन का बीज व खाद नहीं खरीद पा रहे हैं.किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार ने ऐसे समय में नोटबंदी की है जब एक ओर खेतों में धान की फसल पक कर तैयार हो चुकी है, तो दूसरी ओर गेहूं ,तेलहन व दलहन फसल की बोआई का समय गुजर रहा है, पर किसान खेती से महरूम हैं. किसान अपने पुराने नोटों को जमा करने व पैसे की निकासी के लिए बैंकों का चक्कर लगा रहे हैं. इससे खेती बाधित हो रही है. दुल्हिनबाजार के बीज भंडार पर बीज खरीदने पहुंचे किसान शिव शंकर वर्मा ने बताया कि नोटबंदी की घोषणा होते ही घर में रखे सारे पुराने नोटों को बैंकों में जमा कर दिया है. बैंक में पर्याप्त पैसे नहीं होने से पैसे की निकासी नहीं हो पा रही है.
बाढ़ :भरोसे पर दे रहे किसानों को उधार
नोट बंदी से बाढ़ अनुमंडल की कृषि व्यवस्था डगमगा गयी है. किसान नोट के चक्कर में खेती- बारी के काम में लेट कर रहे हैं. उनके पुराने नोट पर नियमों का पहरा लगा है, जिससे समय पर खेती नहीं हो पा रही है. दुकानदार पुराने नोट लेने को तैयार नहीं हैं.वहीं, कई दुकानदार द्वारा वर्तमान सीजन के लिए लाये गये बीज, खाद व कीटनाशक दवा की बिक्री नोट के अभाव में अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पा रही है. बाढ़ के कचहरी चौक के पास स्थित सूरज कृषि केंद्र के संचालक सतीश सिंह ने बताया कि हम करीब 25 वर्षों से इस धंधे में लगे हुए हैं. किसानों के पास पुराने नोट रहने के कारण कृषि उत्पादों का कारोबार मंदा हो गया है, जबकि किसानों को इस वर्ष उधार में ही बीज सहित अन्य समान देकर अपना स्टॉक खाली कर रहे हैं ताकि अगले सीजन के कारोबार को जारी रखा जा सके. उधार भरोसे पर दिया गया है. किसान अनिल कुमार ने बताया कि पुराने नोट बदलने के लिए बैंकों का चक्कर लगाते-लगाते थक चुके हैं. हालत यह है कि पुराने नोट के बदले सौ का नोट नहीं मिल पा रहा है, जबकि बैंकों द्वारा दो हजार का नोट दिये जा रहे हैं, जिसे छोटी खरीद पर दुकानदार भुनाने से इनकार कर रहे हैं.
फुलवारीशरीफ :फसल खेतों में खड़ी है और मजदूर कतार में
500 व 1000 रुपये के नोटों का प्रचालन बंद किये जाने के केंद्र सरकार के निर्णय से खेती-किसानी बड़े पैमाने पर बाधित हो रही है. धान की फसल खेतों में खड़ी है और मजदूर बैंकों की कतार में खड़े नोट बदलने और जमा कराने को बेचैन हैं. नोटबंदी के बाद से किसान परेशान हो गये हैं . खेती -किसानी के मौसम में किसान के साथ ही मजदुर भी बैंकों के चक्कर लगा रहे हैं. धान कटनी को लेकर मजदूरों की किल्लत का आलम यह है कि किसानों को अपने परिवार के सहारे ही धान की कटनी करनी पड़ रही है. इधर, जिन किसानों की धन कटनी हो रही है उनकी भी समस्या मुंह बाये खड़ी है. रबी की बुआई के लिए खेत तैयार हैं और किसान बीज – खाद का इंतजार कर रहे हैं. बीज व खाद की दुकानों पर पुराने नोट से खाद और बीज नहीं मिल रहे हैं. नोटबंदी के कारण लोगों पर इसका काफी असर पड़ा है. ग्रामीण क्षेत्रों में संभ्रांत परिवार से लेकर आर्थिक रूप से कमजोर किसान परिवार पर भी इसका खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है. किसान दिनेश्वर सिंह बताते हैं कि खाद- बीज की दुकानों पर पुराने नोट लिये जाने के सरकारी आदेश का पालन क्षेत्र में नहीं हो रहा है.
मसौढ़ी :महज 10 फीसदी खेतों की ही जुताई
नोटबंदी से जहां आम लोगों के साथ व्यापारी परेशान तो थे ही, इससे किसान भी कम परेशान नहीं हैं. किसानों के पास नये नोट उपलब्ध नहीं होने से उन्हें न तो समुचित खेतों की जुताई हो पा रही है और न ही खेतों में लगाने के लिए बीज उपलब्ध हो पा रहा है.नतीजतन अब तक मात्र 10 प्रतिशत जमीनों की जुताई मुश्किल से हो पायी है .इधर, इसका सीधा असर बीज दुकानदारों पर भी देखने को मिल रहा है .कई दुकानदारों को तो इस मौसम में बोहनी होने पर भी आफत है. धनरूआ प्रखंड के दर्जनों किसानों का रोना है कि इस माह में गेहूं की बोआई अपने पूरे शबाब पर होती थी, लेकिन नोटबंदी का असर है कि पैसा के अभाव में खेतों में अबतक 10 फीसदी खेतों की जुताई ही हो पायी है.
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